‘पक्की डोर’ से बंधे अमरीका-पाकिस्तान के रिश्ते
punjabkesari.in Thursday, May 15, 2025 - 04:38 AM (IST)

वाशिंगटन में एक मीम खूब चल रहा है-‘अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध खत्म हो गया है’ जो ट्रम्प 2.0 द्वारा भारत और पाकिस्तान के बीच वास्तविक युद्ध की ओर छिटपुट ध्यान देने, अंतिम क्षण में हस्तक्षेप करने तथा श्रेय लेने की उत्सुकता के बारे में बहुत कुछ कहता है। अमरीकी सशस्त्र बलों के कमांडर-इन-चीफ ने सोमवार को दावा किया कि उन्होंने परमाणु युद्ध को रोकने के लिए व्यापार का सहारा लिया था। यदि आप इसे नहीं रोकते हैं तो हम कोई व्यापार नहीं करेंगे। ट्रम्प के अनुसार, यह एक सीधा प्रस्ताव धमकी, सौदा, व्यापार या अमरीकी दिमाग से गायब हो जाने वाला था। भारतीय अधिकारियों ने युद्ध विराम के बारे में दोनों पक्षों के बीच बातचीत में व्यापार के किसी भी उल्लेख से तुरंत और विनम्रता से इंकार कर दिया।
अमरीकी हस्तक्षेप ने दोनों देशों को एक-दूसरे से संदेश प्राप्त करने और निर्णय लेने में मदद की। आग पर रोक लगना, अभी के लिए अच्छी खबर है, इससे पहले कि चक्र फिर से शुरू हो जाए। ट्रम्प ने इसका श्रेय लेने में देर नहीं लगाई। बेशक, ट्रम्प एक युद्ध को रोकने के लिए ऐसा करेंगे जो उनके कैलेंडर पर नहीं था जबकि 2 युद्धों को रोकने में विफल रहे जो उनके कैलेंडर पर थे। तुरंत ही उन्हें ‘शांति राष्ट्रपति’ के रूप में पेश किया गया। दक्षिण एशिया के प्रमुख विशेषज्ञों ने अतीत की तरह दक्षिण एशियाई संकटों में मध्यस्थता करने में अमरीका की अपरिहार्यता का हवाला दिया जबकि मार्को रुबियो की कूटनीति की सराहना की। यह सब अमरीकी आख्यान के लिए अच्छा था।
वाशिंगटन ने उदासीनता के जबड़े से ‘जीत’ छीन ली। जे.डी. वेंस को याद करें, जिन्होंने कहा था कि भारत-पाकिस्तान युद्ध ‘मूल रूप से हमारा काम नहीं है, अपना काम करो’। इस संदेश ने पाकिस्तानियों को चिंतित कर दिया वे ध्यान, प्रासंगिकता और बचाव चाहते थे। अंत में उन्हें भारत की कीमत पर अमरीका से ये तीनों ही चीजें मिल गईं। हां, ऐसा लगता है कि अमरीका अपने जल्दबाजी में बनाए गए बयानों में भारत और पाकिस्तान को फिर से एक साथ लाने की कोशिश कर रहा है। लेकिन वास्तविक नीति तय करने में अर्थव्यवस्था और भू-राजनीति का ज्यादा महत्व है न कि पाकिस्तान की असुरक्षा का। इसके अलावा, पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था मंदी में है। जैसा कि कहा गया है यह काफी अप्रत्याशित है। ट्रम्प लापरवाह हैं कि वह किसी भी दिशा में जा सकते हैं। इससे कोई मदद नहीं मिलती कि दक्षिण एशिया पर प्रशासन की बैंच पतली है।
पॉल कपूर, एक सम्मानित शिक्षाविद्, की अभी तक सहायक सचिव दिल्ली के रूप में पुष्टि नहीं की गई है, जिसके कारण अज्ञात हैं। वरिष्ठ क्षेत्रीय विशेषज्ञों की अनुपस्थिति अमरीका की संलग्न रहने और निर्णयों को प्रभावित करने की क्षमता को कम करती है। दिल्ली में कुछ नाराजगी पैदा हुई। ऐसा लगता है कि यह भाषा पूरी तरह से पाकिस्तान को खुश करने के लिए तैयार की गई है। भारतीय अधिकारियों ने पहले ही इस दावे पर संदेह जताते हुए कहा है कि बातचीत की कोई योजना नहीं है।
कोई भी अमरीकी जिसने इस क्षेत्र से संबंध बनाए हैं, वह जानता होगा कि भारत ने कश्मीर पर तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को स्वीकार नहीं किया है और न ही करेगा। यह भारत के लिए एक गैर-शुरूआती कदम है और पाकिस्तान के लिए यह लोगों को डराने वाली गोली है। इससे ज्यादा कुछ नहीं, इससे कम भी नहीं।
पाकिस्तानी सेना को जीत का दावा करने और देश के बजट का बड़ा हिस्सा पाने के लिए इसने वित्त वर्ष 2025-26 के लिए 18 प्रतिशत की वृद्धि सुनिश्चित की है और असीम मुनीर ने इसे नया जीवन दिया है। भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि बहुत लंबे समय तक कोई बातचीत होने की संभावना नहीं है। एक बार फिर, जब राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में नरेंद्र मोदी ने कहा कि पाकिस्तान के साथ बातचीत केवल आतंकवाद या पी.ओ.के. की वापसी के बारे में हो सकती है। भारत कई बार जल चुका है और पाकिस्तान के सैन्य-खुफिया प्रतिष्ठान द्वारा पनाह, वित्तपोषित और प्रशिक्षित समूहों द्वारा किए गए हमलों में बहुत से नागरिकों को खो चुका है। पाकिस्तानी सेना शांति नहीं चाहती। मोदी सहित शांति समझौते के सभी पिछले प्रयासों को रावलपिंडी की आतंकवादियों की अच्छी तरह से प्रशिक्षित सेना ने विफल कर दिया है। संयोग से, छद्म युद्ध ‘लौह भाई चीन’ के लिए ठीक है क्योंकि यह भारत को व्यस्त और चिंतित रखता है।
इस बार, बीजिंग को बिना किसी पैसे या जानी नुकसान के युद्ध जैसी स्थिति में अपने मंच का परीक्षण करने का मौका मिला। संरक्षक संत की ओर से कोई शिकायत नहीं। केवल आशीर्वाद मिला। पेंटागन के लिए यह अच्छा विचार हो सकता है कि वह मुनीर के जीवन और समय पर गहराई से विचार करे तथा 16 अप्रैल को उसके द्वारा दिए गए भड़काऊ भाषण का अध्ययन करे। पहलगाम में आतंकवादी हमला एक हफ्ते बाद हुआ। 26 ङ्क्षहदू पुरुषों की हत्या का उद्देश्य स्पष्ट रूप से भारत में व्यापक सांप्रदायिक हिंसा को बढ़ावा देना था। ऐसा नहीं हुआ। मुनीर को बहुत निराशा हुई होगी। लेकिन आई.एम.एफ. बेलआऊट और अमरीकी संरक्षण ने इसकी भरपाई कर दी।-सीमा सिरोही