लोगों की जरूरतों, डर और आशंकाओं से संबंधित हैं ‘गुजरात चुनाव’

punjabkesari.in Sunday, Dec 10, 2017 - 12:27 AM (IST)

एक सोशल मीडिया टिप्पणीकार ने हाल ही के चुनाव में 29 रैलियों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के भाषणों के विश्लेषण का दावा करते हुए कहा है कि जहां राहुल गांधी का 621 बार उल्लेख हुआ वहीं कांग्रेस का 427 बार, जबकि गुजरात माडल का एक बार भी उल्लेख नहीं हुआ। 

हो सकता है उन्होंने यह बात बढ़ा-चढ़ा कर कही हो या फिर गणित में ही गड़बड़ी हो गई हो। फिर भी एक बात तय है कि यह तथ्य इस बात को रेखांकित करता है कि गुजरात चुनाव में भाजपा का अभियान न तो विकास पर केन्द्रित है और न ही ‘अच्छे दिनों’ पर, बल्कि यह कांग्रेस के कथित बुरे दिनों पर केन्द्रित है। किसी सत्तारूढ़ पार्टी द्वारा आज तक हमने इतना नकारात्मक अभियान नहीं देखा। कांग्रेस गुजरात में 1995 के बाद सत्ता में नहीं आई और केन्द्र में भी इसका कार्यकाल मई, 2014 में समाप्त हो गया। गुजरात का चुनाव न राहुल गांधी के बारे में है, न ही कांग्रेस के बारे में। यह तो इस बारे में है कि 1995 से निरंतर बन रही भाजपा सरकारों ने गुजरात के लोगों के लिए क्या किया है। यह चुनाव लोगों की वर्तमान आवश्यकताओं तथा उनके डर और आशंकाओं से संबंधित है। 

महंगाई और विकास
उपलब्ध रिपोर्टें और साक्ष्य यह संकेत देते हैं कि गुजरात के मतदाताओं के दिमाग पर मुख्य रूप में 4 मुद्दे छाए हुए हैं, यथा महंगाई (18 प्रतिशत), विकास (13 प्रतिशत), बेरोजगारी (11 प्रतिशत) और गरीबी (11 प्रतिशत)। सत्तारूढ़ पार्टी से संबंधित कोई भी नेता महंगाई बढऩे के बारे में बात ही नहीं करेगा, यह बात तो उन्होंने रिजर्व बैंक आफ इंडिया के लिए छोड़ रखी है कि वह नीतिगत चौखटा तैयार करे और इसका समाधान ढूंढे। 5 दिसम्बर, 2017 को आर.बी.आई. ने जो बयान दिया था वह यूं है: ‘‘अल्पकालिक रूप में मुद्रास्फीति शायद बढऩा जारी रखेगी...अंतर्राष्ट्रीय क्रूड ऑयल कीमतों में हाल ही में आई वृद्धि शायद बरकरार रहेगी...भू-राजनीतिक घटनाक्रमों के फलस्वरूप आपूर्ति में किसी तरह की बाधा तेल कीमतों को और भी ऊंचा चढ़ा सकती है।’’ 

3 वर्षों से केन्द्र सरकार कच्चे तेल की कीमतों में आई भारी गिरावट के बावजूद पैट्रोल व डीजल की खुदरा कीमतों में कमी करने की बात को हठपूर्वक ठुकराती रही है और उपभोक्ताओं को किसी तरह की राहत नहीं मिल पाई। तेल मूल्यों में कटौती की मांग लगातार तेज होती जा रही है। इसका स्पष्ट समाधान मौजूद है लेकिन वित्तीय स्थिति के मद्देेनजर सरकार भयभीत है। तेल कीमतों में कमी लाने का स्पष्ट समाधान यह है कि पैट्रोलियम को जी.एस.टी. के दायरे में लाया जाए। यदि मैं गुजरात का मतदाता होता तो मैं उस पार्टी के पक्ष में मतदान करता जो पैट्रोलियम उत्पादों को जी.एस.टी. के अंतर्गत लाने का वायदा करती तथा पैट्रोल और डीजल की कीमतों में कम से कम तत्काल प्रभाव से 10 रुपए प्रति लीटर की कटौती करती। 

सत्तारूढ़ पार्टी से संबंधित कोई भी व्यक्ति विकास पर बात नहीं करेगा और यदि करेगा भी तो यह बुलेट ट्रेन  के बारे में होगी जिसे 90 प्रतिशत लोगों ने कभी प्रयुक्त ही नहीं करना है या फिर वह सरदार सरोवर डैम के बारे में बात करेगा जिसका पानी जल संकट से जूझ रहे राष्ट्र और अन्य जिलों  को नहीं दिया जा सकता क्योंकि गत 22 वर्षों दौरान भी नहरों के नैटवर्क का बहुत बड़ा भाग निर्मित ही नहीं हो पाया। यदि मैं गुजरात का वोटर होता तो मैं उस पार्टी के लिए वोट देता जो सरदार सरोवर नहरों का नैटवर्क तेजी से पूरा करने का वायदा करती, राजमार्गों तथा हर मौसम में काम आने वाली सड़कों का निर्माण करती, शहरों की सड़कों की मुरम्मत और रख-रखाव की ओर ध्यान देती तथा इसके साथ-साथ प्रदेश के प्रत्येक क्षेत्र में हवाई अड्डे बनाती। 

बेरोजगारी व गरीबी 
भाजपा का कोई भी आदमी बेरोजगारी पर नहीं बोलेगा। भाजपा तो रोजगार दफ्तरों में पंजीकृत व्यक्तियों की कम संख्या की ओर संकेत करेगी। ऐसा करके भी वह खुद ही अपने मुंह पर तमाचा मारेगी। गुजरात में व्यापक बेरोजगारी है और ऐसी कोई उम्मीद नहीं कि रोजगार दफ्तर में नाम पंजीकृत करवाने से नौकरी मिल जाएगी। ऊपर से गुजरात और अन्य स्थानों पर हजारों लोग नोटबंदी तथा त्रुटिपूर्ण जी.एस.टी. के कारण छोटे व मझोले उद्यमियों का दम घुटने के फलस्वरूप अपने रोजगार खो बैठे हैं। 

यह समझना मुश्किल नहीं कि गुजरात के करोड़ों युवक अनुभवहीन युवा नेताओं के गिर्द क्यों एकजुट हो रहे हैं, मैं गुजरात का वोटर होता तो ऐसी पार्टी के लिए वोट देता जो सरकारी नौकरियों में रिक्त पड़े हजारों पदों को भरती और इसके साथ ही न्यायोचित वेतन देती, न कि एक तयशुदा राशि। ऐसी पार्टी को वोट देता जो छोटे और मझोले उद्यमों को बढ़ावा देती और नए रोजगारों का सृजन करती। गुजरात में भाजपा की सरकार ने गरीबों की ओर से मुंह ही मोड़ लिया है। यदि ऐसा न होता तो बाल स्वास्थ्य, साक्षरता, लिंगानुपात और सामाजिक क्षेत्र में प्रति व्यक्ति खर्च जैसे मानव विकास सूचकांकों के मामले में गुजरात की कारगुजारी इतनी निराशाजनक न होती। यदि मैं गुजरात का मतदाता होता तो मैं ऐसी पार्टी के लिए वोट देता जो गरीब तथा मध्यमवर्गीय लोगों के प्रति हमदर्दी की भावना रखती और जातिवाद व इलाकावाद से ऊपर उठकर उनकी वास्तविक समस्याओं का निवारण करने के लिए समय और संसाधनों का आबंटन करती। 

जवाबदारी 
मैं बहुत तत्परता से यह स्वीकारोक्ति करूंगा कि विकास करने, रोजगार सृजन तथा बढ़ती महंगाई पर अंकुश लगाने के मुद्दे सभी राज्यों में मौजूद हैं। अतीत में सत्तारूढ़ पार्टियों ने वास्तविक मुद्दों को गच्चा देने का प्रयास किया लेकिन समझदार मतदाताओं ने सरकार ही बदल दी और हर चुनाव के साथ मतदाता अधिक समझदार बनते रहे हैं। 

भाजपा यह चाहती है कि चर्चा हिंदुत्व, अयोध्या, पर्सनल लॉ, गौरक्षा, अतिराष्ट्रवाद एवं समाज की विसंगतियों पर केन्द्रित होनी चाहिए। प्रधानमंत्री अपने भाषणों में नियमित रूप में उपरोक्त मुद्दों में से एक या अधिक का चयन करते हैं और ऐसी टिप्पणी करते हैं जो अगले दिन की अखबारों में सुर्खी बन जाती है। मीडिया इस पर बहुत शोर-शराबे भरी परिचर्चा छेड़ देता है। इसे सौभाग्य ही माना जाना चाहिए कि अब तक कोई पार्टी मोदी के इस जाल में नहीं फंसी बल्कि विपक्षी पाॢटयां विकास, बेरोजगारी और महंगाई जैसे मुद्दों पर अपना फोकस बनाए हुए हैं। 

कोई भी व्यक्ति किसी चुनाव के नतीजों की भविष्यवाणी नहीं कर सकता। बिहार के परिणाम सर्वेक्षणों के विपरीत गए थे। उत्तर प्रदेश में चुनाव के नतीजे बिल्कुल जनमत के आकलनों के विरुद्ध थे। हम यह उम्मीद कर सकते हैं कि गुजरात के लोगों के लिए तथा अगले 16 महीनों में केन्द्र की बेहतर गवर्नैंस के लिए गुजरात के मतदाता यह स्मरण रखेंगे कि चुनाव ही ऐसा मौका होता है जब सरकार को जवाबदारी के लिए मजबूर किया जा सकता है।-पी. चिदम्बरम


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