यहां राजनीति क्षण-क्षण बदलती रहती है

punjabkesari.in Sunday, Mar 21, 2021 - 04:24 AM (IST)

कांग्रेस पंजाब की सत्ता पर काबिज है। सपना पुन: 2022 के चुनावों पर सत्ता वापसी का देख रही है परन्तु कांग्रेस का वर्तमान काल निराशाजनक रहा है। यदि 2022 के बाद कांग्रेस पुन: सत्ता में आती है तो यकीनन अन्य राजनीतिक दलों के लिए वह कालखंड और निराशाजनक होगा। आज कांग्रेस किसान आंदोलन के रथ पर सवार है। भारतीय जनता पार्टी के नेताओं को पिटते देख आनंद का अनुभव कर रही है परन्तु कांग्रेस यह नहीं समझ रही कि राजनीति क्षण-क्षण बदलती रहती है। शाह और मोदी की युगलबंदी लगातार असंभव को संभव करती जा रही है। 

कांग्रेस किसी मुगालते में न रहे कि पंजाब सदा ऐसी ही राजनीति को झेलता रहेगा। हालात यकीनन बदल जाएंगे। संभव है किसान कल अपने-अपने खेतों की ओर लौट जाएं परन्तु आज के राजनीतिक संदर्भ में एक निवेदन शिरोमणि अकाली और भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व से अवश्य करूंगा कि यह ‘चिंतन काल’ है। लक्ष्मण रेखाओं का वेदनकाल है। राजनीतिक सर्वेक्षण कह रहा है कि शिरोमणि अकाली दल 2022 के चुनाव में अधिक से अधिक 30 सीटें जीतता दिखाई देता है। अत: शिरोमणि अकाली दल पुन: किसी संत फतेह सिंह या जत्थेदार गुरचरण सिंह टोहरा की तलाश करे। 

भारतीय जनता पार्टी किसी डाक्टर बलदेव प्रकाश या वीर यज्ञदत्त शर्मा को ढूंढे। आज के आक्रामक नेता भूल गए होंगे परन्तु पंजाब की वर्तमान राजनीति में चिंतक कहां से लाओगे? टकराव, तनाव और किसान आंदोलन की तपिश में पंजाब के माथे पर बर्फ की पट्टियां कौन रखेगा? कटुभाषा और एक-दूसरे दल पर उठती उंगलियां कौन नीचे करेगा? विगलित नीतियां पहले ही एक विशाल हरे-भरे प्रांत को ‘पंजाबीसूबा’ बना चुकी हैं। कोई भी पंजाब का हितचिंतक इस बात पर पश्चाताप नहीं कर रहा कि इसी पंजाब का उपयोगी और जरखेज क्षेत्र हरियाणा बन गया। इसी पंजाब का खूबसूरत, देवतुल्य इलाका हिमाचल बन गया। पंजाब का शृंगार ‘चंडीगढ़’ केंद्रशासित प्रदेश कहला रहा है। 

हमारे पास है क्या-चावल और गेहूं? और यदि किसान आंदोलन लम्बा ङ्क्षखच गया तो चावल गेहूं भी गया। अत: पंजाब की हितचिंतक पार्टियां आक्रामक होने से पहले रुकें, थोड़ा सोचें और फिर एक-दूसरे पर यदि लगता है तो हमला करें। पंजाब की जवानी नशे से बचे, उसे काम मिले, तीन ही दरिया बचे हैं, उन्हें गन्दे नाले बनने से बचाएं। संत सीचेवाल की सुध लें।

मुझे तो 1967 के राजनेता याद आने लगे हैं। कहीं मास्टर तारा सिंह, कहीं संत फतेह सिंह, कहीं जत्थेदार टोहरा, कहीं तलवंडी, कहीं जस्टिस गुरनाम सिंह, कहीं सरदार लक्ष्मण सिंह गिल, कहीं युवा प्रकाश सिंह बादल सभी शिरोमणि अकाली दल की शान हुआ करते थे। दूसरी ओर जनसंघ में डा. बलदेव प्रकाश, बलराम जी दास टंडन, वीर यज्ञदत्त शर्मा, बाबू हिताभिलाषी, लाला लाजपत राय, विश्वनाथन, हरबंस लाल खन्ना सभी ङ्क्षचतक। पंजाब की राजनीति दो ध्रुवों के बीच प्रतिद्वंद्विता की होती। 

एक तरफ संत फतेह सिंह का आमरण अनशन कि ‘पंजाबी सूबा’ बनाओ दूसरी तरफ वीर यज्ञदत्त का मरणव्रत कि ‘महा पंजाब’ बनाओ। समाधान क्या निकला? चुनाव हुए, आपसी कटुता खत्म कर जस्ट्सि गुरनाम सिंह को पंजाब का मुख्यमंत्री बना दिया। डा. बलदेव प्रकाश, सतपाल डांग आपसी उल्ट विचारधाराओं के नेता उनके मंत्रिमंडल में मंत्री बन गए। उन्हीं चिंतावान नेताओं की सोच का सदका था कि अकाली दल (फतेह सिंह ग्रुप) अकाली दल (मास्टर तारा सिंह ग्रुप), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, सोशलिस्ट, जनसंघ, रिपब्लिकन पार्टी और आजाद उम्मीदवारों को इकट्ठा कर पंजाब की हकूमत पर बिठा दिया। 

आतंकवाद के ‘अंधे युग’ के कार्यकाल को छोड़ दें तो यह ‘नहूं मांस’ का रिश्ता निभता ही चला आया। कई बार पंजाब में इस रिश्ते ने सत्ता का भोग किया है। इसी रिश्ते ने पंजाब विधानसभा की 117 सीटों में से कभी (56+12) 68 सीटें जीतीं तो कभी 48+19 का आंकड़ा छू कर दो-दो बार पंजाब की सत्ता पर राज किया। लोकसभा में 8+3 सीटें जीत कर गठबंधन धर्म को निभाया। पर आज मेरा मकसद यह कदापि नहीं कि भारतीय जनता पार्टी और शिरोमणि अकाली दल का गठबंधन पुन: बने। मैं यह कहना चाहता हूं कि दोनों दल लम्बा अर्सा इकट्ठे चले हैं तो इकट्ठे चलने का थोड़ा-सा लिहाज करके चलें। 

तलवारें क्यों खिंच गईं? गाली-गलौच क्यों? मरने-मारने की नौबत क्यों आए? दिल मिले न मिले कम से कम हाथ तो मिलाते रहिए। पद्मश्री के अलंकार से ही तुम्हें कोई क्यों छोड़ गया? भारतीय जनता पार्टी भी विचार करे कि किसान आंदोलन को कांग्रेस क्यों उड़ा कर ले गई? अपना किसान, अपना अन्नदाता, अपना गौरव यह किसान भाजपा को गैर क्यों समझने लगा? क्यों भाजपा के छोटे-बड़े कार्यकत्र्ता को घेर कर खड़ा है? आक्रामक मत होइए।-मा. मोहन लाल (पूर्व परिवहन मंत्री, पंजाब)


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