कुछ भूली विसरी यादें (अंतिम)... ''जय प्रकाश की मौत पर विरोधी भी फूल लेकर आए''

punjabkesari.in Thursday, Jun 03, 2021 - 03:28 AM (IST)

नायक श्री जयप्रकाश नारायण 1977 की क्रांति के अग्रदूत थे। जनता पार्टी की विजय में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। अपने जीवन के अंतिम चरण में वह एक तूफान बनकर भारतीय राजनीति में आए। इससे पूर्व हजारीबाग जेल से 1942 में भाग निकलने के बाद वह प्राय: गुमनामी में ही रहे।

उस समय जब सत्ताधारी पार्टी तानाशाही की ओर बढ़ रही थी, जयप्रकाश जी आंदोलन में युवा शक्ति का नेतृत्व संभालने को विवश हुए। उन्होंनेे ‘समग्र क्रांति’ का नया नारा दिया और परस्पर विरोधी विचारधाराओं के लोग भी उनकी छत्रछाया तले एकत्र होने लगे। इस आंदोलन के साथ एमरजैंसी का अंधकारमय युग भी शुरू हुआ। पूरा देश जेलखाना बन गया। सभी विरोधी दलों के नेता जेलों में डाल दिए गए। वृद्ध और अस्वस्थ जय प्रकाश नारायण को भी कैद कर दिया गया। 

1977 के चुनाव में जय प्रकाश जी का व्यक्तित्व सर्वाधिक प्रेरणास्रोत था। उन्हीं के प्रयत्नों से देश के पांच प्रमुख विरोधी दल एक नई पार्टी में विलीन हुए। एक राष्ट्रीय विकल्प की चली आ रही इच्छा साकार होने लगी। एमरजैंसी से पीड़ित देश जय प्रकाश की इस नई पार्टी की ओर उमड़ पड़ा। कांग्रेस ही नहीं स्वयं इंदिरा गांधी और संजय गांधी भी चुनाव हार गए। 

नई पार्टी की दिल्ली में सरकार बनने का क्षण आया तो जय प्रकाश जी ने नया प्रधानमंत्री चुनने की कठिन समस्या का भी समाधान कर दिया। मोरारजी देसाई सर्वस मति से प्रधानमंत्री चुने गए। उस समय जय प्रकाश नारायण भारत के सबसे अधिक सुखी  व्यक्ति थे परंतु...जनता पार्टी बनने से पहले ही टूटने लगी। कुॢसयों पर बैठने से पहले ही कुछ नेताओं ने कुर्सियों की लड़ाई शुरू कर दी। अपनी ही पार्टी के लोग अपनी ही पार्टी की टोपी उछालने लगे। जनता पार्टी की इस नई तस्वीर से भारत का सबसे ‘सुखी जय प्रकाश’ भारत का सबसे ‘दुखी जयप्रकाश’ बन गया।

1979 के जुलाई मास में मैं बंबई गया जहां वह उपचाराधीन थे। एक चारपाई पर वह सीधे लेटे थे। मैंने हाथ जोड़ उन्हें नमस्कार किया और उनके पास चारपाई पर बैठ गया। ‘‘अब आपका स्वास्थ्य कैसा है?’’ मैंने उनके पास होकर पूछा। उन्होंने हाथ से इशारा किया, कुछ बोले नहीं। मेरी तरफ देखते रहे। ‘‘मुझे दुख है कि जनता पार्टी में झगड़े बढ़ रहे हैं। हम जनता पार्टी वाले आपको इतना भी सुख नहीं दे सके-पार्टी की एकता।’’

मेरे ये शब्द पूरे भी न हुए थे कि जय प्रकाश नारायण फूट पड़े। आंखें बंद थीं। जेल की दीवार फांदने वाला क्रांतिकारी इतना भावुक हो सकता है-मैंने कल्पना भी नहीं की थी। जय प्रकाश जी ने अपना कमजोर हाथ अपनी आंखों की ओर ले जाने की कोशिश की पर मैंने उनका हाथ पकड़ लिया। ‘‘चिंता न करें। आपके आशीर्वाद से सब ठीक हो जाएगा।’’ मैंने दिलासा देने की कोशिश की। 

‘‘अब क्या ठीक होगा...सब बिखर रहा है...’’ एक ठंडी सांस भरकर वह बोले। ‘‘आप निराश मत हों। देश का यौवन आपके पीछे खड़ा है।’’ मैंने उनका हाथ कसकर पकड़ लिया था।
‘‘हिमाचल में मैं तथा मेरे साथी सदा आपके आदर्शों का अनुसरण करते रहेंगे। मैं आपके स्वास्थ्य की प्रार्थना करता हूं।’’

यह कहते हुए मैं उठ खड़ा हुआ और दोनों हाथ जोड़कर नमस्कार करने के बाद मैं कमरे से बाहर आया। जनता पार्टी धीरे-धीरे अपने विनाश की ओर बढ़ती रही और जय प्रकाश जी भी महाप्रयाण की ओर बढ़ते रहे। न जयप्रकाश जी जनता पार्टी को बचा पाए और न जनता पार्टी उन्हें उस वेदना से बचा पाई। ...और फिर एक दिन वह  हमें छोड़ कर चले गए। मैं उनके अंतिम दर्शनों के लिए पटना पहुंचा। 

एक बड़े भवन के ऊपर हॉल में जय प्रकाश जी का पार्थिव शरीर नि:स्पंद पड़ा था। उनके शरीर को शव यात्रा के लिए बाहर लाया गया। बांसघाट पर जयप्रकाश जी की चिता सजी थी। हम सब उसी ओर जा रहे थे। कारें पीछे रोक दी गईं। हम कुछ लोग श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के साथ जा रहे थे। भीड़ इतनी अधिक थी कि रास्ता बनाना कठिन हो रहा था। 

बांसघाट पर तो पहुंच गए परंतु गंगा किनारे बनी चिता तक पहुंचना अब और भी मुश्किल हो गया था। बहुत संघर्ष के बाद हम सब एक-एक करके चिता स्थान पर पहुंच गए। हमने उस महामानव को अंतिम प्रणाम कर चंदन की एक लकड़ी उनकी चिता पर रखी। उस दिन बांसघाट पर मानो सारा भारत एकत्रित हुआ था। मैं एक-एक चेहरा बड़े ध्यान से देख रहा था। एमरजैंसी लगाकर जयप्रकाश जी को भयंकर कष्ट देने वाले उनके विरोधी भी अब फूल लेकर आ रहे थे। 

जनता पार्टी के जो बड़े नेता उनके जीते जी लड़ते-झगड़ते रहे वे अब एक स्थान पर इकट्ठे थे। चिता से धुआं उठने लगा और लाखों नेत्र डबडबा उठे। आकाश नारों से गूंज उठा ‘लोकनायक जयप्रकाश नारायण अमर रहें।’ जयप्रकाश जी चले गए पर वह अपने पीछे एक बहुत बड़ा सवाल छोड़ गए थे।
 


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