हमारी भूलों ने कश्मीर घाटी को आतंक की अंंधी गली में धकेल दिया

punjabkesari.in Saturday, Dec 04, 2021 - 05:38 AM (IST)

आजादी  के 70 साल बाद की निरंतर भूलों ने कश्मीर घाटी में भारत ने आत्मघात ही किया। आजादी के बाद तो देश कश्मीरी पंडितों की भूलें दरगुजर कर ही गया था परन्तु कश्मीर घाटी, विशेष कर दक्षिणी कश्मीर जो आतंकवादियों का गढ़ बन चुका है, उसके जख्मों ने हमारी भूलों को फिर  याद करवा दिया। जब पटेल साहिब ने हैदराबाद और जूनागढ़ जैसी देसी रियासतों का मुंह भारत की ओर मोड़ दिया तो जम्मू-कश्मीर रियासत को पंडित नेहरू के रहमो-करम पर क्यों छोड़ दिया? महाराजा हरि सिंह के स्थान पर शेख अब्दुल्ला को अधिमान क्यों दिया। भूल हुई। 

अक्तूबर, 1947 में जब जम्मू-कश्मीर पर कबायलियों ने हमला किया तो सेना पहुंचाने में भारत ने देर क्यों की? जब सेना ने पाकिस्तानी कबायली सेना को खदेड़ ही दिया तो सम्पूर्ण क्षेत्र को लिए बिना युद्ध को बीच में ही क्यों रोक दिया? भारत ने स्वयं ही ‘जम्मू-कश्मीर में जनमत करवाएंगे’ जैसे गंभीर मुद्दे विश्व राजनीति में उछालने की भूल क्यों की? भारत जम्मू-कश्मीर का मसला संयुक्त राष्ट्र संघ में लेकर क्यों गया? जगहंसाई करवाई और उसका भुगतान हम आज तक कर रहे हैं। 

एक और भयंकर भूल कर दी हमने कि कश्मीर को ‘विशेष दर्जा’ दे दिया। संविधान में जम्मू-कश्मीर के लिए धारा 370 का विशेष प्रावधान रख दिया। फिर उसे समाप्त भी कर दिया। जम्मू-कश्मीर रियासत पर प्रयोग पर प्रयोग करते गए। सदियों पहले हुई भूलों का भुगतान तो हुआ नहीं, आजादी के बाद यानी 1947 के बाद भी हमने जम्मू-कश्मीर को प्रयोगशाला बनाए रखा। लौह पुरुष सरदार पटेल का इतना ही कहना मान कर भारत अपनी भूलों से तौबा कर लेता कि पाकिस्तान से उजड़ कर आए पश्चिमी पाकिस्तान के बहादुर सिखों को जम्मू-कश्मीर की पाकिस्तान से लगती सीमाओं पर बसा देते? पाकिस्तान का हौव्वा तो खत्म होता। भारत ने अपनी ही संसद में खाई प्रतिज्ञा पूरी कर ली होती कि हम पाकिस्तान द्वारा हथिया ली गई एक-एक इंच जमीन वापस लेंगे। 1965, 1971 और 1999 में पाकिस्तान से युद्ध तो हुए परन्तु पाकिस्तान द्वारा हथियाई गई जमीन वापस नहीं ली। अलबत्ता ‘शिमला समझौते’ द्वारा पाकिस्तानी सेना के आत्मसमर्पित 93,000 सैनिकों को भी हमने वापस कर दिया। 

पाकिस्तान समझता है कि वह ‘खुले युद्ध’ में भारत को नहीं हरा सकता, अत: उसने ‘प्रॉक्सीवार’ आरंभ कर दी। आज दक्षिणी कश्मीर को ‘लश्कर-ए-तोयबा’, ‘जैश-ए-मोहम्मद’ जैसे आतंकवादी संगठनों ने लहू-लुहान कर रखा है। श्रीनगर, अनंतनाग, बांदीपोरा, कुपवाड़ा, पुलवामा, पम्पोर, शोपियां, सारी की सारी ‘चिनाब घाटी’ ‘इस्लामिक स्टेट’ बन चुकी है। इन स्थानों की दयनीय दशा सीरिया या अफगानिस्तान से भिन्न नहीं। पंडित, हिंदू-सिख इन स्थानों पर हैं ही नहीं। फिर भारत कैसा? नित्यप्रति सेना के जवान, सिविलियन, पुलिस कर्मचारी आतंकवादियों द्वारा मारे जा रहे हैं। आतंकवाद की अंधी गली से निकलने का कश्मीर घाटी में दूर-दूर तक नामो-निशान दिखाई नहीं देता। सेना ज्यों-ज्यों गलियों से कश्मीर घाटी में आतंकियों को मारती है आतंकवादी ‘रक्तबीज’ बन पुन: उभर आते हैं। यह आग हमारी भूलों से लगी है। मुफ्ती-महबूबा और फारूख अब्दुल्ला तो यूं ही हीरो बने हुए हैं। 

सदियों पहले कश्मीरी पंडितों की भूलें याद करोगे तो देश के लोग स्वयं रोने लगेंगे। 1318 में रिनचिनशाह-लद्दाख का एक बौद्ध परन्तु साहसी युवक कश्मीर आया। 1320 में वह इतना प्रभावी बन गया कि कश्मीर के राजा रामचंद्र की हत्या कर वह कश्मीर का स्वामी बन गया। उसने रामचंद्र राजा की पुत्री कोटारानी से विवाह कर लिया। वह शैव धर्माचार्य देवस्वामी की शरण में गया परन्तु देवस्वामी ने उसे दीक्षा देने से मना कर दिया। रिनचिन के मन में बड़ा पश्चाताप हुआ। वह हिंदू बनना चाहता था परन्तु देवस्वामी के इंकार करने से वह रात भर सो न सका। प्रात:काल सूफी बुलबुल शाह की ‘अजान’ उसके कान में पड़ी। वह बुलबुल शाह के पास गया जिसने रिनचिन को इस्लाम की दीक्षा दी। रिनचिन ने इस्लाम ग्रहण करते ही लाखों कश्मीरी पंडितों को मौत के घाट उतार दिया और कश्मीर घाटी को इस्लामिक स्टेट घोषित कर दिया। शैव धर्माचार्य की अदूरदर्शिता ने बिना आक्रमण के कश्मीर घाटी को इस्लाम की चपेट में धकेल दिया। 

ऐसी ही भूल एक बार पुन: कश्मीरी पंडितों ने की। 600 साल पहले जम्मू-कश्मीर पर महाराजा गुलाब सिंह का शासन था। तब कश्मीर के मुसलमान महाराज की शरण में आए। उन्होंने प्रार्थना की, ‘मुस्लिम शासन काल में विवशता में उन्होंने इस्लाम स्वीकार कर लिया था, अब हम फिर हिंदू बनना चाहते हैं।’ महाराजा गुलाब सिंह ने कश्मीर के पंडितों को बुलाकर उन्हें पुन: हिंदू धर्म में अपनाने की अपील की। इस पर कश्मीरी पंडित राजा से बोले, ‘यदि कश्मीर के मुसलमानों को फिर से हिंदू बनाया गया तो हम झेलम दरिया में डूब कर अपने प्राण त्याग देंगे और राजा जी, आपको ब्रह्म हत्या का पाप लगेगा।’ राजा डर गया। मुसलमान वापस हिंदू न बन सके। कश्मीर घाटी की वर्तमान समस्या हिंदू धर्म के मठाधीशों की देन है। हिंदुओं की आत्मघाती संकीर्णता का परिणाम है। आज अपनी उन भूलों के कारण कश्मीरी पंडित स्वयं कहां हैं? विस्थापितों का जीवन जी रहे हैं। उनकी जमीनों, घरों पर मुसलमानों ने कब्जा कर लिया है। कोई पंडित दक्षिणी-कश्मीर में जाकर तो बताए? 

पर एक बात जरूर बताए देता हूं, अब कश्मीर घाटी की बात बहुत आगे निकल चुकी है। पाकिस्तान की आई.एस.आई. सीरिया के आतंकी और अफगानी तालिबानों की पूरी निगाह कश्मीर घाटी पर है। चीन पाकिस्तान की पीठ पर खड़ा है। अगर देश यह सोचता है कि सेना की गोलियां कश्मीर समस्या का हल हैं तो हम हवा में तीर मार रहे हैं। 58 इस्लामिक देश आतंकवादियों को फंडिंग कर रहे हैं। पाकिस्तानी रेंजर आतंकियों की घुसपैठ करवा रहे हैं। स्थानीय कश्मीरी मुसलमान आतंकियों को पनाह दे रहे हैं। हम भूल पर भूल करते आ रहे हैं, ऐसे में कश्मीर घाटी में निवेश कैसा? पहले कश्मीर घाटी को आतंक की इस अंधी गली से निकालो, तब जाकर निवेश और उद्योगों की बात करो।-मा. मोहन लाल(पूर्व परिवहन मंत्री, पंजाब)


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