अपनी जिम्मेदारी से पल्ला न झाड़ें राजनीतिक दल

punjabkesari.in Friday, Jun 07, 2024 - 05:50 AM (IST)

2024 के लोकसभा चुनाव के नतीजों ने सभी को चौंका दिया है। सत्तापक्ष के बड़े-बड़े दावे और उसी से मिलते-जुलते एग्जिट पोल के बाद किसी को ऐसी उम्मीद नहीं थी। हालांकि ‘इंडिया’ गठबंधन के नेताओं के अलावा एक-दो ज्योतिषियों ने टी.वी. चैनलों पर एग्जिट पोल को सिरे से नकार दिया था। पर ‘इंडिया’ गठबंधन पर जिस तरह देश के मतदाताओं ने भरोसा जताया है उससे तो यही सिद्ध हुआ है कि देश में ‘लोक’ का ‘तंत्र’ अभी जीवित है। 

अब सरकार जिस गठबंधन की भी बने देश की संसद में विपक्ष को भी अच्छी संख्या में स्थान मिलेगा। जो भी सरकार बनाएगा अब उसे विपक्ष के दबाव में रह कर कार्य करने पड़ेंगे। एक स्वस्थ लोकतंत्र में मजबूत विपक्ष का होना भी अनिवार्य है। इसलिए 2024 का चुनाव सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों के लिए ही अच्छा साबित हुआ। चुनावों के दौरान जिस तरह ‘इंडिया’ गठबंधन चुनाव आयोग की मशीनरी पर कई तरह के सवाल उठा रहा था उससे आम जनता के मन में भी भ्रम पैदा होने शुरू हो गए थे। लेकिन लोकसभा नतीजों ने एक बार फिर से यह विश्वास जगाया है कि चुनावों में मतदाता ही सर्वोपरि होते हैं। इस बार के चुनावों में किसी भी दल या नेता की, किसी भी तरह की, कोई भी लहर नहीं थी। ये चुनाव जनता का चुनाव था। देश भर में फैल रही महंगाई, बेरोजगारी व अन्य परेशानियों से मतदाता त्रस्त था। इसलिए उसे जो जंचा उसी को उसने वोट दिया। आखिरी चरण के मतदान के बाद से जो भी एग्जिट पोल आए वह भी एन.डी.ए. की ही सरकार बना रहे थे। परंतु एग्जिट पोल केवल पोल-पट्टी साबित हुए। 

चुनाव परिणाम के बाद एग्जिट पोल करने वाली एक संस्था के अध्यक्ष जिस तरह एक राष्ट्रीय टी.वी. चैनल पर फूट-फूट कर रोने लगे उससे तो यह लगा कि उन्हें अपनी करनी पर पछतावा है। पर कई बार जो सामने दिखाई देता है वह असल में सच नहीं होता। उसके पीछे का सच कुछ और होता है। इन सज्जन के विषय में आज ऐसी शंका देश भर में जताई जा रही है। इसका एक कारण यह है कि बिना सर्वेक्षण तकनीकी की बारीकी बताए, बिना सैंपल साइज बताए, बिना प्रश्नावली के प्रश्न बताए, केवल अपना आकलन प्रचारित कर देना अनैतिक होता है। सोचने वाली बात यह है कि जो भी संस्था एग्जिट पोल करती है उसे यह बताने में क्या गुरेज होता है कि उसने एग्जिट पोल करने की मानक प्रक्रिया को अपनाया या नहीं? ऐसा तो नहीं है कि ये एग्जिट पोल निहित स्वार्थों के किसी एजैंडा के तहत किए गए? क्या ऐसे सर्वे कराने में किसी मीडिया संस्थान की भी संदिग्ध भूमिका रही? 

मिसाल के तौर पर जिस तरह 2024 के लोकसभा चुनावों के एग्जिट पोल दिखाए गए और उसकी प्रतिक्रिया को लेकर देश के शेयर मार्कीट में एकदम से भारी उछाल आया उससे आकॢषत होकर देश के करोड़ों आम निवेशकों ने विश्वास करके बाजार में निवेश कर डाला। परंतु नतीजों के रुझान आने पर शेयर मार्कीट बुरी तरह लुढ़का और आम निवेशकों के करोड़ों रुपए स्वाहा हो गए। इससे तो यह साफ प्रतीत होता है कि एकतरफा नतीजे को प्रचारित करके किसी विशेष उद्देश्य से ही एग्जिट पोल को इतना प्रचारित किया गया। इसका नतीजा यह हुआ कि अब जब कोई भी संस्था ईमानदारी से भी एग्जिट पोल या सर्वे करेगी तो उस पर भी संदेह किया जाएगा। शायद गुमराह करने वाले एग्जिट पोल और उसी का प्रचार करने वाले पक्षपाती मीडिया संस्थानों को इस बात का अंदाजा नहीं था कि नतीजे उनके सर्वेक्षण के विपरीत भी आ सकते हैं। यदि उन्हें यह मालूम था और इस सबके बावजूद एग्जिट पोल वाली संस्था ने ऐसा एग्जिट पोल राष्ट्रीय टी.वी. चैनलों पर परोसा तो वह संस्था व चैनल देश की जनता के साथ धोखाधड़ी करने के दोषी हैं। जिसकी जांच की जानी चाहिए। 

दरअसल जब तक ऐसा सर्वे करने वाली संस्थाएं अपनी वैबसाइट व अन्य प्रचार सामग्री पर इस बात को पूरी तरह से प्रकाशित न करें कि उस संस्था का किसी भी राजनीतिक दल से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कोई संबंध नहीं है या अपनी तकनीकी का खुलासा न करें, तब तक उस संस्था द्वारा किए गये एग्जिट पोल को गंभीरता से नहीं लेना चाहिए। परंतु हमारे देश में जिस तरह से एग्जिट पोल की भेड़-चाल होती है, वह किसी मनोरंजन से कम नहीं होती। कुछ भी हो 2024 का चुनाव भी भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में अपनी जगह बना चुका है। एक ओर जहां एन.डी.ए. का ‘अबकी बार 400 पार’ का नारा विफल हुआ है, वहीं विपक्षी एकता का ‘इंडिया’ गठबंधन भी कई बार बिगड़ते-बिगड़ते मजबूती से उभर कर आया। विपक्षी दल हों या सत्तापक्षी दल, सभी ने जनता के सामने भी बड़े-बड़े वायदे किए हैं और उनको पूरा करने का प्रण भी किया है। तो उम्मीद की जानी चाहिए कि आने वाले वक्त में वे अपने वायदों को पूरा करेंगे, उन्हें ‘जुमला’ कह कर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड़ेंगे।-रजनीश कपूर
    


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