साफ हवा में सांस लेने की आजादी अभी दूर

punjabkesari.in Tuesday, Dec 16, 2025 - 05:39 AM (IST)

अर्से बाद हुआ है कि सत्तापक्ष और विपक्ष किसी मुद्दे पर संसद में चर्चा के लिए सहमत हो गए। समाधान तो पता नहीं, पर यह भी संतोष की बात है कि संसद दिल्ली-एन.सी.आर. में सांसों पर गहराते संकट पर चर्चा करेगी। ‘वंदे मातरम’ और ‘चुनाव सुधार’ पर राजनीतिक रार के बाद नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने शुक्रवार को शून्यकाल में वायु प्रदूषण का मुद्दा उठाते हुए पेशकश की कि सत्तापक्ष और विपक्ष सदन में चर्चा कर समाधान खोजें, तो संसदीय कार्य मंत्री किरण रिजिजू ने भी चर्चा के लिए सरकार की सहमति जताई। 

छुट्टी का दिन होने के बावजूद शनिवार को दिल्ली में वायु गुणवत्ता सूचकांक (ए.क्यू.आई.) छलांग लगाते हुए 400 पार पहुंच गया। नतीजतन ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (ग्रैप) एक ही दिन में दो बार अपडेट करना पड़ा। हालांकि अब सरकारी आंकड़े बहुत विश्वसनीय नहीं रह गए हैं लेकिन उनके मुताबिक भी दोपहर तक दिल्ली में ए.क्यू.आई. 431 हो गया, जिसके चलते पहले से लागू ग्रैप-2 को ग्रैप-3 में बदलना पड़ा तो शाम होते-होते ए.क्यू.आई. 441 हो गया। नतीजतन गहराते वायु प्रदूषण के मद्देनजर वायु गुणवत्ता आयोग की सब कमेटी ने पूरे दिल्ली-एन.सी.आर. में ग्रैप-4 के तहत प्रतिबंध लगाने का ऐलान कर दिया। फिर भी रविवार की सुबह ए.क्यू.आई. 500 तक पहुंच गया। देश के दिल दिल्ली में हवा की गुणवत्ता इस साल सबसे खराब मानी जा रही है। 

खासकर बच्चों और बुजुर्गों के लिए जानलेवा वायु प्रदूषण का यह आलम तब है, जब दिल्ली सरकार प्रदूषण नियंत्रण के लिए अपनी पीठ खुद थपथपाती रही है। हाल ही में दावा किया गया कि दीवाली पर पटाखे चले और ऑड-ईवन के तहत कारों-बाजारों पर प्रतिबंध भी नहीं लगाए, फिर भी वायु प्रदूषण पिछले साल के मुकाबले नियंत्रण में रहा। लेकिन दिल्ली वालों को साल में उंगलियों पर गिने जा सकने वाले दिन ही वैसी साफ हवा नसीब हो पाती है, वरना पूरे एन.सी.आर. में लोग जहरीली हवा में सांस लेने को मजबूर हैं। दीवाली के आसपास तो ए.क्यू.आई. 900-1000 तक पहुंच जाता है। 

बेशक दिल्ली-एन.सी.आर. निवासियों के लिए सांसों का यह संकट नया नहीं है। एक दशक से तो वे यह संकट झेल ही रहे हैं, जिसका ठीकरा अक्सर दीवाली पर चलाए जाने वाले पटाखों और पड़ोसी राज्यों में जलाई जाने वाली पराली के सिर फोड़ दिया जाता है। दिल्ली सरकार की पैरवी पर सर्वोच्च न्यायालय ने इसी साल, अर्से बाद दीवाली पर सीमित अवधि के लिए ग्रीन पटाखों की अनुमति दी थी। अगले दिन ए.क्यू.आई. गंभीरतम श्रेणी में पहुंच जाना अवधि की सीमा और ग्रीन पटाखों की व्यावहारिकता, दोनों पर ही सवालिया निशान लगा गया।  
सैंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमैंट (सी.एस.ई.) का मानना है कि पराली अब मुख्य खलनायक नहीं है। पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने की घटनाएं कम हुई हैं और वायु प्रदूषण में स्थानीय कारणों का योगदान 85 प्रतिशत तक है। अक्तूबर-नवम्बर में ज्यादातर दिनों वायु प्रदूषण में पराली का योगदान 5 प्रतिशत के आसपास ही रहा। सी.एस.ई. का अध्ययन यह भी बताता है कि वायु प्रदूषण के लिए मुख्य खलनायक वाहन, उद्योग, बिजली संयंत्र और भवन निर्माण आदि हैं।

पूरे देश की तो छोडि़ए, राजधानी दिल्ली और एन.सी.आर. में भी सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था की बदहाली किसी से छिपी नहीं है। पिछले एक दशक में भी मैट्रो के विस्तार और गिनती की इलैक्ट्रिक बसों के अलावा सार्वजनिक परिवहन को विश्वसनीय बनाने की दिशा में कुछ खास नहीं किया गया। इसीलिए लोग अपने सामथ्र्य के अनुसार निजी वाहनों का इस्तेमाल करने को बाध्य होते हैं। फिटनैस अवधि और प्रदूषण नियंत्रण प्रमाणपत्र को भी नजरअंदाज कर पुरानी निजी कारों पर प्रतिबंध से लोगों के कामकाज और अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर पड़ता है। 

सर्वोच्च न्यायालय सांस लेने लायक साफ हवा नागरिकों का मौलिक अधिकार बता चुका है लेकिन उसका हनन करने वालों के विरुद्ध कार्रवाई का अभी तक इंतजार है। आयुष्मान भारत का नारा देने वाली सरकार वायु प्रदूषण के चलते दिल्ली-एन.सी.आर. निवासियों की उम्र 8-10 साल कम होने की आशंका वाले अध्ययनों से कैसे मुंह चुरा सकती है? पद्म पुरस्कार से सम्मानित 80 से अधिक डॉक्टरों ने दिसम्बर के पहले सप्ताह में देश भर में खतरनाक स्तर पर पहुंच चुके प्रदूषण को हैल्थ एमरजैंसी करार दिया था। विडंबना यह है कि उस दिशा में, चिंता जताने से आगे, कोई पहल भी नजर नहीं आती। साल-दर-साल निराशा के बावजूद उम्मीद  की जानी चाहिए कि संसद इस मुद्दे पर दलगत राजनीति से ऊपर उठ कर चर्चा करेगी और कुछ ठोस परिणामपरक दीर्घकालीन रणनीतिक उपायों पर सहमत भी होगी।-राज कुमार सिंह
 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Related News