भारतीयों के लिए कोई भी चुनौती बड़ी नहीं

punjabkesari.in Tuesday, Oct 07, 2025 - 05:36 AM (IST)

जैसे किसी युद्ध के मैदान में लगातार बमों की बारिश होती है, कुछ इसी तरह से इन दिनों अमरीका द्वारा भारत पर लगातार ‘बम’ गिराए जा रहे हैं। कभी 50 प्रतिशत का टैरिफ  बम, कभी दवाओं और फिल्मों पर 100 प्रतिशत टैरिफ, तो कभी एच-1 वीजा पर 88 लाख रुपए की मोटी फीस। यह वही अमरीका है, जिसने ग्लोबलाइजेशन के दौर में कहना शुरू किया था कि व्यापार का कोई देश नहीं होता। जहां मुनाफा,वहीं व्यापार। इसीलिए तमाम बहुराष्ट्रीय निगम चीन और अन्य देशों की तरफ  दौड़े थे, क्योंकि वहां अमरीका की तरह कठोर श्रम कानून नहीं हैं। 

इसके अलावा अमरीका में जो तनखवाहें हैं, उसके मुकाबले इन देशों में बहुत कम देकर काम कराए जा सकते हैं। चीन का उभार इसी तरह से हुआ। हेनरी किसिंजर ने चीन की यात्रा की थी और व्यापार का रास्ता प्रशस्त किया था। चीन ने न केवल अमरीका बल्कि दुनिया भर के बाजारों को अपने यहां बने सस्ते सामानों से पाट दिया। आज चीन दुनिया की दूसरे नम्बर की आॢथकी है। अमरीका उसे चुनौती की तरह देख रहा था। दूसरी तरफ  उसे मैक्सिको से बड़ी संख्या में आने वाले प्रवासियों से शिकायत थी। तीसरी बात अमरीका में बढ़ती आतंकवादी घटनाओं को रोकना था। लेकिन हुआ क्या। राष्ट्रपति चुनाव में जीतने के बाद पहला हमला भारतीयों पर बोला गया। पिछले दिनों एक ऑनलाइन ‘हेट कैम्पेन’ चलाई गई जिसमें इन्हें जॉब थीव्स (रोजगार चुराने वाले) और इनवेडर्स (आक्रांता) कहा जा रहा है। क्या सचमुच ऐसा है? भारतीयों ने सिलिकान वैली को बनाया है। तमाम बड़े उद्योगपतियों के यहां काम करके, उन्हें कहीं से कहीं पहुंचा दिया। सबसे दुखद यह है कि इस तरह की कैम्पेन को परोक्ष-अपरोक्ष रूप से सरकार का समर्थन प्राप्त है। 

कोई सरकार इस तरह किसी कम्युनिटी के खिलाफ  कैम्पेन में सहभागी हो तो उन लोगों की हिम्मत बढऩा तय है जो इस बहाने भारतीयों पर हमले कर रहे हैं। इस प्रसंग में युगांडा के ईदी अमीन की याद आती है। उन्होंने भी कभी भारतीयों को इसी तरह से खदेड़ा था। जबकि दुनिया भर में भारतीय जहां रहते हैं वे बेहद मेहनती और अपने काम से काम रखने वाले माने जाते हैं। यही कारण है कि मशहूर उद्योगपति बिल गेटस ने कहा कि अगर हम भारतीयों की सेवा लेना बंद कर देंगे  तो वे अपना माइक्रोसाफ्ट बना लेंगे। टेस्ला के मालिक एलन मस्क ने भी कहा कि हमारी कम्पनी बनाने में भारतीयों का भारी योगदान है। कई अन्य लोगों ने कहा कि हमें भारतीय इंजीनियर्स की जरूरत है। सबसे ज्यादा दिलचस्प यह है कि जिन भारतीयों को अमरीका के एक सबसे बड़े नेता द्वारा लगातार पीटा जा रहा है, उन्होंने उसे बड़ी संख्या में वोट दिए हैं। उन्हें क्या पता था कि इसकी तपिश उन्हें ही झेलनी पड़ेगी। यही नहीं, जिस पाकिस्तान को कल तक अमरीका आतंकवाद को शरण देने के कारण कोस रहा था, उसे ही बार-बार गले लगाया जा रहा है। 

पाक सेनाध्यक्ष की तारीफों के पुल बांधे जा रहे हैं। हाल ही में कहा गया कि असीम मुनीर को पसंद करने की वजह यह है कि उन्होंने लाखों लोगों की जान बचाई है। अमरीका की देखादेखी भारतीयों के खिलाफ  पूरे यूरोप में लहर आई हुई है। यहां तक कि आस्ट्रेलिया में भी बड़े प्रदर्शन हुए हैं। आस्ट्रेलिया में रहने वाले भारतीयों के लिए सरकार की तरफ  से एडवाइजरी जारी की जा रही है कि वे रात-बिरात बाहर न निकलें। अकेले न जाएं। जब वहां रहने वाली एक रिश्तेदार लड़की से पूछा कि आस्ट्रेलिया तो इतना बड़ा देश है। वहां की आबादी भी कुल दो करोड़ है तो उन्हें क्या समस्या है? उसने कहा कि आस्ट्रेलिया अमरीका की आंख बंद करके नकल करता है।

अगर दुनिया भर में नजर डालें तो देखने में आता है कि लोकतंत्र के नाम पर जो सरकारें चुनी जाती हैं, दरअसल वे कुछ अमीर लोगों की सेवा के लिए होती हैं। अपने देश की आम जनता को देने के लिए उनके पास वायदों के अलावा कुछ नहीं होता। इसीलिए गुस्सा सरकार पर न निकले, लोगों के गुस्से को किसी खास कम्युनिटी की तरफ  मोड़ दिया जाता है कि असली अपराधी हम नहीं, ये हैं। यही हो रहा है। ‘अमरीका फस्र्ट’ के नारे के तहत कहा जा रहा है कि कम्पनियां नौकरियों में अमरीकी लोगों को प्राथमिकता दें। बात सही है। लेकिन यह तो दुनिया भर में मशहूर है कि अमरीकी लोग मेहनती नहीं होते। वे ज्यादा पढऩा-लिखना भी नहीं चाहते। इसीलिए कम्पनियां अपने यहां बाहर से ऐसे कर्मचारियों को बुलाती हैं जो डटकर काम करें और पैसे भी कम देने पड़ें। 

आने वाले दिन भारतीयों के लिए चुनौती भरे हैं, लेकिन उदाहरण बताते हैं कि वे कभी चुनौती से डरते नहीं हैं। उसी में अपनी राह बनाते हैं। सदियों पहले दक्षिण कोरिया से यात्री हैचो यहां आया था। वह पूरे भारत में घूमा था। उसने लिखा कि ऐसा तो देश पहले कभी नहीं देखा, जहां सेना खिचड़ी खाकर मैदान पर शौर्य दिखाती है और राजा झोंपड़ी में रहता है। कहने का अर्थ यह कि भारतीय बहुत कम संसाधनों में अपनी जरूरतें पूरी कर लेते हैं। अमरीका में सेवन कोर्स मील चलता है यानी सात बार खाना । अपने यहां पुरानी कहावत है ‘दो जून का खाना’। असंख्य लोग तो व्रत ही करते हैं। जो लम्बे समय तक व्रत कर सकते हैं, बिना खाए रह सकते हैं, उनके लिए कोई चुनौती बड़ी नहीं है।-क्षमा शर्मा    
 


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