श्रद्धा और समझ से हो धार्मिक स्थलों का जीर्णोद्धार

punjabkesari.in Friday, Jun 02, 2023 - 05:16 AM (IST)

12 ज्योतिर्लिंगों में से एक उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में सप्त ऋषियों की मूर्तियां पहली ही आंधी में ध्वस्त होकर गिर गईं। 856 करोड़ के इस प्रोजैक्ट का लोकार्पण 7 महीने पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किया गया था। क्या इस भव्य कॉरिडोर का निर्माण व इस तीर्थ स्थल का जीर्णोद्धार सही समझ, अनुभव, श्रद्धा और कलात्मक अभिरूचि के साथ किया गया था? क्या इस जीर्णोद्धार करने वाले ठेकेदार ने पहले भी कभी किसी पौराणिक तीर्थ स्थल का जीर्णोद्धार किया था? 

देश के यशस्वी प्रधानमंत्री मोदी जी जिस तरह से देश भर में नए भवनों और सड़कों आदि का निर्माण करवा रहे हैं वह हर मतदाता के लिए गर्व की बात है। जब भी देश में विकास होता है तो उसका श्रेय तत्कालीन सरकार को ही मिलता है। देश भर में होने वाले विकास कार्यों से जहां देश भर में तरक्की की लहर दौड़ती है वहीं रोजगार के अवसर भी बढ़ते हैं। परंतु जहां सरकार को विकास का श्रेय मिलता है, वहीं यदि कभी इन विकसित स्थानों पर  कोई हादसा या दुर्घटना हो जाए तो उसका दोषी भी सरकार को ही माना जाता है। सरकार चाहे किसी भी दल की क्यों न हो? यदि वे श्रेय के हकदार हैं तो गुणवत्ता की कमी के कारण होने वाले नुक्सान के भी उतने ही जिम्मेदार हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 11 अक्तूबर 2022 को उज्जैन में महाकालेश्वर मंदिर के नए परिसर ‘महाकाल लोक’ का लोकार्पण किया था। नवम्बर 2022 में मुझे भी इस नवनिर्मित परिसर को देखने का मौका मिला। वहां मौजूद दर्शनाॢथयों की भीड़ को देख इस बात का अंदाजा लग गया था कि यह स्थान बहुत लोकप्रिय हो गया है। महाकाल के सेवायत गोसाईयों से बात करके पता चला कि इतने खुले परिसर के बन जाने से यहां पर आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या भी बढ़ गई है। 

पूरे परिसर का दौरा करने के पश्चात एक अच्छी अनुभूति जरूर हुई। परंतु जब वहां पर फाइबर की इतनी विशाल मूर्तियों को देखा तो विचार आया कि भगवान करे यह मूर्तियां सालों तक टिकी रहें। बीते रविवार जब यह हादसा हुआ तो मुझे उस दिन की बात याद आई। 30 किलोमीटर की रफ्तार से चलने वाली एक ही आंधी में 7 में से 6 मूॢतयों का ढह जाना वास्तव में ङ्क्षचताजनक है। इस हादसे से सीधे तौर पर यही सवाल उठता है कि क्या इस कॉरिडोर का निर्माण करने वाली गुजरात की कंपनी के पास वास्तव में इस तरह के कार्य करने का कोई अनुभव था? क्या यह ठेकेदार भी अन्य सरकारी काम करने वाले ठेकेदारों की तरह केवल दिखावटी काम करने में माहिर था, ठोस काम करने में नहीं? 

यदि ऐसा होता तो इतनी-सी आंधी में ये मूर्तियां नहीं गिरतीं। 856 करोड़ रुपए की लागत से बने इस प्रोजैक्ट की गुणवत्ता पर अब सवाल उठने लग गए हैं। स्थानीय लोगों के अनुसार इस प्रोजैक्ट पर लगभग 200 से 250 करोड़ ही खर्च हुए हैं। शेष राशि भ्रष्टाचार की बलि चढ़ गई है। इस बात में कितनी सच्चाई है यह तो जांच के बाद ही पता चलेगा। इस हादसे के बाद ऐसे सभी प्रोजैक्टों को शक की निगाह से देखा जा रहा है।  दरअसल जब भी कभी किसी तीर्थ स्थल का जीर्णोद्धार होता है तो वह कार्य कुछ सालों के लिए नहीं बल्कि सदियों के लिए होना चाहिए। सरकारें आएंगी और जाएंगी परंतु तीर्थ स्थल तो सदियों के लिए ही बनाए जाते हैं। मिसाल के तौर पर तेलंगाना के यदाद्रीगिरीगुट्टा क्षेत्र में बने भगवान लक्ष्मी-नृसिंह देव के एक अत्यंत भव्य मंदिर को ही लीजिए। मंदिर के निर्माण में कहीं भी ईंट, सीमैंट या कंक्रीट का प्रयोग नहीं हुआ है। 

सारा मंदिर ग्रेनाइट की भारी-भरकम ‘श्री कृष्ण शिलाओं’ से बना है, जिन्हें प्राचीन तरीके के चूने के मसाले से जोड़ा गया है। मंदिर के निर्माण में 80 हजार टन पत्थर लगा है, जो यह सुनिश्चित करेगा कि यह मंदिर सदियों तक रहे। धर्मनगरियों व ऐतिहासिक भवनों का जीर्णोद्धार या सौंदर्यीकरण एक बहुत ही जटिल प्रक्रिया है। जटिल इसलिए कि चुनौतियां अनंत हैं। पुरोहित समाज के पैतृक अधिकार, लोगों की धार्मिक भावनाएं, वहां आने वाले लाखों आम लोगों से लेकर मध्यमवर्गीय व अति धनी लोगों की अपेक्षाओं को पूरा करना बहुत कठिन होता है। सीमित स्थान और संसाधनों के बीच व्यापक व्यवस्थाएं करना, इन नगरों की सफाई, ट्रैफिक, कानून व्यवस्था और तीर्थयात्रियों की सुरक्षा को सुनिश्चित करना बड़ी चुनौतियां हैं।-रजनीश कपूर


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