प्रधानमंत्री को मणिपुर का दौरा करना चाहिए
punjabkesari.in Thursday, Jul 11, 2024 - 05:32 AM (IST)
नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के पिछले दशक के शासन की एक उल्लेखनीय विशेषता राजनीतिक विरोधियों और मीडिया द्वारा किसी भी सवाल का तिरस्कार करना और बिना कोई औचित्य पेश किए कुछ निश्चित रुख अपनाना था। इसने बिना कोई स्पष्टीकरण या औचित्य पेश किए कुछ मुद्दों पर अहंकारी और अडिय़ल रुख अपनाया था। ऐसा ही एक मुद्दा उत्तर पूर्वी राज्य मणिपुर से जुड़ा है। यह छोटा राज्य एक साल से अधिक समय से जल रहा है, जिसमें 200 से अधिक लोगों की जान चली गई और हजारों लोग घायल हो गए, लेकिन केंद्र ने इस पर बहुत कम ध्यान दिया है। एन. बीरेन सिंह के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार को बर्खास्त करने की बजाय, जिसका पूर्वाग्रह स्पष्ट से अधिक रहा है, विपक्षी दलों, विशेषज्ञों और मीडिया के बार-बार कहने के बावजूद केंद्र सरकार राज्य में विस्फोटक स्थिति की उपेक्षा कर रही है।
मोदी मणिपुर के निवासियों के घावों पर मरहम लगाने के लिए राज्य का दौरा नहीं करने पर अड़े हुए थे। उन्होंने कई पड़ोसी राज्यों का दौरा किया लेकिन मणिपुर से दूर रहे। इतना ही नहीं, उन्होंने संसद के भीतर और बाहर राज्य के घटनाक्रम पर पूरी तरह चुप्पी बनाए रखी और हिंसा की निंदा भी नहीं की। हाल के लोकसभा चुनावों के बाद संसद में अपने पहले भाषण के दौरान उन्होंने राज्य की स्थिति का पहला उल्लेख किया। हालांकि यह पर्याप्त नहीं है और उन्हें राज्य के दौरे के साथ-साथ स्थिति को नियंत्रित करने में पूरी तरह से विफलता के लिए मणिपुर में भाजपा सरकार को बर्खास्त करने की घोषणा करनी चाहिए थी। इसमेंं कोई संदेह नहीं है कि मैतेई और कुकी-नागा आदिवासियों के बीच प्रतिद्वंद्विता और तनाव का एक लंबा इतिहास रहा है। मणिपुर में दो प्रमुख समुदायों के सदस्यों के बीच झड़पें हुई हैं लेकिन मौजूदा संकट का कोई सानी नहीं है।
राज्य सरकार को मैतेइयों को आदिवासी दर्जा प्रदान करने के लिए उच्च न्यायालय के निर्देश के बाद इसकी शुरूआत हुई थी। आदिवासियों को डर था कि अगर मैतेइयों को भी अनुसूचित जनजाति घोषित कर दिया गया तो उनके लिए आरक्षण कम हो जाएगा।राज्य के अधिकांश हिस्से समय-समय पर कफ्र्यू में रहते हैं और इंटरनैट सुविधाएं लंबे समय तक बंद रहती हैं। दोनों समुदायों के हजारों निवासी राहत शिविरों में रह रहे हैं और अपने घर वापस जाने में असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। शैक्षणिक संस्थान बंद हैं और आर्थिक गतिविधियां रुकी हुई हैं। नागा बहुल इलाकों में राज्य को जोडऩे वाले मुख्य राजमार्ग पर ‘आॢथक नाकेबंदी’ के कारण खाद्यान्न और पैट्रोलियम उत्पादों सहित आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति गंभीर रूप से बाधित हो गई है।
मुख्यमंत्री, जो बहुसंख्यक मैतेई समुदाय से हैं, जो कुकी-नागा आदिवासियों के साथ ङ्क्षहसक झड़पों में शामिल है, अल्पसंख्यक समुदाय के बीच विश्वास पैदा नहीं करते हैं। आदर्श रूप से उन्हें बहुत पहले ही हटा दिया जाना चाहिए था और किसी तटस्थ और सभी वर्गों द्वारा सम्मानित माने जाने वाले व्यक्ति को उनकी जगह लेनी चाहिए थी। ऐसी स्थिति निश्चित रूप से कानून और व्यवस्था को बहाल करने के लिए एक मजबूत राज्यपाल की नियुक्ति के साथ केंद्रीय शासन लागू करना उचित होगा। मोदी सरकार, जो गैर-भाजपा दलों के नेतृत्व वाली राज्य सरकारों के खिलाफ आक्रामक रही है, मणिपुर में अपनी ही अक्षम सरकार के साथ बच्चों जैसा व्यवहार कर रही है। इन दावों में कुछ सच्चाई हो सकती है कि म्यांमार और चीन समस्या पैदा कर सकते हैं, लेकिन हिंसा रोकने में राज्य की ओर से पूरी विफलता के लिए यह कोई बहाना नहीं है।
विडंबना यह है कि एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के वरिष्ठ पत्रकारों की एक टीम, जिसने स्थिति का अध्ययन करने के लिए राज्य का दौरा किया था, पर उपद्रव फैलाने का मामला दर्ज किया गया था!विपक्ष के नेता राहुल गांधी की मणिपुर यात्रा एक स्वागत योग्य घटना है, लेकिन राज्य के प्रभावित निवासियों को अधिक आश्वस्त महसूस होगा यदि प्रधान मंत्री स्वयं उनसे मिलने जाएं और बीरेन सिंह सरकार को बर्खास्त करने का आदेश दें। राज्यपाल को क्षेत्र के विशेषज्ञों के सहयोग से मणिपुर में मौजूदा गतिरोध से बाहर निकलने का रास्ता खोजने की कोशिश करनी चाहिए।-विपिन पब्बी