फ्रांस में पैंशन सुधारों पर जनता का बवाल

punjabkesari.in Monday, Dec 09, 2019 - 01:14 AM (IST)

वीरवार को फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों जैसे ही नाटो सम्मेलन से पैरिस लौटे उनका स्वागत देशवासियों के रोष से हुआ। वे उनके लिए वही वाक्यांश इस्तेमाल कर रहे थे जो कभी मैक्रों ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के लिए इस्तेमाल किए थे- ‘लैट्स गैट सीरियस’ (चलो अब गम्भीर हो जाएं)। अढ़ाई वर्ष लम्बे शासन में से लगभग 1 पूरा साल उन्होंने ‘यैलो वैस्ट’ आंदोलन का सामना किया है। उस दौरान रोजगार की रक्षा के लिए लोगों ने केवल शनिवार को विरोध किया परंतु इस बार शिक्षक यूनियन और  ट्रांसपोर्टर्स ही विरोध नहीं कर रहे हैं बल्कि स्कूल तथा कॉलेज तक बंद हैं। 

हांगकांग के विपरीत जहां केवल शनिवार और रविवार को विरोध होते हैं ताकि सारा सप्ताह खराब न हो, फ्रांसीसियों को संडे से प्रेम है इसलिए वे सप्ताह के बाकी दिन ही प्रदर्शन करेंगे। वास्तव में फ्रांस ही एकमात्र ऐसा राष्ट्र है जहां जुलाई में छुट्टियां होती हैं। 14 जुलाई को नैशनल डे के ठीक बाद आपात सेवाओं के सिवा सभी छुट्टियों पर चले जाते हैं। 1789 की क्रांति में राजतंत्र को उखाड़ फैंकने के पश्चात समाजवादी नीतियां अपनाई गईं तथा जनता ने फ्री सोशल हैल्थ सॢवस, पैंशन तथा अन्य हितों की मांग की और उन्हें यह सब मिला भी। 

वास्तव में वर्तमान हड़ताल का आह्वान राष्ट्रपति मैक्रों द्वारा पैंशन सुधारों के प्रस्ताव के विरोध में शुरू हुआ है। 42 विभिन्न पैंशन योजनाओं वाले फ्रांस में विश्व की सबसे जटिल तथा लाभप्रद पैंशन व्यवस्था है जो देश को हर साल 19 बिलियन डॉलर घाटे की ओर ले जा रही है। उदाहरणार्थ कुछ रेलवे वर्कर 52 वर्ष की उम्र में रिटायर हो सकते हैं। औद्योगिक जगत में फ्रांस की रिटायरमैंट उम्र सबसे कम है। इस प्रकार फ्रांस में उम्रदराज लोगों में गरीबी की दर सबसे कम है परंतु इसकी वजह से सरकार को भारी घाटा सहना पड़ रहा है। 

शासन सम्भालते वक्त राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने नीति निर्माण में लोगों की अधिक रायशुमारी तथा उस सिस्टम में सुधार करने का वायदा किया जिसकी वजह से देश में औद्योगिक विकास थमा है और ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनैस’ (कारोबार करने में आसानी) का नामोनिशान नहीं है। इसका परिणाम अर्थव्यवस्था पर बेहद बुरा पड़ा है और यूनियनों का भी बोलबाला है। 

हड़ताल की शुरूआत  बुधवार को  होने लगी जब नैशनल रेलवे एस.एन.सी.एफ. के कर्मचारियों ने काम बंद कर दिया। कर्मचारियों की हड़ताल से सारे फ्रांस के ठप्प पड़ जाने का खतरा है क्योंकि शिक्षक, छात्र, अस्पताल स्टाफ, पुलिस वाले, कूड़ा उठाने वाले, ट्रक ड्राइवर तथा एयरलाइन वर्कर सभी शुक्रवार तक इस हड़ताल से जुडऩे की योजना बना रहे थे। पैरिस में पैलेस डी ला रिपब्लिक से धुआं उठ रहा था, प्रदर्शनकारियों पर आंसूगैस छोडऩी पड़ी। नानतेस तथा ल्योन जैसे अन्य शहरों में पुलिस तथा प्रदर्शनकारियों में झड़प भी देखी गई। 

वास्तव में स्थिति वैसी नहीं जैसी मार्गरेट थैचर के वक्त इंगलैंड में थी जब उन्होंने यूनियन वालों से लड़ कर वहां कामकाज के तरीकों को बदलने की कोशिश की थी। फ्रांस में एक अन्य बड़ा कारक भी इस विरोध से जुड़ा हुआ है कि लोगों को विशेष लाभ छीन लिए जाने से नाराजगी तो है ही, उनमें राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के विरुद्ध भी गहरा रोष व्याप्त है। लोग उन्हें अक्षम तथा अहंकारी मान रहे हैं। इससे स्पष्ट है कि उनकी नीतियां कहीं न कहीं जनता को रास नहीं आ रही हैं। ऐेसे में वर्तमान परिस्थितियों में तो यह विरोध जल्द थमने वाला नहीं लगता।


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