पंजाब ‘नशेड़ी’ नहीं, ‘खिलाड़ी’ पैदा करना चाहता

punjabkesari.in Sunday, Dec 15, 2019 - 03:22 AM (IST)

पंजाब सरकार ने गत दिवस गुरु नानक देव जी के 550वें प्रकाश उत्सव को समर्पित अंतर्राष्ट्रीय कबड्डी कप खेल मेला करवाया। अच्छी बात है। पंजाब सरकार यह दावा करती है कि वह पंजाबी युवकों को नशों से बाहर निकालकर खेल की ओर ले जाना चाहती है ताकि एक अच्छे समाज की सृजना हो सके। ऐसा विचार भी पंजाब सरकार को बधाई का हकदार बनाता है। सरकार ने ऐसे कार्य करने ही होते हैं, जिनसे मानवीय विकास जुड़ा है।

मगर जब इस बात की तह तक पहुंचते हैं तो मुझे हैरानी हुई कि सरकार कह क्या रही है और हो क्या रहा है। पहला प्रश्र तो मन में यही आया कि क्या सरकार का कार्य खेल मेले आयोजित करना है। मौजूदा सरकार तो थोड़ी सी ढीली भी पड़ गई। हमारे पूर्व उपमुख्यमंत्री साहिब तो इन कबड्डी मेलों में अपनी हाजिरी लगवाते रहे हैं। यदि सरकार का यह कार्य नहीं है तो उन विभागों की कार्यशैली पर भी निगाह दौड़ाई जाए जिनके कार्य क्षेत्र के अधीन खेल आते हैं। जो हालात इस क्षेत्र में पंजाब के हैं उन पर सोचा भी नहीं जा सकता। इनको बहुत बारीकी से समझने की जरूरत है। 

विभागों को सशक्त बनाने की जगह सरकार खेलती है राजनीति
पहली बात तो यह है कि जब हम खेल सभ्याचार को समझते हैं तो विश्वस्तर पर भारत में खेल का मतलब सेहत के ऊपर ध्यान देने के अलावा मनोरंजन करना भी है। फिर उनमें से ही अच्छे खिलाडिय़ों का चयन किया जाए, फिर उसके बाद उनको मुकाबले के लिए तैयार किया जाए। उसके बाद उनकी श्रेणियां बनाई जाती हैं मगर यह ध्यान देने योग्य बात है कि लोगों की भागीदारी वाला नुक्ता बहुत अहम है। अब इसके तीन भाग बन गए, तंदुरुस्ती, मनोरंजन और मुकाबला। मगर पंजाब में खेल सभ्याचार की मूल भावना ही खत्म कर दी गई। 

किसी भी सरकार ने भावना के साथ कार्य नहीं किया। सरकारें अपने विभागों की अनदेखी कर खुद खेल मेले आयोजित करने लग पड़ीं। सरकारों ने विभागों में सुधार तो नहीं किया, न ही उनको स्वायत्तता दी। इसके साथ-साथ धन के अभाव ने भी उनकी कमर तोड़ दी। पंजाब सरकार के खेल ढांचे की अगर बात करें तो वहां स्थिति और भी भयानक है। यहां पर यह दो भागों में बंटा हुआ है। स्कूल/कालेजों का वर्ग जो आगे जाकर विश्वविद्यालयों के अंतर्गत कार्य निभाता है। दूसरा है खेल विभाग। पहले के अनुसार इन्होंने स्कूल/कालेजों में विंग कायम करने होते हैं जहां पर ये ट्रायल खुद लेते हैं। यदि छात्र डे स्कालर है तो उसको डाइट देनी पड़ती है जो कि 100 रुपए के करीब बनती है। यदि वह रैजीडैंशियल है तो यह राशि दोगुनी कर दी जाती है, जिसमें अन्य खर्चे भी शामिल हो जाते हैं। 

अब सवाल यह उठता है कि ऐसे खिलाडिय़ों की पंजाब में कितनी संख्या है। दूसरा विभाग के आगे दो भाग हैं। पंजाब इंस्टीच्यूट आफ स्पोर्ट्स तथा पंजाब स्पोर्ट्स डिपार्टमैंट। इनमें सारे पंजाब से 200 से 250 से ज्यादा रैगुलर कोच नहीं हैं। कुल मिलाकर कोचों की संख्या 350 से ज्यादा नहीं। फिर पंजाब की जनसंख्या के साथ जमा-घटा कर इनकी हालत का अंदाजा लगाया जा सकता है। हम दूर न भी जाएं तो लाखों की आबादी वाले जालंधर शहर में यह विभाग स्कूलों/कालेजों के विभागों के अधीन खेलने वाले मात्र 700 खिलाडिय़ों को डाइट दे पा रहा है। फिर एक बात और है जो बेहद महत्वपूर्ण है कि किसी भी जिले में जिला स्पोर्ट्स अधिकारी रैगुलर नहीं है। सब ओर कार्यवाहक हैं। 

गुत्थी में बंद पंजाब की खेल नीति 
खेल नीति हमारे पूर्व खिलाड़ी परगट सिंह ने बनाई थी। वह अभी तक गुत्थी में बंद है। इसके तहत हमने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नाम कमाने वाले खिलाडिय़ों को पुरस्कार देना होता है जिसमें नकद ईनाम भी शामिल है। मगर अफसोस कि हम इस नीति को रैगुलर नहीं कर सके। 4-5 वर्षों के बाद नाम के तौर पर समारोह करवा दिए जाते हैं। पंजाब सरकार के महाराजा रणजीत सिंह अवार्ड से भी यही बात घटी है। जब दिल किया समारोह कर लिए। न किए यह तो कौन पूछने वाला है। इसका मन्तव्य क्या है। स्पष्ट है कि सरकार का इस महत्वपूर्ण पहलू की ओर ध्यान ही नहीं। बात यह है कि हम नशेड़ी नहीं, खिलाड़ी पैदा करना चाहते हैं। 

पंजाब सरकार का इस ओर बजट के मामले में भी बुरा हाल है। इस ओर सरकार पैसा खर्च ही नहीं करना चाहती। इस मामले में हम केन्द्र सरकार की ओर झांकते हैं। ‘खेलो पंजाब’ कार्यक्रम की रूपरेखा जो तैयार की गई थी वह भी भारत सरकार के ‘खेलो इंडिया’ कार्यक्रम के आसरे पर ही थी। भारत सरकार का खेल मंत्रालय क्या कार्यक्रम बनाता है, यह उस पर निर्भर करता है। केन्द्र सरकार राज्यों को इस मामले में कहां रखती है यह भी विचारने वाली बात है। सरकार क्यों नहीं हमारी संस्थाओं को सशक्त करती। हमारे पास पंजाब कबड्डी एसोसिएशन, पंजाब एथलैटिक्स एसोसिएशन, पंजाब फुटबाल एसोसिएशन और हाकी पंजाब हैं। 

सरकारें इनको मजबूत नहीं करतीं क्योंकि इसमें भी राजनीति है। किसको आगे बढ़ाना है तथा किसकी कमर तोडऩी है यह भी देखा जाता है। अब कबड्डी एसोसिएशन के अध्यक्ष तो हैं सिकंदर सिंह मलूका, फिर किसी अकाली की अध्यक्षता वाली एसोसिएशन को कांग्रेस की सरकार कैसे एंटरटेन कर सकती है। ये सब सियासी लफड़े हैं। ये मसले बहुत बारीक हैं मगर इनकी मारक क्षमता बहुत बड़ी है। सरकार कुछ कर रही है और विरोधी पक्ष टांगें अड़ा रहा है। पहले कुछ एन.आर.आइज पंजाब को खेल से जोडऩे का प्रयास करते रहे हैं परंतु विश्व मंदी के बाद उनकी भी आर्थिक पक्ष के तौर पर कमर टूटी हुई है, वह भी दो दशकों से इससे मुंह मोड़े हुए हैं। अब गांवों में कुछ खिलाड़ी निजी तौर पर जोर तो लगा रहे हैं मगर सरकारें इस ओर असफल हैं।-हरफ हकीकी/देसराज काली
 


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