गिलगित-बाल्टिस्तान में पाकिस्तान के खिलाफ भड़क रहा विद्रोह

punjabkesari.in Wednesday, Aug 02, 2023 - 05:34 AM (IST)

जब अंग्रेजों ने गिलगित को जम्मू-कश्मीर राज्य के महाराजा हरि सिंह से पट्टे पर लिया था, तो उन्होंने स्थानीय लोगों के साथ गुलामों जैसा व्यवहार किया, जिनके पास कोई अधिकार या आवाज नहीं थी। 1947 में आजादी से पहले अंग्रेजों ने गिलगित को महाराजा हरि सिंह को लौटा दिया था। पाकिस्तान में इसके बाद के आकलन में यह माना गया कि महाराजा गिलगित को जम्मू-कश्मीर का एक प्रांत बनाना चाहते थे। लेकिन गिलगित स्काऊट्स ने महाराजा के खिलाफ विद्रोह कर दिया और अस्थायी रूप से इसका प्रशासन पाकिस्तान को सौंप दिया। 

पाकिस्तान ने उन सभी अमानवीय कानूनों को बरकरार रखा, जिनके द्वारा ब्रिटिश स्थानीय लोगों को काबू करते थे। पाकिस्तान भी उनके साथ पूर्ण मानवीय व्यवहार करने को तैयार नहीं था। अंग्रेजों द्वारा वर्षों के दमन के बाद, जब साथी-मुस्लिम पाकिस्तान ने गिलगित का प्रशासन अपने हाथ में ले लिया तो उन्हें कुछ आशाएं जगी होंगी। लेकिन जब उन्हें पता चला कि उनके साथी-मुसलमान गैर-मुस्लिम गोरों से भी बदत्तर हैं, तो वे बुरी तरह निराश हो गए। शायद यह तथ्य कि ये मुसलमान ज्यादातर शिया थे, ने पाकिस्तान के सुन्नी कट्टरपंथियों को गिलगित-बाल्टिस्तान के लोगों के प्रति शत्रुतापूर्ण बना दिया। यह कुछ ऐसा था, जिसे उन्होंने ब्रिटिश अत्याचारी शासन के दौरान भी नहीं झेला था। ऐसी कोई रिपोर्ट नहीं थी कि अंग्रेजों ने स्थानीय लोगों को काबू में रखने के लिए उन्हें भूखा रखा, अनको उनकी जमीन से वंचित किया गया। फूट डालो और राज करो की नीति के लिए जाने जातेे अंग्रेजों ने गिलगित में शियाओं और सुन्नियों को विभाजित करके इस नीति को लागू नहीं किया। 

जब लोग पाकिस्तान के प्रशासनिक नियंत्रण में आए तो उन्हें पता चला कि यातना, अपमान और हताशा और अभाव एक साथ कैसे जीते हैं। उम्मीद करते हुए कि पाकिस्तान नागरिक अधिकारों और संवैधानिक पहचान के लिए उनकी आकांक्षाओं को समझेगा, उन्होंने एक आंदोलन शुरू किया। लेकिन वे कितने गलत थे। पाकिस्तान इन्हें कैसे समझ पाएगा, जब आजादी के 75 साल बाद भी वह खुद लोकतंत्र और नागरिक अधिकारों को नहीं समझ पाया है। 1988 में, सैन्य तानाशाह जनरल जिया उल हक ने तीन-स्तरीय कार्रवाई द्वारा गिलगित-बाल्टिस्तान के लोगों की मांगों को समाप्त करने का निर्णय लिया। सेना की तैनाती, जिसने गिलगित-बाल्टिस्तान आंदोलन में ईरानी हाथ का आरोप लगाया; सशस्त्र पाकिस्तानियों द्वारा गिलगित-बाल्टिस्तान पर आक्रमण, जिन्होंने स्थानीय लोगों के खेतों और दुकानों को लूट लिया और उनके व्यवसाय छीन लिए;

शियाओं और सुन्नियों को विभाजित करें : तब से शिया-सुन्नी दंगे अक्सर होने लगे। उनकी नागरिक अधिकारों की मांगें गायब हो गईं। उनकी आकांक्षाओं को सबसे बड़ा झटका 1994 में तत्कालीन प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो ने दिया, जब उन्होंने पार्टी-आधारित चुनावों की अनुमति देते हुए गिलगित-बाल्टिस्तान के लिए नए सुधारों की घोषणा की। परिणामस्वरूप, सभी पाकिस्तानी राजनीतिक दलों और इस्लामी समूहों ने आगामी चुनाव लडऩे के लिए वहां अपनी शाखाएं खोलनी शुरू कर दीं। 

अब, दुख का एक नया अध्याय शुरू हुआ। 1994 के बाद पाकिस्तान स्थित राजनीतिक दलों ने गिलगित बाल्टिस्तान पर कब्जा कर लिया। ये पार्टियां इस क्षेत्र और यहां के लोगों की समस्याओं से अनभिज्ञ हैं, लेकिन वे पाकिस्तान के हितों को बनाए रखने का दावा करती हैं। इससे भी बुरी बात यह है कि चुनाव के समय स्थानीय मतदाता अपने स्थानीय उम्मीदवारों, जो स्थानीय समस्याओं और उनके समाधान को अच्छी तरह से जानते हैं, की बजाय इन पाकिस्तान-आधारित पार्टियों के उम्मीदवारों को प्राथमिकता देते हैं, जो न तो स्थानीय समस्याओं से अवगत हैं और न ही उन्हें जानना चाहते हैं। गिलगित-बाल्टिस्तान की समस्याओं के प्रति उनकी उदासीनता उनके प्रति ब्रिटिश रवैये की तरह है।

आज जनता सभी मौलिक, नागरिक एवं राजनीतिक अधिकारों से वंचित हो गई है। यदि वे आंदोलन करते हैं, तो उनके नेताओं को पाकिस्तान के आतंकवाद विरोधी कानून के तहत अवैध रूप से हिरासत में ले लिया जाता है। गिलगित-बाल्टिस्तान की तथाकथित विधानसभा लोगों की समस्याओं पर चर्चा नहीं करती। सत्तारूढ़ अभिजात वर्ग विलासिता के लिए धन आबंटित करता है और अपने वेतन और भत्ते बढ़ाता है लेकिन सार्वजनिक कार्यों के लिए वे कहते हैं कोई बजट नहीं है। सरकार स्वच्छ पेयजल, बिजली, स्वास्थ्य सुविधाएं, सड़क, गेहूं, दालें और शिक्षा सुविधाओं जैसी आवश्यकताएं प्रदान करने में लगातार विफल रहती है। 

गिलगित बाल्टिस्तान में पाकिस्तान के खिलाफ विद्रोह की आग भड़क रही है। स्थानीय लोग गिलगित-बाल्टिस्तान की भौगोलिक संरचना को विभाजित करने और बदलने के पाकिस्तान के अधिकार पर सवाल उठा रहे हैं। शायद यह मार्च 1963 में कब्जे वाले कश्मीर को ‘आजाद’ कश्मीर, गिलगित बाल्टिस्तान में विभाजित करने और हुंजा (गिलगित-बाल्टिस्तान) क्षेत्र का एक बड़ा हिस्सा चीन को देने का संदर्भ है। स्थानीय लोग इस बात से हैरान हैं कि पाकिस्तान गिलगित-बाल्टिस्तान की सीमाओं को अज्ञात क्यों बनाए रख रहा है। वे चाहते हैं कि संयुक्त राष्ट्र सैन्य पर्यवेक्षक समूह (यू.एन.एम.ओ.जी.)हस्तक्षेप करे।-सैमुअल बैद 


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