ईरान में हिजाब पर जन-आक्रोश

punjabkesari.in Wednesday, Nov 23, 2022 - 05:44 AM (IST)

ईरान में हिजाब के मामले ने जबर्दस्त तूल पकड़ लिया है। पिछले 2 माह में 400 लोग मारे गए हैं, जिनमें 58 बच्चे भी हैं। ईरान के गांव-गांव और शहर-शहर में आजकल वैसे ही हिंसक प्रदर्शन हो रहे हैं, जैसे कि अब से लगभग 50 साल पहले शंहशाहे-ईरान के खिलाफ होते थे। इसके कारण तो कई हैं, लेकिन यह मामला इसलिए भड़क उठा है कि 16 सितम्बर को एक मासा अमीनी नामक युवती की जेल में मौत हो गई। उसे कुछ दिन पहले गिरफ्तार किया गया था और जेल में उसकी बुरी तरह से पिटाई हुई थी। उसका दोष सिर्फ इतना था कि उसने हिजाब नहीं पहन रखा था।

हिजाब नहीं पहनने के कारण पहले भी कई ईरानी स्त्रियों को बेइज्जती और सजा भुगतनी पड़ी है। कई युवतियों ने तो टी.वी. चैनलों पर माफी मांग कर अपनी जान बचाई है। यह जन-आक्रोश तीव्र रूप धारण करता जा रहा है। अब लोग न तो आयतुल्लाहों के फरमानों को मान रहे हैं और न ही राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी की धमकियों की परवाह कर रहे हैं। ईरानी फौज के प्रमुख मेजर जनरल हुसैन सलामी ने पिछले दिनों एक बयान में कहा है कि यह जन-आक्रोश स्वाभाविक नहीं है। ईरान की जनता पक्की इस्लामी है।

वह हिजाब को बेहद जरूरी मानती है लेकिन अमरीका, सऊदी अरब, यू.ए.ई. और इसराईल जैसे ईरान-विरोधी देशों ने ईरानी जनता को भड़का दिया है। लेकिन असलियत तो यह है कि ईरान में इस्लामी राज्य शुद्ध डंडे के जोर पर चल रहा है। 80 प्रतिशत से भी ज्यादा जनता वहां हिजाब के विरुद्ध है। पिछले 50-55 सालों में मुझे ईरान में कई बार रह कर पढऩे और पढ़ाने का मौका मिला है। शहंशाह के जमाने में ईरान की महिलाएं अपनी वेशभूषा और व्यवहार में यूरोपीय महिलाओं से भी अधिक आधुनिक लगती थीं, लेकिन ईरान के दर्जनों गांवों में मैं तब भी हिजाब, नकाब और बुर्काधारी महिलाओं को जरूर देखता था। जब से आयतुल्लाह खुमैनी का शासन (1979) ईरान में आया है, ईरानी महिलाओं का दम घुट रहा है।

पहले भी दो बार इस तथाकथित इस्लामी शासन के खिलाफ बगावत का माहौल बना था लेकिन अमीनी का यह मामला इतना तूल पकड़ लेगा, इसका किसी को अंदाज भी नहीं था। कल-परसों तो फुटबाल के विश्व कप टूर्नामैंट में ईरान की टीम ने अपने राष्ट्रगान को गाने से भी मना कर दिया था। ईरानी लोग अपनी इस टीम को राष्ट्रीय सम्मान का प्रतीक मानते हैं। हिजाब के विरोध ने आर्थिक कठिनाइयों में फंसे ईरान के कोढ़ में खाज का काम किया है। इस्लामपरस्त लोग भी खुले-आम कह रहे हैं कि कुरान शरीफ में कहीं भी हिजाब को औरतों के लिए अनिवार्य नहीं बताया गया है। भारत में चाहे हिजाब के लिए हमारी कुछ मुस्लिम बहनें काफी शोर मचा रही हैं, लेकिन यूरोप के कई देशों ने तो उस पर प्रतिबंध लगा दिया है। -डा. वेदप्रताप वैदिक


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