लोग पूछते हैं सरकार कहां है, मैं पूछता हूं-‘समाज कहां है’

Saturday, Sep 10, 2016 - 01:44 AM (IST)

(शांता कुमार): कुछ घटनाएं घटती हैं। अखबारों में छपती हैं। टिप्पणियां होती हैं, चर्चा होती है और फिर धीरे-धीरे अतीत के अंधेरे में खो जाती हैं परन्तु उनकी टीस संवेदनशील हृदयों में गहरे तक चुभ जाती है। वे घटनाएं अपने पीछे कुछ सवाल छोड़ जाती हैं। 

 
ओडिशा में एक अस्पताल में एक गरीब आदिवासी की पत्नी का देहांत हो गया। एम्बुलैंस नहीं मिली, उसने शव को कपड़े में बांध कर कंधे पर उठाया और 60 किलोमीटर दूर अपने घर की तरफ चला। साथ में उसकी छोटी बेटी आंसू बहाते हुए चलती रही। 
 
मध्य प्रदेश में एक गरीब अपनी बीमार पत्नी को लेकर बस में बैठ कर  अस्पताल जा रहा था। पत्नी की बस में ही मृत्यु हो गई। ड्राइवर ने वीरान जगह पर बस खड़ी करके उस गरीब को मृतक पत्नी सहित बस से नीचे उतार दिया। यू.पी. में एक और घटना घटी जहां एक गरीब व्यक्ति अपने बेटे के इलाज के लिए घूमता रहा परन्तु इलाज नहीं हुआ और बेटे ने कंधे पर ही दम तोड़ दिया। ऐसी कितनी घटनाएं गिनाई जाएं।रोज छपती हैं। बहुत-सी घटती हैं पर छपती भी नहीं हैं। 
 
ऐसी घटनाओं पर एकदम गुस्से  से हर किसी का यही सवाल होता है ‘‘सरकार कहां है?’’ परन्तु इससे पहले यह सवाल भी उतने ही जोर से पूछा जा सकता है-‘‘समाज कहां है?’’ सरकार हर समय, हर जगह उपस्थित नहीं रह सकती परन्तु समाज हर जगह, हर समय उपस्थित होता है। जब ओडिशा का गरीब आदिवासी अस्पताल से मृत पत्नी के शव को जैसे-तैसे कपड़े में बांध कर ले जाने लगा था तो समाज कहां था-अस्पताल का प्रशासन कहां था। क्या सब का दिल पत्थर हो गया था। 
 
किसी ने आवाज क्यों नहीं उठाई, प्रशासन को मजबूर क्यों नहीं किया, कुछ लोग स्वयं भी एम्बुलैंस का प्रबंध कर सकते थे। सब देखते रहे-वह गरीब अपनी मृतक पत्नी का शव उठा कर 8 किलोमीटर दूर गया। 8 वर्ष की उसकी बेटी आंसू बहाती अपनी मां के शव को उठाए पिता को देखती साथ चल रही थी तो कौन कह सकता था कि वे स्वतंत्र भारत के नागरिक हैं जो हर 5 वर्ष के बाद अपनी सरकार बनाते हैं। 
 
देश में अपराध बढ़ रहे हैं। दिन-दिहाड़े समाज विरोधी तत्व किसी को कहीं भी पकड़ कर पीटते हैं और मारते हैं तथा लोग तमाशा देखते हैं। जैसे इतिहास में कभी कुछ मुठ्ठी भर विदेशी आक्रान्ताओं ने करोड़ों के देश भारत को गुलाम बना लिया था वैसे ही कुछ बदमाश सैंकड़ों के सामने किसी को मारते हैं, अगवा कर भाग जाते हैं। दिन-प्रतिदिन यह बीमारी बढ़ती जा रही है। सड़क पर गुस्सा (रोडरेज) नाम का नया अपराध शुरू हुआ है। कोई किसी की गाड़ी के आगे से निकला, इसी पर झगड़ा होता है और गोलियां चलती हैं। ऐसी ही छोटी-छोटी बातों पर अपराध और हत्याएं हो रही हैं जिसका अनुमान लगाना मुश्किल है। शिमला में 4 वर्ष के मासूम युग कीहत्या किसने क्यों की-सरकार को 2 वर्ष तक पता ही नहीं लगा-कैसा पानी शिमला के लोग पीते रहे-ये सब सोच दिमाग की नसें फटने लगती हैं। 
 
परस्पर पारिवारिक संबंध भी तार-तार हो रहे हैं। धन-दौलत के लिए पिता द्वारा पुत्र और पुत्र द्वारा पिता की हत्या के समाचार रोज आने लगे हैं। ऐसा लगता है कि धन व दौलत का लालच अब एक पागलपन बनता जा रहा है। संबंध, प्यार, रिश्ता, संवेदना धीरे-धीरे सब पथरा रहे हैं। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के अवकाश प्राप्त मुख्य न्यायाधीश ने कुछ समय पहले  हाईकोर्ट में प्रार्थना पत्र दिया जिसमें कहा गया था, ‘‘मुझे मेरे बेटे और बहू से बचाया जाए।’’ एक पूर्व न्यायाधीश न्याय के लिए हाईकोर्ट गया, वह भी अपने पुत्र के विरुद्ध। 
 
भारत जैसे अत्यंत धार्मिक और आध्यात्मिक देश में यह स्थिति अत्यंत ङ्क्षचताजनक लगती है। जिस देश के धर्म के मर्म में यह सिखाया गया है कि हर इंसान में भगवान है उस देश के पिता-पुत्र व मां -बेटे के बीच में धन-दौलत के लिए होने वाली हत्याएं अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण हैं। 
 
विश्व में ऐसा कोई देश नहीं जिसमें भारत की तरह धर्म, अध्यात्म, कथा-कीर्तन, कुंभ-महाकुंभ और जप-तप होते हों। पूरे देश में करोड़ों लोग किसी न किसी रूप में धर्म के काम में लगे हुए हैं। गंगा जल लेकर चले कांवडिय़ों की भीड़ बढ़ती जा रही है। हर प्रकार के धार्मिक आयोजनों में प्रतिदिन संख्या बढ़ रही है। मंदिरों में आने वाले भक्तों की संख्या और मंदिरों में होने वाला चढ़ावा कई गुणा  बढऩे लगा है। ये सब सोच कर हैरानी होती है कि ये करोड़ों लोग धर्म का सारा कार्य करते हुए अच्छा काम करने की प्रेरणा क्यों प्राप्त नहीं करते। 
 
क्या धर्म केवल दिखावा बन कर रह गया है-क्या धर्म एक धंधा या रस्म अदायगी बन कर रह गया है। कुछ समय पूर्व आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने मंदिरों में भक्तों की बढ़ती भीड़ और मंदिरों के चढ़ावे में हुई वृद्धि बारे कठोर पर सच्ची टिप्पणी की थी। उन्होंने जोर देकर कहा था कि लोगों ने अब अधिक पाप करना शुरू कर दिया है इसलिए भीड़ भी बढ़ रही है और चढ़ावा भी बढ़ रहा है। उस समय उनकी बात बहुत से लोगों को कड़वी लगी परन्तु यदि धरती की सच्चाई को देखें तो यह बात काफी ठीक लगती है। लोग पाप का रास्ता अपनाकर भ्रष्टाचार और बेईमानी से रातों-रात अमीर हो जाते हैं और उस सब के लिए मंदिरों में जाने शुरू हो गए हैं। एक तरफ भारत में दुनिया में सबसे अधिक धर्म, पूजा-पाठ, जप-तप, प्रवचन, कुंभ-महाकुंभ और दूसरी तरफ दुनिया के सबसे भ्रष्ट देशों में भारत का नाम। ये दोनों बातें एक साथ क्यों हैं?
 
ओडिशा में एक गरीब आदिवासी जब अपनी मृतक पत्नी के शव को फटे-पुराने कपड़ों में लपेट कर अपने कंधों पर रख रहा था और उसकी 8 वर्ष की बेटी फूट-फूट कर रो रही थी तो सामने देखने वाले बहुत से लोग ऐसे रहे होंगे जो सुबह मंदिर गए होंगे-कुछ ने कुंभ-महाकुंभ का स्नान किया होगा। कुछ ने उसी सुबह घर में बड़ी-बड़ी घंटियां बजाई होंगी। क्या अर्थ रह गया इस धर्म का-इस पूजा का। क्या सब पाखंड नहीं बन गया, जिस देश में दधीचिने पाप के नाश के लिए अपनी अस्थियां तक दे दी थीं उस देश में मानवता का यह अपमान समझ नहीं आता। 
 
यह ठीक है हर समाज में हर समय अच्छा व बुरा दोनों रहते हैं पर समाज उनमें एक ऐसा संतुलन बना कर रखता है जिससे जीवन सुखपूर्वक चलता है। आज भी अच्छे-सच्चे धार्मिक लोग अवश्य हैं, पर वे संख्या में प्रतिदिन कम हो रहे हैं बुरे संख्या में बहुत बढ़ रहे हैं। उन्हीं का बोलबाला हो रहा है। एक विचारक ने कहा है कि कोई समाज बुरे लोगों के कारण नष्ट नहीं होता अपितु अच्छे लोगों के निष्क्रिय होने के कारण नष्ट होता है। आज यही हो रहा है। इस सबके लिए सरकार तो जिम्मेदार है ही पर सरकार भी तो समाज ही बनाता है। समाज जागे तभी सरकार भी जगाई जा सकती है। 
 
भारत के सभी संत-महात्मा देश को एक बार फिर से धर्म का सही अर्थ समझाएं। भारत का धर्म  हर इंसान में भगवान को देखता है। दीन-दुखी की सेवाही भगवान की सबसे बड़ी पूजा है। एक दिन गंगा स्नानसे पाप नहीं धुलता बल्कि पापी व्यक्ति के सम्पर्क से गंगा जल अपवित्र होता है। भगवान ईंट-पत्थरों के मंंदिरों में ही नहीं हैं अपितु हर दीन-दरिद्र रोगी व्यक्ति मेंहैं।  वेद, उपनिषद, गीता का यही सही निचोड़ है। मठों पर बैठे धार्मिक नेता नीचे उतर कर लोगों के पास जाएं और हिन्दू धर्म समझाएं तभी भारत भारत बनेगा। 
 
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