राहुल की परीक्षा का दौर आने वाला है

punjabkesari.in Wednesday, Jan 04, 2023 - 03:33 AM (IST)

कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और कांग्रेस नेता राहुल गांधी के बीच इस साल दिलचस्प मुकाबला होने जा रहा है। वैसे हैरानी की बात है कि मोदी 24 घंटे चुनावी सियासत के बीच रहते हैं और राहुल गांधी सत्ता को जहर मान रहे हैं। खैर, भारत जोड़ो यात्रा के बाद राहुल गांधी को संतों का चोला उतार कर चुनावी चोला पहनना ही है। कुल 9 विधानसभा चुनावों में से 6 में दोनों की आमने-सामने टक्कर होने वाली है। 

साल के शुरूआती महीनों में कर्नाटक और त्रिपुरा में मुकाबला है। साल के अंत में मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में दोनों एक-दूसरे के खिलाफ होंगे। तेलंगाना में भी चुनाव हैं जहां देखना दिलचस्प होगा कि दोनों में दूसरे नंबर पर कौन आता है। 

राहुल गांधी की बात करें तो वह जनवरी तक भारत जोड़ो यात्रा में व्यस्त रहेंगे और उसके बाद हाथ जोड़ो यात्रा में। उसके बाद असली अग्निपरीक्षा होगी। यह परीक्षा भारत जोड़ो यात्रा की भी होगी और खुद राहुल गांधी की भी। खासतौर से कर्नाटक में। यह तय है कि अगर कर्नाटक में कांग्रेस सत्ता में नहीं आ पाई तो भाजपा भारत जोड़ो यात्रा को विफल साबित करने में पूरा जोर लगा देगी। लेकिन अगर कर्नाटक में कांग्रेस जीती तो सेहरा राहुल के सर बांधा जाएगा। लेकिन इससे पहले तो भारत जोड़ो यात्रा के दूसरे चरण की बात करना जरूरी है। सब ठीक रहा तो 30 जनवरी को राहुल गांधी श्रीनगर में लाल चौक पर तिरंगा लहराएंगे। 

अभी तक के कार्यक्रम के अनुसार ऐसा लग रहा है कि उनके साथ फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती भी होंगी। लाल चौक पर भाषण के बाद राहुल गांधी के पास अपनी बात पूरे देश के सामने रखने का बहुत बड़ा मौका होगा। जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को अलग-अलग करने और धारा 370 को हटाने के बाद जम्मू-कश्मीर के लोग खुद को हाशिए पर देख रहे हैं। उन्हें लगता है कि वह अलग-थलग कर दिए गए हैं। 

भारत और पूरी दुनिया में जितनी भी यात्राएं निकली हैं उन्हें निकालने वाले अपने मकसद में काफी हद तक कामयाब रहे हैं। लेकिन इसके लिए यात्रा खत्म होने के बाद फालो अप जरूरी होता है। यही काम राहुल गांधी की टीम को भी करना है। पहले चरण में वह जनता से जुड़ रहे हैं। दूसरे चरण में जनता से इस जुड़ाव को मजबूत करना है। अभी जनता की वह सुन रहे हैं लेकिन जनता दूसरे चरण में उनसे सुनना चाहती है। 

राहुल भी इसे समझ रहे हैं लिहाजा कह रहे हैं कि सिर्फ विपक्ष को एक करने से काम नहीं चलेगा। एक विकल्प भी जनता के सामने रखना होगा। आॢथक नीति क्या होगी, चीन को लेकर नीति क्या होगी, बीमार सरकारी उपक्रम बेचने को लेकर नीति क्या होगी, एफ.डी.आई. को लेकर क्या किया जाएगा, डालर के मुकाबले गिरते रुपए को कैसे थामा जाएगा, महंगाई कैसे कम होगी, बेरोजगारी कैसे दूर की जाएगी, क्या अग्निवीर योजना बंद कर दी जाएगी, क्या देश भर में पुरानी पैंशन स्कीम लागू की जाएगी। ऐसे तमाम सवाल हैं जिनके जवाब जनता सुनना चाहती है। 

यह काम उस विपक्ष को साथ लेकर क्या राहुल कर पाएंगे जो विपक्षी नेताओं को फोन तक करने से कतराते हैं। यू.पी. में जिस तरह से अखिलेश यादव को बुलावा भेजने को लेकर बवाल हुआ उससे साफ हुआ कि बहुत कुछ सीखना बाकी है। अंत में राहुल गांधी की कांग्रेस को विधानसभा चुनाव लडऩे हैं जहां चुनावी राजनीति का सामना करना ही होगा और जीतने के लिए तमाम हथकंडे अपनाने ही होंगे जिनसे वह बचते रहे हैं। 

वैसे यह अपने आप में हैरान करने वाला है कि राहुल गांधी कांग्रेस की विचारधारा को राष्ट्रीय बताते हैं और अखिलेश की पार्टी की विचारधारा को यू.पी. तक ही सीमित रखते हैं लेकिन इसके बावजूद अखिलेश यादव राहुल गांधी को खत लिखकर यात्रा के मकसद की सराहना करते हैं। इससे साफ है कि बात आगे की जाए तो बात बन भी सकती है। यहां नीतीश कुमार क्या राहुल के सारथी बनेंगे। क्या विरोधी दलों में समन्वय करने का काम नीतीश कुमार संभालेंगे। अगर ऐसा हुआ तो 2023 के जाते-जाते और 2024 के आते-आते विपक्षी एकता का कोई रूप सामने आ भी सकता है। 

राहुल गांधी यह सब करते रहेंगे और मोदी अमित शाह चुप बैठे देखते रहेंगे, ऐसी कल्पना भी नहीं की जानी चाहिए। मोदी केन्द्र में सत्ता में हैं। वह जानते हैं यह साल महंगाई, बेरोजगारी का साल है। ऐसे में एक फरवरी को वह ऐसा तीर चला सकते हैं जिससे सारे विरोधी दल एक झटके से घायल हो जाएं। हम बात कर रहे हैं एक फरवरी को सामने आने वाले बजट की। तय है कि बजट में थोक के भाव रेवडिय़ां बांटी जाएंगी। 

भाजपा के पास पैसों की कोई कमी नहीं है। चुनावी बांड स्कीम पर अगर सुप्रीम कोर्ट ने लाल झंडी नहीं दिखाई तो भाजपा को चुनाव को महंगा बनाने से कोई रोक नहीं पाएगा। इसके अलावा संघ के 2025 में सौ साल पूरे हो रहे हैं। 2024 से सौवीं वर्षगांठ मनाने का सिलसिला शुरू हो जाएगा। ऐसे में संघ कभी नहीं चाहेगा कि जब वह उत्सव मना रहा हो तब केन्द्र में मोदी सरकार नहीं हो। 

लिहाजा संघ पूरा जोर लगा देगा इसमें किसी को संदेह नहीं होना चाहिए। राम मंदिर का निर्माण साल के अंत तक पूरा हो जाएगा, नई संसद काम करने लगेगी, जी-20 देशों की मेजबानी शहर-शहर हो रही होगी , समान नागरिक संहिता पर चर्चा हो रही होगी। कुल मिलाकर 2023 के विधानसभा चुनाव अगर भाजपा हार भी जाती है तो भी 2024 की उसकी संभावना पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा. लेकिन विपक्ष खासतौर पर कांग्रेस अगर विधानसभा चुनाव हारती है तो 2024 में वह उठ नहीं पाएगी।-विजय विद्रोही


 


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