ऊर्जा दिवस पर इसके उपयोग और संरक्षण को समझना आवश्यक

punjabkesari.in Saturday, Dec 14, 2024 - 06:26 AM (IST)

प्रति वर्ष 14 दिसंबर को भारत सरकार के विद्युत मंत्रालय द्वारा देश भर में ऊर्जा संरक्षण दिवस मनाया जाता है। वैसे तो क्योंकि यह सरकारी आयोजन है और जैसा कि अनुभव है कि धन और समय के व्यय के अतिरिक्त कुछ हासिल नहीं होता फिर भी पाठकों के लिए इस महत्वपूर्ण विषय की जानकारी आवश्यक है।

ऊर्जा के स्रोत : प्रकृति ने ऊर्जा के स्रोतों की उपलब्धता सृष्टि निर्माण से पहले ही कर दी थी। सबसे पहले हमारे सूर्य महाराज आते हैं जो सुबह-सवेरे अपने रथ पर विराजमान होकर समस्त पृथ्वी को प्रकाश और ऊर्जावान बनाने के लिए निकल पड़ते हैं। अब उनके रास्ते में तो कुछ होता नहीं तो वे 150 मिलियन किलोमीटर के खाली रास्ते से संसार के विभिन्न भागों को अपनी बनाई तालिका के अनुसार प्रकाशित करते रहते हैं। एक सैकंड में 3 लाख किलोमीटर की गति से पृथ्वी तक पहुंचने के बाद लगभग 3 चौथाई प्रकाश वापस वायुमंडल में पहुंच जाता है और जो रह जाता है वह प्राणियों, वनस्पतियों, जीव-जंतुओं और सभी प्रकार के ऊर्जा संसाधनों को जीवंत बनाए रखता है। जरा सोचिए जब सूर्य की एक चौथाई ऊर्जा से हम गर्मी के मारे बेचैन हो जाते हैं तो अगर कहीं थोड़ी-सी भी और तपिश होती तो क्या होता?

मनुष्य चाहे अपनी कितनी ही डींग हांके, सच्चाई यह है कि प्रकृति ने ही ऊर्जा स्रोत बनाए हैं और वे नष्ट नहीं होने वाले हैं। इंसान बस इतना कर सकता है कि उनका आकार, प्रकार और उपयोग अपनी बुद्धि और विज्ञान की सहायता से बदल सके। उदाहरण के लिए अणु शक्ति से बिजली बन सकती है तो एटम बम भी। कोयले से रसोई में भोजन बनाने से लेकर भाप इंजन, थर्मल प्लांट और उद्योग चल सकते हैं तो इसका गलत इस्तेमाल करने से निकले धुएं से वायु प्रदूषण भी होता है। प्राकृतिक गैस और तेल से खाना बनाने तथा अन्य कार्यों जैसे वाहन चलाने, उद्योग संचालन और व्यापार बढ़ाने का काम हो सकता है तो इनसे जीवन के लिए खतरा भी पैदा किया जा सकता है। वायु शरीर में प्राण फूंक सकती है तो यह प्रलय भी ला सकती है और सब कुछ नष्ट कर सकती है। इसी तरह जल का तांडव नृत्य देखा जा सकता है तो यही बिजली बनाने, सिंचाई करने और जीवन बचाने का काम करता है। जब जमीन से क्रूड आयल निकलता है तो रंग काला होता है लेकिन जब उसे रिफाइन कर पैट्रोल, डीजल में बदला जाता है तो वह सोने से भी अधिक मूल्यवान हो जाता है।

कुदरत की तरफ से पहले से तय है कि मनुष्य को किस काम के लिए कितनी ऊर्जा चाहिए। यह समझने के लिए इतना काफी है कि जरूरत से ज्यादा रोशनी से आंखें चुंधियां जाती हैं और कम होने पर धुंधला या कुछ दिखाई नहीं देता। जहां तक ऊर्जा यानी शक्ति या ताकत ग्रहण करने की बात है तो यह व्यक्ति की क्षमता और उसके शरीर की जरूरत पर निर्भर है। कम या ज्यादा हुई तो गड़बड़ शुरू। होता यह है कि जब ऊर्जा के लिए व्यायाम, भोजन आदि करते हैं तो शरीर अपने हिसाब से उसे पचा लेता है। शेष ऊर्जा का बाहर निकलना जरूरी है और अगर न निकले तो शरीर बेडौल बन जाता है। वैज्ञानिकों ने सूर्य से प्राप्त ऊर्जा का आकार और उपयोग परिवर्तित कर सौर ऊर्जा को नियंत्रित करने के लिए संयंत्रों का विकास किया। एक तरह से धूप को एक बड़े से विभिन्न धातुओं से बने बर्तन में भरकर अब उन जगहों को रोशन किया जा सकता है जहां बर्फ पडऩे और सर्द मौसम के कारण लोग सिहरते रहते हैं और अकाल मृत्यु का ग्रास बनते हैं। सूरज और पवन देव को मनाने से आज औद्योगिक उत्पादन हो रहा है, पर्यावरण का संरक्षण और वातावरण को सहने योग्य बनाया जा रहा है। मौसम के बेरहम होने पर अंकुश लगाया जा सकता है। गर्मी और ठंड के थपेड़ों से मुक्ति मिलना अब कोई कठिन कार्य नहीं रहा।

मानव की मूर्खता : मनुष्य की अपने पैरों पर स्वयं कुल्हाड़ी मारने की आदत है। इसके चलते वह प्राकृतिक ऊर्जा स्रोतों से खिलवाड़ करने में कसर नहीं छोड़ता। एक उदाहरण; सूर्य की गर्मी हम तक पहुंचने से पहले प्रकृति ने जंगलों और विभिन्न पेड़ पौधों और वनस्पतियों की दीवार खड़ी की। हम उसे गिराने में लग गए और वन विनाश कर बैठे। पहाड़ दरकने लगे, भारी शिलाखंड नदियों के बहने के बीच रुकावट बन गए, हम सूखे, बाढ़ तथा अपनी ही बनाई मुसीबतों से घिर गए। विनाश और जान-माल की भीषण हानि। पवन हो या पानी, बेरोक-टोक अपना विकराल तथा प्रचंड रूप दिखाते रहते हैं। हालांकि आज हमारे पास अपनी ही बनाई टैक्नोलॉजी है जिनसे, मिसाल के लिए, भवन निर्माण आसानी और तेज रफ्तार से किया जा सकता है, सभी तरह के मौसमों का मुकाबला करने हेतु योग्य बनाया जा सकता है। लेकिन दुर्भाग्य यह कि निहित स्वार्थों के चलते उनका सुलभ होना इतना कठिन और महंगा है कि बंदा पुराने ढर्रे पर ही चलने को मजबूर है।

दूर क्यों जाएं, यही देख लीजिए कि सौर ऊर्जा का इस्तेमाल इतना खर्चीला है कि परंपरागत बिजली का इस्तेमाल करना ही सही लगता है। ईको फ्रैंडली गाडिय़ों की बातें बहुत जोर-शोर से होती हैं लेकिन बहकावे में आकर खरीदने की बारी आती है तो उसकी भारी कीमत चुकाने और सही इंफ्रास्ट्रक्चर न होने से लगता है कि घर में सफेद हाथी लाकर खड़ा कर दिया। वास्तविकता यह है कि हमारे देश के घोषणा वीर नेता और निजी स्वार्थ की असलियत छिपाकर जनता को गुमराह करने में माहिर राजनीतिक दल चोर-चोर मौसेरे भाई की तर्ज पर ऊर्जा के सभी स्रोतों पर एकाधिकार का कोई अवसर हाथ से नहीं जाने देते। जब तक इनके चंगुल से निकालने के लिए कोई पहल नहीं होगी तब तक हमारा भला नहीं हो सकता, चाहे कितनी भी शान-शौकत से ऊर्जा संरक्षण दिवस मनाया जाए।-पूरन चंद सरीन
 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Related News