‘भारत की मिट्टी के लाल’

punjabkesari.in Wednesday, May 03, 2023 - 06:06 AM (IST)

यदि आप मुंबई में एक आटो-रिक्शा चलाना चाहते हैं तो वह आपके ड्राइविंग कौशल अथवा यात्रियों के साथ आपकी विनम्रता को परखने के लिए आपका टैस्ट नहीं लेंगे, लेकिन आपको पास कर देंगे, यदि आप मराठी जानते हैं। यदि आप इसी शहर में अपने बच्चे को स्कूल भेजना चाहते हैं तो अभिभावकों को एक अधिवास  (डोमीसाइल) सर्टीफिकेट पेश करना होगा, जिसमें यह कहा गया होगा कि आप इस देश में नहीं हैं बल्कि इस राज्य में रहते हैं। 

फिर भी जब 2008 में मुंबई स्थित ताज होटल पर हमला किया गया, मेजर संदीप नामक एक युवा कमांडो दिलेरी से होटल में दाखिल हुआ ताकि वहां आतंकवादियों द्वारा बंधक बनाकर रखे गए पुरुषों तथा महिलाओं को बचा सके। संदीप बेंगलुरु से था, उसने वहां फ्रैंक एंथनी स्कूल से पढ़ाई की, और यहां तक कि स्कूल के कॉयर में भी हिस्सा लिया। 

मगर बड़ी हैरानी की बात है कि जब वह अपना काम करने के लिए मुंबई में दाखिल हुआ, जो कोई अन्य नहीं कर सकता था, न स्थानीय पुलिस, न स्थानीय राजनीतिज्ञ और न ही स्थानीय राजनीतिक दल, किसी ने भी उसे रोककर अपना अधिवास सर्टीफिकेट दिखाने के लिए नहीं कहा। कोई भी राजनीतिज्ञ नहीं चिल्लाया कि ‘ओह, वह हमारा काम अपने हाथ में ले रहा है।’ किसी ने भी उससे नहीं कहा, ‘श्रीमान, जी यदि आप इस मिट्टी के लाल नहीं हैं तो आप भीतर नहीं जा सकते।’ वह भीतर गया, बंधकों को बचाया, आतंकवादियों ने उसे गोली मारी और वह मर गया। मेजर संदीप उन्नीकृष्णन  नैशनल सिक्योरिटी गार्डस के स्पैशल एक्शन ग्रुप का हिस्सा था। वह मिट्टी का लाल था, क्या नहीं था? कौन-सी मिट्टी? भारत की मिट्टी। 

जब हम पूरी दृढ़ता तथा पक्की आस्था से ‘भारत माता की जय’ बोलते हैं तो हम अपने प्यारे देश के लिए आवाज लगाते हैं। हम भारतीय मिट्टी के लाल हैं, महाराष्ट्र, कर्नाटक, पंजाब अथवा बंगाल के नहीं, बल्कि भारत के। जब हमारे सैनिक सीमा पर जाते और लड़ते हैं, तो क्या उन नगरों तथा गांवों के लोग उनसे कहते हैं कि ‘वापस जाओ, हम अपनी सीमाओं की खुद रक्षा कर लेंगे।’ 

अरे नहीं, तमिलनाडु से, केरल से सैनिक कश्मीर की सीमाओं की रक्षा करते हैं और ऐसा ही सभी सीमाओं पर होता है। जब स्थिति मांग करती है तो सभी के मन में माटी के लाल होते हैं, यहां तक कि वह स्थानीय भाषा भी नहीं बोलते। अमरीका में आप टैक्सास से न्यूयार्क तक जा सकते हैं वहां पर बिना किसी भेदभाव के कोई नौकरी कर सकते हैं। उनका संविधान इसकी इजाजत देता है। हमारा संविधान भी ऐसा ही है लेकिन राजनीतिज्ञ इसे पसंद नहीं करते। अंग्रेज ‘बांटो और शासन करो’ की नीति अपनाते थे, हमारे राजनीतिज्ञ भी वैसा ही करते हैं। 

यदि मैं एक भारतीय हूं, मैं इसकी माटी का लाल हूं। भारत मेरी मातृभूमि है और मुझे देश में कहीं भी काम करने, पढऩे तथा रहने में सक्षम होना चाहिए। यदि मेजर संदीप उन्नीकृष्णन मुंबई में बिना एक अधिवास सर्टीफिकेट के मर सकता है तो क्यों मुझे देश में कहीं भी एक रिक्शा चलाने अथवा कोई नौकरी करने के लिए सर्टीफिकेट की जरूरत हो? भारत मेरी मातृभूमि है जो मुझे अपना बेटा या लाल बनाती है...।-दूर की कौड़ी राबर्ट क्लीमैंट्स
 


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