हम अपने खिलाडिय़ों का ‘सम्मान’ करना कब सीखेंगे

punjabkesari.in Saturday, Oct 15, 2016 - 01:53 AM (IST)

(देवी चेरियन): जिस ढंग से भारत में खेलों की अनदेखी की जाती है उससे मैं बेहद व्यथित हूं। दुनिया में हर जगह खेल किसी देश की धरोहर और संस्कृति के महत्वपूर्ण अंग होते हैं तथा इन्हीं पर युवा वर्ग की तंदुरुस्ती और कल्याण निर्भर है। यह बहुत ही सदमे वाली बात है कि 100 करोड़ से भी अधिक आबादी वाला देश राष्ट्रमंडल खेलों से मुश्किल से ही कोई तमगा जीत कर लौटता है। 

फिलहाल तो स्थिति यह है कि भारतीय खेलों का भगवान यानी क्रिकेट देश की सुप्रीमकोर्ट और लोढा आयोग के साथ कानूनी लड़ाई में उलझा हुआ है। क्रिकेट संघों का निर्माणअनेक वर्षों दौरान विभिन्न राज्यों के राजनीतिज्ञों द्वारा किया गया जो इस खेल से संबंधित हर काम में सह-योद्धा हैं। शायद फुटबाल और टैनिस के बाद भारतीय क्रिकेट दुनिया के सबसे सशक्त खेल निकायों में से एक है। 

मुझे यह देखकर घृणा होती है कि क्रिकेट संघों के परिचालन में अधिकतर खिलाडिय़ों को कोई जिम्मेदारी नहीं दी गई। वस्तुत: इनका परिचालन बड़े-बड़े तोंदिल राजनीतिज्ञों द्वारा किया जाता है जिन्होंने अपने जीवन में सामान्यत: कभी भी किसी खेल में हिस्सा नहीं लिया होता, इन क्रिकेट संघों के पास इतना अधिक पैसा है कि हैरानी से हमारे दांत जुड़ जाते हैं। 

यह जानना भी बहुत विस्मय की बात है कि इन संघों के सदस्य कौन लोग हैं। वे प्रथम श्रेणी में यात्रा करते हैं और फाइव स्टार होटलों में ठहरते हैं। वे बिल्कुल किसी शहंशाह जैसा जीवन व्यतीत करते हैं। अनुराग ठाकुर जैसे युवा को बी.सी.सी.आई. की बागडोर संभालते देख मुझे अत्यंत प्रसन्नता हुई। उसे इस स्थान तक पहुंचने के लिए सचमुच ही कड़ा संघर्ष करना पड़ा होगा। हमारे देश में खेलों का नेतृत्व युवाओं को ही करना चाहिए और इससे भी अधिक जरूरी यह है कि खेल जगत से संबंधित खेलों में से राजनीतिज्ञों को हर हाल में बाहर निकालना होगा। 

खेलों के क्षेत्र में जो कुछ हो रहा है उसके विषय में राष्ट्रीय टी.वी. चर्चाओं को देख मुझे बहुत दुख होता है। सुप्रीमकोर्ट का तो हर हाल में सम्मान किया जाना चाहिए लेकिन बड़े दुख से कहना पड़ रहा है कि सुप्रीमकोर्ट की आभा को चुनौती दी जा रही है। खेल संगठनों से संबंधित लोगों और राजनीतिज्ञों को हर हालत में सुप्रीमकोर्ट के आदेशों की पालना करनी चाहिए। मैं यह नहीं कह रही कि कौन ठीक है और कौन गलत लेकिन सुप्रीमकोर्ट हर प्रकार के राजनीतिक संगठनों और सभी एजैंसियों से सर्वोपरि है। हर किसी को इसकी मान-मर्यादा की रक्षा करनी होगी। 

आज भारतीय जनता की नजरों में खेलें संदेह के घेरे में हैं। लोगों को किसी भी खेल के चयनकत्र्ताओं पर कोई विश्वास नहीं। हमारे खिलाडिय़ों के लिए सुविधाएं लगभग हैं ही नहीं। हम राष्ट्रमंडल खेलों में कुछ समय पूर्व यह देख चुके हैं। अब केंद्र में युवा खेल मंत्री विजय गोयल यदि चाहें तो सचमुच काफी फर्क ला सकते हैं। चयनकत्र्ताओं की छवि अवश्य ही स्वच्छ होनी चाहिए। खेल निकायों को हर हालत में अधिक पैसा दिया जाना चाहिए। 

हॉकी, फुटबाल और कुश्ती संघों जैसे जिन खेल संगठनों के पास पैसा नहीं, उनके लिए अधिक पैसे की व्यवस्था होनी चाहिए। खिलाडिय़ों का रोजमर्रा का जीवन सुधारना होगा। जब वे विदेशों में जाते हैं तो हम देखते हैं कि उन्हें बहुत ही शर्मनाक सुविधाएं उपलब्ध करवाई जाती हैं। कई बार तो पानी की बोतल के लिए भी उन्हें संघर्ष करना पड़ता है। उनके रहने की परिस्थितियां भी साफ-सुथरी नहीं होतीं। 

खेल संघों के अधिकारी उनके साथ नौकरों जैसा व्यवहार करते हैं। उन्हें रात-रात भर गंदी-मंदी लारियों में सफर करना पड़ता है। खिलाडिय़ों को दिया जाने वाला भोजन न तो उपयुक्त होता है और न ही गुणवत्तापूर्ण। पता नहीं हम अपने खिलाडिय़ों का सम्मान करना कब सीखेंगे। बेशक वे छोटे से छोटे गांव से संबंध रखते हों तो भी उन्हें मान-सम्मान मिलना चाहिए। वे ऐसे लोग हैं जिन्हें भारत सरकार द्वारा संरक्षण दिया जाना चाहिए।

मुझे उम्मीद है कि हमारी अदालतें सामान्यत: खेल निकायों के मुकद्दमों की सुनवाई नहीं करतीं। खेल निकायों को स्वयं ही अपनी कार्यशैली में सुधार करना होगा। काश! हमारे राजनीतिज्ञों ने सदा खेल निकायों से बाहर रहने का रास्ता चुना होता और खेलों में पारदर्शिता का मार्ग प्रशस्त किया होता। राजनीतिज्ञों के पास जन कल्याण करने के और भी अनेकों काम होते हैं और उन्हें राजनीतिक जिम्मेदारी के रूप में जनता की सेवा करनी चाहिए। हमारे खेल निकायों में कई मुख्यमंत्री, मंत्री और सांसद शामिल हैं और वे इन नेताओं के पैसे से ही विलासिता का जीवन व्यतीत कर रहे हैं, जबकि हमारे खिलाडिय़ों को एक-एक पाई के लिए हाथ फैलाना पड़ता है।

ऐसा कोई प्रावधान नहीं कि आप मुख्य न्यायाधीश या अन्य जजों के साथ तू-तू-मैं-मैं कर सकें या उनके फैसलों को पलट सकें। आप न तो उन्हें अपमानित कर सकते हैं और न ही उनकी आज्ञा के पालन से इंकार कर सकते हैं तथा न ही ऐसा वातावरण पैदा कर सकते हैं जिससे देश का भविष्य आहत हो। अदालतों की न्यायप्रियता और ईमानदारी कायम रखनी होगी, नहीं तो इस देश में ऐसी अफरा-तफरी मचेगी जो लगातार बढ़ती-बढ़ती अनियंत्रित हो जाएगी और देश का ढांचा चरमरा जाएगा। 

हमारे राजनीतिज्ञों और सरकार को हमारे लोगों की सुरक्षा में ही रात-दिन लगे रहना चाहिए और चुनावी अभियान के दौरान उनके साथ जो वायदे किए गए उन्हें पूरा किया जाना चाहिए। वैसे राजनीतिज्ञयदि जनता की सेवा बेहतर ढंग से करना चाहते हैं तो खेल निकायों के बिना अन्य भी बहुत से संगठन मौजूद हैं। बेहतर होगा कि वे खेल निकायों को अकेला छोड़दें। 

देश के युवा इस बात से बहुत नाराज हैं कि खेल निकायों की बागडोर राजनीतिज्ञों के हाथ में क्यों है। बेहतर यही होगा कि क्रिकेट हो या कोई अन्य खेल, हम उसमें किसी प्रकार की छेड़छाड़ न करें और अफरा-तफरी न फैलाएं। भगवान के लिए सर्वशक्तिमान सुप्रीमकोर्ट को चुनौती देना भी बंद करें।
 


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