रूस में पुतिन का एकछत्र वर्चस्व बरकरार

punjabkesari.in Friday, Mar 23, 2018 - 02:46 AM (IST)

मार्च 18, 2018 के रूसी राष्ट्रपति पद के चुनाव में अपेक्षा के अनुरूप व्लादिमीर पुतिन ने अपना वर्चस्व कायम रखते हुए विपक्षी दलों के धांधलियों के तमाम आरोप नकारते हुए रूस की सर्वोच्च सत्ता अगले 6 सालों के लिए फिर हासिल कर ली। 1999 से रूस की सत्ता के केंद्र बने पुतिन को सही तरीके से तो चुनाव में चुनौती भी नहीं मिली।

पुतिन को कुल पड़े मतों के तकरीबन 76 प्रतिशत मत मिले। मुख्य विरोधी नेता एलेक्सी नेवेलनी को चुनाव से पहले ही बाहर किया जा चुका था। उनकी चुनावों के बहिष्कार की अपील भी पुतिन के पक्ष में गई। चुनाव में पुतिन के निकटतम प्रतिद्वंद्वी अरबपति कम्युनिस्ट नेता पॉवेल गरडीनिन को सिर्फ 12 प्रतिशत मत मिले। 1999 से कभी रूसी महासंघ के प्रधानमंत्री तो कभी राष्ट्रपति रहे पुतिन जब अपना नया कार्यकाल पूरा करेंगे तो रूस में सत्ता के एकमात्र केंद्र के रूप में रहे उन्हें 24 साल हो चुके होंगे। 1999 में रूसी राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन के इस्तीफे के बाद पुतिन उनकी जगह सत्ता में आए थे। पुतिन के सत्ता में आने से पहले रूस में निराशा का माहौल था। रूसी उस समय यह मानते थे कि मिखाइल गोर्बाचोव के कमजोर नेतृत्व के कारण सोवियत संघ टूटा, विश्व में रूस का दबदबा कम हुआ और रूस में आर्थिक संकट आया। 

गोर्बाचोव के बाद बोरिस येल्तसिन के ढुलमुल रवैये से भी लोग खुश नहीं थे। पुतिन ने आने के बाद रूसी अर्थव्यवस्था को सुधारना शुरू किया। उनके आने के बाद रूसी निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। रूसी अर्थव्यवस्था के सुधरने से रूस में बेरोजगारी कम हुई और आम लोगों के जीवनस्तर में उल्लेखनीय सुधार आया। पुतिन ने रूसी लोगों में राष्ट्रवादी भावनाएं और रूसी स्वाभिमान फिर से जागृत किया। उन्होंने लोगों को यह विश्वास दिलाया कि अगर वह होते तो शायद सोवियत संघ का विघटन नहीं होता और उनके होते रूस का कोई हिस्सा आगे कभी अलग नहीं होगा। अपने कार्यकालों के दौरान आतंकवाद, चेचेन्या और नाटो के मुद्दों पर उनके कड़े रुख को पूरे रूस में अपार जनसमर्थन मिला है। क्रीमिया संकट के दौरान भी उन्होंने बेहद कड़े रुख का परिचय देते हुए ताकत का डर दिखाकर और कूटनीति के बल पर आखिरकार क्रीमिया को रूस में मिला ही लिया।

क्रीमिया मसले के बाद से ही रूस के संबंध अधिकांश पश्चिमी देशों से खराब हुए हैं और पश्चिम में रूस की छवि एक धमकाने वाले आक्रमणकारी देश की भी बनी है। जहां तक बात भारत-रूस संबंधों की है तो उनमें रूस में यथास्थिति बने रहने से सुधार ही आएगा। रूस भारत के सबसे महत्वपूर्ण सामरिक, सैन्य, आॢथक और व्यापारिक सांझेदारों में से एक है। भारत-रूस की मित्रता अलग-अलग दौर में भी कसौटी पर खरी उतरी है। भारत चाहेगा कि रूस अब नए सिरे से चीन-पाकिस्तान धुरी पर दबाव बनाए। रूस से भारत के हथियार निर्यात में थोड़ी कमी होने के बाद भी दूसरे उत्पादों में व्यापार की बढ़ौतरी होने की उम्मीद है। भारत-रूस द्विपक्षीय व्यापार को 2025 तक 30 बिलियन डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है। अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर रूस पिछले कुछ सालों में भारत के साथ वैसे खड़ा नहीं दिखा है, जैसे अतीत में था, पर आपसी वार्ता से संबंधों को फिर उच्चतम स्तर पर पहुंचाया जा सकता है। 

रूस की मुख्य चिंता भारत-अमरीकी संबंधों में निरंतर बढ़ती प्रगाढ़ता और भारत-अमरीकी व्यापार, जिसमें भारत का हथियार आयात भी शामिल है, का लगातार बढऩा है। दूसरी तरफ भारत रूस की चीन, पाकिस्तान से लगातार बढ़ती नजदीकियों से परेशान है। उम्मीद की जानी चाहिए कि पुतिन के इस कार्यकाल में भारत-रूस संबंध फिर नई ऊंचाइयों को छुएंगे। पुतिन-मोदी के बीच व्यक्तिगत रूप से उतनी घनिष्ठता भले न हो जितनी मोदी-नेतन्याहू या मोदी-ओबामा में थी पर देशों के बीच संबंध व्यक्तिगत कैमिस्ट्री से कहीं ज्यादा होते हैं। यह भी उम्मीद की जा सकती है कि भारत-ईरान-रूस रेल-सड़क-समुद्रीय आर्थिक गलियारे की योजना अब तेजी से मूर्तरूप लेगी जो भारत के मुंबई को ईरान के चाबहार बंदरगाह से होते हुए रूस के सेंट पीटर्सबर्ग से जोड़ेगी। इस योजना को इंटरनैशनल नार्थ-साऊथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर नाम दिया गया है। तकरीबन 7000 कि.मी. लंबा यह मार्ग भारत से ईरान और अजरबाइजान होता हुआ रूस के सेंट पीटर्सबर्ग तक पहुंचेगा जो भारत को सीधा यूरोप से जोड़ेगा।-अमरीश सरकानगो


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