किसी की धार्मिक आस्था जबरन नहीं बदली जानी चाहिए

punjabkesari.in Wednesday, Dec 07, 2022 - 05:15 AM (IST)

गहरे विश्व आर्थिक संकट के परिणामस्वरूप विश्वभर के देशों में बेरोजगारी, गरीबी तथा भुखमरी में हो रही तेज वृद्धि के साथ-साथ अपराधों तथा अन्य असामाजिक कार्रवाइयां भी शिखर छू रही हैं। भारत की तस्वीर तो इस पक्ष से और भी भयंकर है। 

आर्थिक तंगी से सताए परिवारों के किसी जीव के हाथों सभी पारिवारिक सदस्यों को हथियारों से कत्ल कर दिया जाता है और अधिकतर बाद में कातिल भी अपनी जीवन लीला समाप्त कर देता है। नशे की लत में फंसे युवाओं द्वारा प्रतिदिन अपने परिवारों की हत्याओं की वारदातें इतनी सामान्य हो गई हैं कि अब यह आम लोगों का ध्यान भी नहीं खींचती। प्रेम के वेग में अपनी मर्जी से विवाह के बंधनों में बंधे अनेक जोड़ों द्वारा वास्तविक जीवन में पेश आने वाली आर्थिक-सामाजिक कठिनाइयों से उपजे मानसिक तनाव के कारण आत्महत्याओं का सिलसिला दिनों-दिन जोर पकड़ रहा है। 

कई बार परिवारों में एक-दूसरे के प्रति उत्पन्न गलतफहमियां भी मौत का सबब बन रही हैं। परिवार की मर्जी के खिलाफ युवा लड़के-लड़कियों द्वारा की जाती अंतर्जातीय-अंतरधार्मिक शादियों से खफा होकर जागीरदारी मानसिकता वाले लोग अपने गौरव के नाम पर अक्सर अपनी बच्ची या उसके प्रेमी अथवा कई बार दोनों का गाजर-मूली की तरह काट देते हैं। उपरोक्त कार्रवाइयां किसी विशेष धर्म, जाति या क्षेत्र से संबंधित न होकर समाज के सभी वर्गों तथा धार्मिक व जातीय समूहों तक फैली हुई हैं। 

अफसोस यह है कि शरारती तथा संकीर्ण सोच वाले तत्व ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं को किसी न किसी विशेष धर्म से जोड़ कर साम्प्रदायिक नफरत का गंदा कारोबार शुरू कर देते हैं। तथाकथित धार्मिक गुरु, डेरेदार तथा धर्मों के नाम पर समाज का साम्प्रदायिक आधार पर विभाजन करने के लिए कायम किए गए अराजकतावादी संगठन मसाले लगा-लगा कर उत्तेजना पैदा करने में एक-दूसरे से आगे निकलने की तुरन्त कोशिश शुरू कर देते हैं। ऐसे काले कारनामों का सारे समाज को एकजुट होकर विरोध करना चाहिए।

मगर कुछ साम्प्रदायिक तथा जुनूनी किस्म के नेताओं के बहकावे में आकर कई बार आम लोग दोषी को धार्मिक कट्टरता के चश्मे से देखते हैं। सही-गलत, नैतिक-अनैतिक, तर्क आधारित या तर्क रहित, कानूनी-गैर-कानूनी आदि पैमानों के आधार पर किसी घटना बारे प्रतिक्रिया नहीं दी जाती बल्कि दोषी का धर्म देखकर ही सब कुछ तय किया जाता है। यह मायूस करने वाली सोच अत्यंत असुखद हालातों को जन्म देती है। 

क्या किसी मुसलमान द्वारा अपनी पत्नी से किए गए दुव्र्यवहार को ‘लव जेहाद’ का नाम देकर समस्त मुस्लिम भाईचारे के विरुद्ध नफरत पैदा करना मानवता के दायरे में आता है? क्या किसी हिंदू या सिख परिवार में झगड़े के कारण किए गए पति या पत्नी के कत्ल की अफसोसनाक घटना को कातिल की समूची धार्मिक रिवायतों या विश्वास को निंदा करने के लिए इस्तेमाल करना उचित है?

यह एक जाना-पहचाना वैज्ञानिक तथ्य है कि समाज में होने वाली समाज विरोधी कार्रवाइयों के दोषियों की गिनती विभिन्न धर्मों तथा जातियों के कुल आबादी के अनुपात के करीब-करीब ही रहती है। इसलिए हो चुकी किसी भी दुर्भाग्यपूर्ण घटना को विशेष धर्म या जाति से जोड़ कर उस धर्म के सारे अनुयायियों के सिर मढऩा नाइंसाफी ही तो है। यह कार्रवाई अत्यंत घटिया, शरारती तथा कमीनगी भरे दिमाग की उपज कहाए जाने की हकदार है। 

धर्म परिवर्तन के नाम पर भी बहुत कुछ गलत तथा झूठ प्रचारित किया जा रहा है। लगभग हर धर्म में ऐसे लोग मौजूद हैं जो दूसरे धर्मों के लोगों को पैसा या कोई अन्य सुविधा देने का वायदा करके तथा कोई लालच दिखाकर अपने धर्म में शामिल करना अपना ‘पवित्र’ कत्र्तव्य समझते हैं। जब किसी विशेष धर्म के कट्टरवादी लोगों के हाथ सत्ता आ जाए तो फिर दमन के माध्यम से डराकर भी धर्म परिवर्तन करवाया जाता है। बहुत से धार्मिक तथा सामाजिक संगठन या संस्थाएं हैं जो मानवीय भावना के अंतर्गत समाज के जरूरतमंद लोगों का शैक्षणिक तथा स्वास्थ्य सुविधाओं का खर्चा देने के माध्यम से या किसी अन्य ढंग से सेवा करने में जुटी हुई है। 

नि:संदेह ये संस्थाएं प्रशंसा तथा बधाई की हकदार हैं। मगर उन धार्मिक डेरों, सामाजिक संगठनों तथा धर्म गुरुओं की भी कमी नहीं, जो अपनी विशेष राजनीतिक तथा आर्थिक लालसाओं की पूर्ति के लिए ‘समाज सेवा’ का केवल ढोंग रचते हैं। बाहरी तौर पर इनकी कार्रवाईयां कितनी भी अच्छी लगें मगर वास्तव में ये लोग समाज में विभाजन तथा साम्प्रदायिक जहर घोलने के अतिरिक्त  और कुछ भी नहीं करते। किसी विशेष धर्म को मानना या न मानना हर मनुष्य का निजी अधिकार है। 

इसलिए न किसी की धार्मिक आस्था को जोर-जबरदस्ती अथवा किसी लोभ-लालच के माध्यम से बदलने का प्रयास किया जाना चाहिए, और न ही किसी को धक्के से कोई धर्म मानने के लिए मजबूर करना तर्कसंगत है। यदि कोई व्यक्ति ऐसी गैर-कानूनी कार्रवाई करता भी है तो उसके साथ किसी सशस्त्र हिंसक समूह द्वारा खुद ‘निपटने’ की बजाय उसे कानून अनुसार सजा मिलनी सुनिश्चित की जानी चाहिए। समाज को ऐसे लोगों तथा संगठनों के नापाक इरादों से सावधान रह कर उनकी गलत कार्रवाईयों की निंदा करनी चाहिए।-मंगत राम पासला


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