ऑनलाइन गेमिंग बच्चों के लिए घातक महामारी
punjabkesari.in Wednesday, Sep 20, 2023 - 05:09 AM (IST)

भारत की लगभग 41 प्रतिशत आबादी 20 साल से कम उम्र के किशोरों की है और इनको ऑनलाइन गेम की लत ने बुरी तरह जकड़ा हुआ है। मोबाइल में ऑनलाइन गेम्स इन मासूमों को क्रिमिनल माइंडेड बना रही हैं। बच्चों में शारीरिक और मानसिक तौर पर इसके असर देखने को मिल रहे हैं। यदि आपके बच्चे मोबाइल पर ज्यादा समय बिता रहे हैं, तो यह ऐसे सभी अभिभावकों के लिए खतरे की घंटी है क्योंकि ऑनलाइन गेम का नशा ऐसा है कि बच्चे घर छोड़कर भाग रहे हैं। हालत यह है कि बच्चे अभिभावकों की बात तक नहीं मान रहे।
हमारे देश में बच्चों, किशोरों और युवाओं में आनलाइन गेम खेलने की लत महामारी का रूप लेती जा रही है। इसके शिकार लोग चौबीसों घंटे बिना रुके आनलाइन गेम्स खेलते हैं। आज इंटरनैट पर उपलब्ध रोमांचक आनलाइन गेम्स में रंग-बिरंगे विषय और संगीत के सुमेल के साथ हर पल बदलती दुनिया और पल-पल बढ़ता रोमांच बच्चों के दिलो-दिमाग पर हावी हो रहा है। गेम खेलने की यह लत बढ़ते-बढ़ते अवसाद में बदल जाती है। भारत में 23 वर्ष तक के 88 प्रतिशत युवा समय बिताने के लिए आनलाइन गेम्स खेलते हैं। शौक के लिए या समय बिताने के लिए कुछ देर आनलाइन गेम खेलना कोई बुरी बात नहीं, लेकिन समस्या तब पैदा होती है, जब यह एक बुरी आदत बन जाती है, जिसे ‘गेमिंग एडिक्शन’ कहते हैं। आनलाइन गेम्स खेलने से ङ्क्षहसा की प्रवृत्ति भी बढ़ रही है क्योंकि ये गेम अक्सर हिंसक घटनाओं से भरे होते हैं। इनमें मरने-मारने की बातें होती हैं, युद्ध होते हैं, बच्चों के हाथों में आभासीय बंदूकें होती हैं।
एडिक्शन सैंटर की एक रिपोर्ट के अनुसार, वीडियो गेम आपके दिमाग को उसी तरह प्रभावित करते हैं, जैसे कि नशा। ये आपकी बॉडी में डोपामाइन रिलीज करते हैं। यह एक ऐसा कैमिकल है, जो आपके व्यवहार को रिइनफोर्स करता है। यही वजह है कि ऑनलाइन गेम्स खेलना आपके लिए एडिक्शन बन जाता है। खोज बताती है कि जिन लोगों को ऑनलाइन गेम की लत लगती है, उनका मानना है कि उन्हें गेम खेलने से एडवैंचर का अनुभव मिलता है। इसके साथ ही, वे गेम खेलने से असल जिंदगी की प्रॉब्लम से दूर चले जाते हैं। जो लोग गेमिंग डिसऑर्डर के शिकार होते हैं, उन्हें यह तय करने में मुश्किल होती है कि वे कितना समय डिजिटल गेम खेलते हुए बिताएंगे। वे गेम खेलना अपने जरूरी कामों से भी ज्यादा जरूरी समझते हैं। ज्यादा गेम खेलने की वजह से धीरे-धीरे उनके व्यवहार पर इसका नकारात्मक असर भी पडऩे लगता है। गेमिंग डिसऑर्डर व्यवहार से जुड़ा हुआ डिसऑर्डर है। आंकड़े बताते हैं कि भारत में पबजी और कॉल ऑफ ड्यूटी जैसे गेम यूथ के हॉट फेवरिट हैं। गेमिंग डिसऑर्डर वाले लोग इन्हें ही ज्यादा खेला करते हैं।
कोरोना काल की बंदी के बाद भारत में आनलाइन गेम्स खेलने वालों की संख्या में लगातार वृद्धि हुई है, इसमें बच्चों के साथ-साथ बड़े भी शामिल हैं। 2018 में भारत में आनलाइन गेम्स खेलने वालों की संख्या करीब 26.90 करोड़ थी, जो वर्ष 2020 में बढ़ कर करीब 36.50 करोड़ हो गई। अनुमान है कि 2022 में लगभग 55 करोड़ से ज्यादा, यानी लगभग आधी आबादी आनलाइन गेम खेलने में व्यस्त थी। 2016 में भारत में आनलाइन गेम्स का बाजार लगभग 4000 करोड़ रुपए का था, जो अब 7 से 10 हजार करोड़ रुपए तक पहुंच चुका है। हर साल यह 18 प्रतिशत की रफ्तार से बढ़ रहा है। अनुमान है कि अगले साल यह लगभग 29,000 करोड़ तक पहुंच जाएगा।
लगभग 46 प्रतिशत गेम खेलने वाले जीतने के लिए या इसकी ‘एडवांस्ड स्टेज’ में पहुंचने के लिए पैसे भी खर्च करने को तैयार रहते हैं। बहुत से आनलाइन गेम्स में पैसा कमाने का विकल्प भी होता है, जिससे बड़ी संख्या में युवाओं ने इसे पूरावक्ती काम की तरह अपना लिया है। समय बिताने और शौक के लिए खेला जाने वाला गेम अब जुए और सट्टेबाजी में बदलता जा रहा है। भारत के लोग अब एक दिन में औसतन 218 मिनट आनलाइन गेम खेलते हुए बिता रहे हैं। पहले यह औसत 151 मिनट था। यह लत बच्चों के साथ-साथ बड़ों को भी जरूरी काम करने से रोकती है।
पिछले साल भारत में हुए एक सर्वे में 20 साल से कम उम्र के 65 प्रतिशत बच्चों ने माना था कि वे इसके लिए खाना और नींद छोडऩे को भी तैयार हैं और बहुत सारे बच्चे तो आनलाइन गेम्स खेलने के लिए अपने माता-पिता का पैसा भी चोरी करने को तैयार हैं। वैसे तो ‘गेमिंग एडिक्शन’ की यह समस्या केवल भारत नहीं, पूरी दुनिया में है। पिछले साल ब्रिटेन में हुए एक सर्वे में हर 6 में से 1 बच्चे ने माना था कि गेम खेलने के लिए उन्होंने माता-पिता का पैसा चोरी किया। इसके लिए ज्यादातर बच्चों ने अपने माता-पिता के डेबिट या क्रेडिट कार्ड का उन्हें बिना बताए इस्तेमाल किया था।
कुछ आनलाइन गेम मुफ्त होते हैं, कुछ में पैसा देना होता है। कई गेम जीतने पर ‘रिवार्ड’ भी मिलता है, जिससे लालच बढ़ता ही जाता है। हार जाने पर डूबा पैसा वापस पाने की जिद होती है। बच्चे लगातार झूठ बोलने और कर्ज लेने जैसी आदतों के शिकार हो जाते हैं। आनलाइन गेम जरूरत से ज्यादा खेलने से बच्चों के मन-मस्तिष्क पर बहुत बुरा असर पड़ता है। वे चिड़चिड़े और ङ्क्षहसक बन रहे हैं। माता-पिता और रिश्तेदारों से बात करने की बजाय वे इसी आभासी दुनिया में खोए रहना पसंद करते हैं। यूनिवॢसटी आफ न्यू मैक्सिको की रिसर्च के मुताबिक, दुनिया भर में गेम खेलने वाले 15 प्रतिशत इसकी लत का शिकार होकर मानसिक तौर पर बीमार हो जाते हैं।
अब आनलाइन गेम को दुनिया भर में मुख्य खेलों में भी शामिल किया जाने लगा है। एशियाई खेलों में ‘ई-स्पोट्र्स’ के कार्यक्रम होंगे। ओलंपिक समिति भी इसे मान्यता दे चुकी है। इसलिए इस उद्योग पर पूरी तरह प्रतिबंध तो नहीं लगाया जा सकता, लेकिन जो आनलाइन गेम लोगों को जुए की लत लगाते हैं, उन पर नियंत्रण करना बहुत जरूरी है। जिन युवाओं को मेहनत करके परिवार, देश और समाज को आगे ले जाना है, वे आज आनलाइन गेम खेल कर समय बर्बाद कर रहे हैं। कोरोना काल में स्कूल-कालेज बंद होने की वजह से आनलाइन पढ़ाई का चलन बढ़ा है, इसलिए अब हर बच्चे के हाथ में कम्प्यूटर, लैपटाप या मोबाइल है। पर पढ़ाई से ज्यादा वे इनका इस्तेमाल आनलाइन गेम्स खेलने में करते हैं, जो बहुत घातक होता जा रहा है। इस पर नियंत्रण करना बहुत आवश्यक है।-प्रि. डा. मोहन लाल शर्मा