राजग सरकार की टिप्पणियां हैरानीजनक तथा उकसाऊ

punjabkesari.in Sunday, Oct 21, 2018 - 04:16 AM (IST)

इस दुनिया में रहने वाले प्रत्येक 6 व्यक्तियों में से एक भारत में रहता है। क्या भारत में जीवन अच्छा है या खराब? कुछ सर्वेक्षणों के अनुसार भारत में रहने वाले अधिकतर लोगों का कहना है कि वे खुश हैैं। संतोष की यह भावना इन तथ्यों के बावजूद है कि नौकरियां बहुत कम हैं, हवा प्रदूषित है, पानी पीने के लायक नहीं, सड़कें (चुनिंदा राष्ट्रीय उच्च मार्गों के अतिरिक्त) बहुत बुरी हालत में हैं, कानून व्यवस्था की स्थिति चिंताजनक है तथा भीड़ हिंसा व भीड़ न्याय अब नए नियम बन गए लगते हैं। जहां ये मुद्दे दिखाई देते हैं और चिंता का विषय हैं, दो ऐसे भी हैं जो इतने नजर नहीं आते मगर अधिक ङ्क्षचता का विषय होने चाहिएं। दोनों ही हमारे बच्चों से संबंधित हैं-भारत में जन्मे तथा रह रहे लगभग 49 करोड़ बच्चे ऐसे हैं जो 21वीं शताब्दी में अपना जन्म वर्ष होने का दावा कर सकते हैं। 

शिक्षा तथा स्वास्थ्य 
एक बच्चे के अधिकार क्या हैं? घर, परवाह करने वाले अभिभावकों, सुरक्षा तथा मित्रों के अलावा एक बच्चे के और भी अधिकार हैं जिन्हें देश द्वारा आवश्यक तौर पर सुनिश्चित करना चाहिए। यह हैं पूर्ण शिक्षा तथा पूरा स्वास्थ्य। विश्व बैंक प्रत्येक वर्ष वल्र्ड डिवैल्पमैंट रिपोर्ट प्रकाशित करता है। इस वाॢषक रिपोर्ट का एक हिस्सा मानव पूंजी सूचकांक (एच.सी.आई.) है। 2019 की रिपोर्ट में 157 देशों के लिए एच.सी.आई. तैयार किया गया है। यह आज जन्मे एक बच्चे के 18 वर्ष की आयु प्राप्त करने पर हासिल की जाने वाली मानव पूंजी को दर्शाने का एक प्रयास है। इसमें कहा गया है कि सूचकांक कर्मचारियों की अगली पीढ़ी की उत्पादकता के अनुसार मापा जाता है, जो पूर्ण शिक्षा तथा पूरे स्वास्थ्य के मानदंड पर आधारित है। एक अर्थव्यवस्था, जिसमें एक बच्चा आज जन्म लेता है, में उससे पूर्ण शिक्षा तथा पूरा स्वास्थ्य प्राप्त करने की आशा की जाती है जो सूचकांक पर 1 का स्कोर दर्शाता है। 

किसी भी देश ने 1 का स्कोर प्राप्त नहीं किया क्योंकि देशों को शिक्षा तथा स्वास्थ्य के मानदंड हासिल करने होते हैं। सिंगापुर को 0.88 की एच.सी.आई. के साथ पहला रैंक प्राप्त है। 0.80 से अधिक स्कोर प्राप्त करने वाले पहले 10 देशों में सिंगापुर, कोरिया गणराज्य, जापान, हांगकांग, फिनलैंड, आयरलैंड, आस्ट्रेलिया, स्वीडन, नीदरलैंड्स तथा कनाडा शामिल हैं। एशियाइयों को गर्व होना चाहिए कि पहले चार स्थानों पर एशियाई देश हैं। बड़े पांच देशों के रैंक अच्छे हैं मगर बहुत बढिय़ा नहीं। ब्रिटेन (एच.सी.आई.-0.78) 15वें पर, फ्रांस (0.76) 22वें, अमरीका (0.76)24वें, रूस (0.73) 34वें तथा चीन (0.67) के साथ 46वें स्थान पर है। 157 देशों में से 96 का एच.सी.आई. स्कोर 0.51 से अधिक है जो मानवता द्वारा सकल तौर पर की गई प्रगति का एक पैमाना है। 

रेत में सिर दबाना 
बाकी 61 देशों, जिनकी एच.सी.आई. 0.50 या कम है, में भारत  शामिल है। भारत की एच.सी.आई. 0.44 तथा रैंक 115 है। यह भारत को निचले एक-तिहाई देशों में रखता है। राजग सरकार ने इस घमंडपूर्ण टिप्पणी के साथ रिपोर्ट को खारिज कर दिया कि ‘भारत सरकार ने एच.सी.आई. को नजरअंदाज करने का निर्णय किया है और सभी बच्चों के लिए जीवन की गुणवत्ता तथा आसानी से उपलब्ध करवाने के लिए वह अपने पथप्रवर्तक मानव पूंजी विकास कार्यक्रम को जारी रखेगी।’ एच.सी.आई. रिपोर्ट ने यदि मुझे दुखी कर दिया तो सरकार की टिप्पणी ने मुझे गुस्सा दिला दिया। किसी ने भी कम एच.सी.आई. के लिए केवल राजग सरकार को दोष नहीं दिया है। स्वतंत्रता से लेकर सभी सरकारें इसके लिए जिम्मेदार हैं। जिस चीज ने मुझे परेशान किया वह है कमियों को स्वीकार करने की अनिच्छा। 

एच.सी.आई. हवा से एकत्र किए गए आंकड़े नहीं हैं। यह 6 कारकों पर आधारित है, जिसके लिए प्रत्येक को एक स्कोर मिलता है। भारत के मामले में औसत घरेलू आय को देखते हुए पांच वर्ष की आयु तक बच्चे के जीवित रहने की सम्भावना 0.96 के स्कोर के साथ संतोषजनक है। वयस्क उत्तरजीविता दर 0.83 के साथ तर्कसंगत है। जो चीजें भारत को पीछे खींचती हैं, वे हैं ‘वर्षों तक स्कूली शिक्षा की व्यवस्था’ तथा ‘5 से कम उम्र वाले बच्चों की लम्बाई कम होना।’ पहले मामले में स्कोर स्कूल में 5.8 वर्ष है जबकि दूसरे मामले में यह 0.62 है, जिसका अर्थ यह हुआ कि पांच वर्ष से कम आयु के 38 प्रतिशत बच्चों की लम्बाई उनकी उम्र के हिसाब से कम है। 

इसके कारण बहुत अज्ञात नहीं हैं। जहां ‘शिक्षा का अधिकार’ के कारण स्कूलों में बच्चों के दाखिले में वृद्धि हुई है, वहीं स्कूलों, अध्यापकों तथा शिक्षा की गुणवत्ता की ओर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया। इसी तरह आंगनवाडिय़ों  तथा ‘खाद्य सुरक्षा का अधिकार’ मामलों में आवश्यक तौर पर दखल देने की जरूरत थी मगर सरकार गर्भवती तथा दूध पिलाने वाली माताओं तथा बच्चों को उनके पहले पांच वर्षों के दौरान पर्याप्त भोजन उपलब्ध करवाने में असफल रही है। इसके मुख्य कारण हैं योजनाओं का घटिया डिजाइन, गलत ढंग से उन्हें लागू करना तथा उनके लिए कोष की पर्याप्त व्यवस्था न करना।

निर्दयी लापरवाही 
एच.सी.आई. को आवश्यक तौर पर ग्लोबल हंगर इंडैक्स यानी वैश्विक  भुखमरी सूचकांक के साथ पढ़ा जाना चाहिए। भारत में प्रत्येक 7 बच्चों में से 1 कुपोषित है, 5 में से 2 उम्र के हिसाब से कम कद के हैं तथा 5 में से 1 कद के हिसाब से कम वजन वाला है। इसका कारण कुपोषण है। एक ओर हमारे पास गेहूं तथा धान के अम्बार हैं। जबकि दूसरी ओर हम प्रत्येक बच्चे को पर्याप्त भोजन उपलब्ध करवाने में सक्षम नहीं हैं। राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के उकसाने पर यू.पी.ए. ने राज्य द्वारा दखल देने की जरूरत को स्वीकार किया और मनरेगा तथा खाद्य सुरक्षा का अधिकार कानून बनाए। दोनों ही दखलों के मामले में  राजग ने 2014 से ही निर्दयतापूर्वक लापरवाही बरती है। 

इसका परिणाम नीची एच.सी.आई., उच्च जी.एच.आई. (31.1 का स्कोर जो ‘गम्भीर भुखमरी’ का संकेत है) तथा मानव विकास सूचकांक में शामिल 189 देशों में से 139 का निचला रैंक। इन तथ्यों को देखते हुए भाजपा नीत राजग सरकार की प्राथमिकताएं आश्चर्यजनक तथा उकसाऊ हैं-मंदिर बनाना, गौ रक्षा, एंटी रोमियो स्क्वायड्स, घर वापसी, यूनिफार्म सिविल कोड, मूर्तियां खड़ी करना तथा शहरों के  नाम बदलना आदि। इनमें से कुछ भी हमारे बच्चों के लिए पूर्ण शिक्षा अथवा पूरा स्वास्थ्य सुनिश्चित नहीं करेगा।-पी. चिदम्बरम 


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Pardeep

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