कुछ भ्रष्ट पुलिस अधिकारी ही विभाग को कटघरे में खड़ा करते हैं

punjabkesari.in Friday, Jun 09, 2023 - 05:28 AM (IST)

आज भ्रष्टाचार समाज के अंग-अंग में व्याप्त है तथा शायद ही कोई विभाग इस बुराई से अछूता रह गया हो। कितनी विडम्बना है कि आज भारत भ्रष्टाचार बोध सूचकांक में 85वें पायदान पर पाया गया है। हर विभाग के कुछ अधिकारी व कर्मचारी भ्रष्टाचार करना अपना अधिकार समझते हैं। इसके अतिरिक्त कुछ ऐसे विभाग भी हैं जिनके बारे में सोचा भी नहीं जा सकता कि वह भी इस बुराई में पूरी तरह संलिप्त हो सकते हैं। न्यायपालिका में भ्रष्टाचार छुपा हुआ रहता है तथा पता होने पर भी न तो मीडिया और न ही बुद्धिजीवी नागरिक कोई उंगली उठा सकते हैं क्योंकि कोई भी अवमानना के पचड़े में नहीं फंसना चाहता। 

इसी तरह सेना, जो देश की सुरक्षा का काम करती है अब तो उसमें भी कई प्रकार के घोटाले होने शुरू हो गए हैं। लोगों को एक ही विभाग से ऐसी आशा की किरण थी जो अपनी कलम से भ्रष्ट लोगों को पूर्ण रूप से नंगा कर सके मगर अब तो कुछ भ्रष्ट मीडिया वाले वरिष्ठ अधिकारियों व राजनीतिज्ञों से सांठ-गांठ करके अपने पेशे को दागदार बना रहे हैं। 

नौकरशाहों का भ्रष्टाचार तो जगजाहिर है तथा यह लोग तो अपने आप को आम नागरिकों से अलग उनके ऊपर उनका शासक और स्वामी ही समझते हैं। इस तंत्र को आज भी स्टील फ्रेम ऑफ इंडिया कहा जाता है। नौकरशाह तो एक ऐसे तने हुए पुतले की तरह है जिसमें अधिकारों व कदाचारों की अंतहीन हवा भरी हुई है। अन्य विभाग भले ही पुलिस से अधिक भ्रष्ट हों मगर उनके विरुद्ध बहुत कम लोग टिप्पणी करते हैं क्योंकि घूस देने वाले को घूस के बदले अधिक मात्रा में आर्थिक लाभ हो रहा होता है। इसलिए वह घूस देने में ज्यादा हिचकिचाते नहीं हैं। 

इन विभागों के वरिष्ठ नौकरशाह तो उन मछलियों की तरह होते हैं जो समुद्र में पानी तो पी रही होती हैं मगर वह पानी पीते हुए महसूस नहीं होतीं। पुलिस वाले तो एक कप चाय भी पी लेंगे तो लोग उन्हें भ्रष्ट कहना शुरू कर देते हैं। हर विभाग के चोर-उचक्कों  को पकडऩे व उन्हें सलाखों के पीछे पहुंचाने का काम तो पुलिस विभाग व न्यायपालिका को  ही दिया गया है। न्यायपालिका क्या करती या नहीं करती है, के बारे में टिप्पणी करना उचित नहीं है मगर न्याय के पहले सोपान पर अपराधियों को घसीट कर पहुंचाना तो पुलिस का ही काम है मगर जब बाढ़ ही खेत को खाना शुरू कर दे तब न्याय की उम्मीदें धुंधली ही पड़ जाती हैं तथा लोगों को अन्याय के साथ समझौता करना पड़ता है। 

जब पुलिस वाले अपनी नैतिक जिम्मेदारी से मुकरते हुए भ्रष्ट आचरण आरंभ कर देते हैं तब कानून-व्यवस्था की स्थिति खराब होने लगती है तथा लोगों का न्याय से विश्वास उठने लगता है। अब तो जैसे अर्थव्यवस्था में कीमतों का निर्धारण मांग और आपूर्ति के तत्वों से होता है उसी तरह भ्रष्टाचार भी कहीं न कहीं मांग और आपूर्ति के नियम पर ही चलता है। पुलिस से जनता को बहुत अपेक्षाएं होती हैं मगर पुलिस की कठिनाइयों के बारे में लोगों को कोई ज्यादा पता नहीं होता। पुलिस एक शिकायतकत्र्ता को स्टेशनरी उपलब्ध करवाने या फिर घटनास्थल पर चलने के लिए गाड़ी की मांग इसलिए रखती है क्योंकि पुलिस को पर्याप्त मात्रा में सरकारी धन उपलब्ध नहीं करवाया जाता तथा उन्हें मजबूरी में ही यह सब कुछ करना पड़ता है।  पुलिस को दिन-रात काम करना होता है तथा अपनी देय छुट्टी काटने का भी समय नहीं मिलता। 

ऐसी परिस्थितियों में उनके दिल और दिमाग पर भ्रष्टाचार की परछाइयां पडऩी स्वाभाविक ही हो जाती हैं। छोटी-मोटी घूस का लेन-देन तो आम बात होती है मगर लोग पुलिस को उस समय भ्रष्ट बोलना शुरू कर देते हैं जब उनके साथ घोर अन्याय हो रहा होता है। विडम्बना तब और भी गम्भीर हो जाती है जब कुछ वरिष्ठ पुलिस अधिकारी भी अपनी भ्रष्टता का समय-समय पर प्रमाण देने लगते हैं। 

वास्तव में वरिष्ठ अधिकारियों की ढीली पकड़ भी कनिष्ठ कर्मचारियों को घूसखोरी में संलिप्त होने के लिए सुविधाजनक स्थितियां उत्पन्न करती है। हाल ही में नारकोटिक्स ब्यूरो के जोनल डायरैक्टर (डी.आई.जी.) समीर वानखेड़े का कथित कुकृत्य देखने को मिला है। उसने किस तरह अपने वरिष्ठ अधिकारियों के दिशा-निर्देशों को मानते हुए शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान को मादक पदार्थों की तस्करी के लिए एक झूठे केस में फंसाया और मुकद्दमे से बाहर करने के लिए 25 करोड़ की मांग रख दी। उसके इस कथित दुराचार के लिए उसके विरुद्ध सी.बी.आई. ने मुकद्दमा दर्ज किया है। 

इसी तरह कुछ वर्ष पहले  ऐसा ही एक मामला मुंबई पुलिस के ए.सी.पी. सचिन बाजे का भी सामने आया था जिसने कथित तौर पर मुकेश अंबानी के घर के बाहर विस्फोटकों से भरी एक गाड़ी खड़ी करवा दी थी। इसी तरह मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर परमवीर सिंह ने भी महाराष्ट्र के उस समय के गृह मंत्री अनिल देशमुख के विरुद्ध आरोप लगाया था कि उसने सचिन बाजे को प्रतिमाह 100 करोड़ इकट्ठा करने के लिए बाध्य किया था। इस संबंध में परमवीर सिंह के विरुद्ध भी भ्रष्टाचार का मुकद्दमा चलाया गया है। इसी तरह न जाने कितनी और उदाहरणें हैं जिन्होंने पुलिस विभाग की साख पर बट्टा लगाया है। 

पुलिसिंग के असली मकसद में कामयाब होने के लिए अधिकारियों को एक रोल मॉडल की तरह काम करने की जरूरत है। कानून ने पुलिस को इतनी शक्तियां प्रदान की हैं कि इनके सदुपयोग करने पर बड़े से बड़े भ्रष्ट बाहुबली या किसी भी विभाग में शीर्ष स्थानों पर बैठे कर्मचारियों को सलाखों के पीछे पहुंचाया जा सकता है। आओ हम कोई भी ऐसा बुरा कार्य न करें जिससे हमारी वर्दी पर दाग लगे जिसेे हम पहने हुए हैं तथा कोई भी ऐसा कुकृत्य न करें जिससे हमारा ध्वज दागदार हो जिसे हम सलामी देते हैं।-राजेन्द्र मोहन शर्मा डी.आई.जी.(रिटायर्ड) हि.प्र.
 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News