पुरुषों को कानूनी संरक्षण मिलना आवश्यक है
punjabkesari.in Saturday, Mar 29, 2025 - 05:34 AM (IST)

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक निर्णय दिया जिसमें एक 11 साल की बच्ची के साथ कुछ लड़कों द्वारा किए जाने वाले दुष्कर्म की कोशिश को यौन शोषण कानून की बजाय दूसरे आपराधिक कानून लागू करने के लिए कहा गया। उसकी गूंज उच्चतम न्यायालय से लेकर संसद तक सुनाई दी। इसे अमानवीय और असंवेदनशील करार दिया गया। इसके विपरीत हमारे देश में ऐसे भी अनेक मामले हैं जिनमें 10 से 20 वर्ष तक इन सख्त कानूनों के अंतर्गत मिली सजा के कारण किसी निर्दोष को जेल में रहना पड़ा और बहुत ही मुश्किल से रिहाई हुई। कुछ तो आज भी निरपराध होते हुए यौन अपराध की सजा भुगत रहे हैं जो उन्होंने किया ही नहीं।
प्रश्न यह है कि क्या कानून इतना लचीला है कि कोई भी जज या वकील अथवा कोई अधिकारी जिनमें पुलिस और प्रशासन के लोग शामिल होते हैं,उनमें से कोई अपनी इच्छा के अनुसार कार्रवाई कर सकता है और फैसला कर सकता है।
शोषण और उत्पीडऩ : बाल यौन शोषण के लिए सन् 2012 में पॉक्सो एक्ट बना। न्याय संहिता के अंतर्गत 376 और अन्य धाराएं हैं ही और ये सब इतने कठोर हैं कि निर्ममता की सीमाएं लांघ जाते हैं। मान लीजिए कि आपने किसी बच्ची जो आपसे परिचित भी हो सकती है और नहीं भी, आपने उसके गाल को स्पर्श कर दिया तो यह साबित होने से पहले कि आपने यह बाल सुलभ प्यार के कारण किया था या मन में उसके प्रति कोई दूषित भावना थी, आप दोषी सिद्ध किए जा सकते हैं।
इसी प्रकार यदि किसी महिला के काम से खुश होकर या उसके केवल सौंदर्य से प्रभावित होकर कोई टिप्पणी कर दी तो दो संभावनाएं हो जाती हैं कि या तो आपने प्रशंसा के उद्देश्य से ऐसा किया या मन में वासना के कारण किया। कानून केवल इसे यौन शोषण की कोशिश ही मानेगा।
बच्ची हो या महिला, यह तय करना लगभग असंभव है कि किस ने किस भाव से प्रेरित होकर यह काम किया। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश द्वारा अपना निर्णय सुनाने की प्रक्रिया में यह सोच भी हो सकती है कि इन 2 युवकों का पूरा जीवन नष्ट कर देने का निर्णय लें या कम सजा देने के लिए दूसरी धाराओं के अंतर्गत कार्रवाई करने का आदेश दें। इस मामले में गवाह भी एक राहगीर था जिसने यह सब देखा और युवकों को भागने के लिए मजबूर कर दिया और बच्ची सुरक्षित हो गई। जहां तक कानून की बात है उसमें कुछ वर्षों से लेकर आजीवन कैद तक की सजा दी जा सकती है। पॉक्सो एक्ट इतना सख्त है कि कहीं कोई गुंजाइश ही नहीं है कि व्यक्ति अपने को निर्दोष साबित करने के लिए कोई दलील दे सके। उल्लेखनीय है कि 18 वर्ष से कम के व्यक्ति को बच्चों की ही श्रेणी में रखा गया है। इसमें वह सब कुछ शामिल कर लिया गया जिसकी कल्पना की जा सकती थी कि यह सब कुछ हो सकता है और इसके लिए जुर्माना, कठोर कारावास या दोनों दिए जा सकते हैं।
इन मामलों की सुनवाई के लिए विशेष न्यायालयों की स्थापना का प्रावधान रखा गया और बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा, उनके संरक्षण और उन्हें न्याय देने के लिए सभी आवश्यक उपाय करने की बात कही गई। एक तरह से यह मानकर चला गया कि व्यस्क पुरुष किसी भी बच्ची या बच्चे का किसी भी तरह से यौन उत्पीडऩ तो करेंगे ही इसलिए जितना कठोर कानून बनाया जाएगा, वे सुरक्षित रहेंगे। 18 वर्ष की आयु तक बहुत से शारीरिक और मानसिक परिवर्तन होते हैं। शिक्षा के जरिए बहुत सी चीज़ें सीखने के लिए होती हैं कि यह जो हमारा शरीर है उसका विकास कैसे होता है, विभिन्न अंगों में क्या बदलाव आता है और उनकी संरचना कैसे होती है। यह सब कुछ प्राकृतिक रूप से समझ में आता रहता है और परिवार या शिक्षक की सहायता से समझा जा सकता है। जैसे ही 18 वर्ष की आयु पूरी होती है, लड़का हो या लड़की, स्वयं वह सब अनुभव करना चाहते हैं जिसकी अब तक मनाही या बंदिश थी। जुवेनाइल या किशोरावस्था में अनेक लड़के-लड़कियां एक-दूसरे के संपर्क में आते हैं और संयोग से ऐसी परिस्थिति पैदा हो जाती है जिस पर उनका ध्यान नहीं जाता और वे वह कर बैठते हैं जो समाज में स्वीकार्य नहीं है। कानून ऐसा है कि जिसमें केवल इसकी सजा दी जा सकती है, सहमति या असहमति का मतलब ही कुछ नहीं है।
जहां तक धारा 376 का संबंध है तो यह कानून इतना विचित्र है कि यदि कोई महिला किसी पुरुष को ब्लैकमेल करने और उससे धन वसूल करने की नीयत से इसका दुरुपयोग करती है तो वह सीधा उस पर बलात्कार करने का आरोप लगाकर पुलिस की गिरफ्त में ला सकती है। ऐसे अनेक मामले हैं जिनमें एक ही महिला अलग -अलग स्थानों पर पुरुषों के साथ संबंध बनाकर उनके खिलाफ इस धारा के तहत काफी धन वसूलने के बाद गिरफ्त में आई। अक्सर झूठे आरोप में फंसे लोग धन की हानि को बेहतर समझते हुए समझौता कर लेते हैं क्योंकि सामाजिक भय एक ऐसी स्थिति है जिससे बाहर निकलना आसान नहीं होता। निष्कर्ष के तौर पर यह कहा जा सकता है कि गलत आरोप, पुलिस की लापरवाही और न्याय प्रणाली की कमियां ही पॉक्सो कानून और धारा 376 के दुरुपयोग के कारण हैं। यह समस्या तब और गंभीर हो जाती है जब पीड़ित व्यक्ति चुप बैठ जाता है। इसीलिए एक ऐसे क़ानून की जरूरत है जो पुरुषों को न्याय दिला सके।-पूरन चंद सरीन