दो एशियाई दिग्गजों के बीच फंसा नेपाल

punjabkesari.in Thursday, Mar 21, 2024 - 05:57 AM (IST)

नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड ने पिछले सप्ताह संसद के 275 सदस्यीय निचले सदन में विश्वास मत जीता, जिसमें उन्होंने उपस्थित 268 सांसदों में से 157 का समर्थन हासिल किया। विश्वास मत, एक साल से कुछ अधिक समय में प्रचंड द्वारा जीता गया तीसरा विश्वास मत था। प्रधानमंत्री द्वारा शेर बहादुर देऊबा के नेतृत्व वाली नेपाली कांग्रेस के साथ अपनी पार्टी का गठबंधन तोडऩे का फैसला उस समय लिया गया जब देऊबा ने के.पी. शर्मा ओली की कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ  नेपाल ( एकीकृत माक्र्सवादी-लेनिनवादी) के साथ एक नया गठबंधन बना लिया। 

नेपाल के संविधान के तहत  किसी सहयोगी द्वारा सत्तारूढ़ गठबंधन से समर्थन वापस लेने के बाद प्रधानमंत्री को विश्वास मत हासिल करना होता है। 89 सांसदों के साथ नेपाली कांग्रेस संसद में सबसे बड़ी पार्टी है। इसके बाद ओली की सी.पी.एन-यू.एम.एल. (79) और प्रचंड की सी.पी.एन-एम.सी. (30) का स्थान आता है। 

सुविधा की राजनीति : 69 वर्षीय प्रचंड ने 26 दिसम्बर, 2022 को तीसरी बार शपथ ली। वह इससे पहले 2008-09 और 2016-17 में प्रधानमंत्री रह चुके हैं और लगभग समर्थन प्राप्त करने के बाद 10 जनवरी, 2023 के फ्लोर टैस्ट में 268 वोट हासिल किए। इस साल 4 मार्च को प्रचंड ने देऊबा को छोड़ दिया और ओली के पास वापस चले गए, जिससे संसद में मतदान शुरू हो गया। भले ही संसद में उनके लिए समर्थन जनवरी 2023 में 268 से घटकर 2 महीने बाद 172 वोटें हो गईं और अब उनकी अपनी पार्टी के केवल 32 वोटों के साथ 157 हो गए हैं, वह सत्ता पर टिके हुए हैं। 

पिछले दशक में प्रचंड, देऊबा और ओली नेपाल में प्रमुख राजनीतिक खिलाड़ी रहे हैं, जहां 2008 के  बाद 13 सरकारें देखने को मिली हैं, 2008 एक ऐसा वर्ष था जिस दौरान नेपाल ने 239 साल पुरानी राजशाही को समाप्त कर दिया था और एक गणतंत्र घोषित किया गया था। 

नई दिल्ली के नजरिए से : नेपाल में असाधारण राजनीतिक अस्थिरता भारत के लिए चिंता का विषय है, जहां प्रचंड के कदमों को सावधानी और प्रशंसा के मिश्रण के साथ देखा जा रहा है। हालांकि प्रचंड ने नई दिल्ली में महत्वपूर्ण सद्भावना बरकरार रखी है, सरकार में उनके साथी ओली अब उनके साथ नहीं हैं। नेपाल में राजनेता अक्सर देश को ‘इंडिया लॉक्ड’ के रूप में वर्णित करते हैं, जिसका अर्थ है कि बंदरगाहों तक पहुंच के लिए इसे भारत की आवश्यकता है। भूगोल का एक तथ्य जिसे भारतीय राजनयिक ‘इंडिया ओपन’ के रूप में परिभाषित करना पसंद करते हैं। नई दिल्ली ने खुद को नेपाल के लिए एक उदार ‘बड़े भाई’ के रूप में पेश करने की कोशिश की है, जैसा कि पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने  एक नियंत्रित और दबाव डालने वाले ‘बड़े भाई’ के रूप में वर्णित किया था। 

भारतीय विदेश नीति प्रतिष्ठान का कहना है कि भारत नेपाल का सबसे बड़ा व्यापार भागीदार है, जिसका द्विपक्षीय व्यापार वित्त वर्ष 2019-20 में 7 बिलियन डॉलर को पार कर गया है और भारत नेपाल के लगभग सभी तीसरे देशों के व्यापार के लिए पारगमन प्रदान करता है। पिछले एक दशक में नेपाल को भारतीय निर्यात 8 गुना से अधिक बढ़ गया है जबकि नेपाल से निर्यात लगभग दोगुना हो गया है। 

लगभग 80 लाख नेपाली नागरिक भारत में रहते हैं और काम करते हैं और लगभग 6 लाख भारतीय नेपाल में रहते हैं। नेपाल में विदेशी पर्यटकों में लगभग 30 प्रतिशत भारतीय हैं। नेपाल से भारत में द्विपक्षीय प्रेषण प्रवाह $3 बिलियन और विपरीत दिशा में $1 बिलियन डॉलर होने का अनुमान है। नेपाल के संबंध में बिजली, पानी और बुनियादी ढांचे में सहयोग भारत के राजनयिक टूलकिट का एक प्रमुख तत्व रहा है। 

नेपाल में भारत बनाम चीन : नेपाल दो एशियाई दिग्गजों के बीच फंसा हुआ है और देश के पूर्व राजाओं सहित नेपाली राजनीतिक नेतृत्व लम्बे समय से भारत के साथ संबंधों को प्रबंधित करने के लिए चीन कार्ड खेलने की कोशिश कर रहा है। चीन काठमांडू को नई दिल्ली से दूर करने के लिए बुनियादी ढांचे में सहायता और निवेश कर रहा है। चीन से नेपाली आयात 2013-14 में, भारतीय 49.5 अरब रुपए से लगभग तीन गुना बढ़कर 2022-23 में 138.75 अरब रुपए यानी कि 1.67 अरब डॉलर हो गया। चीन के प्रति स्पष्ट झुकाव रखने वाले ओली की काठमांडू में सरकार में वापसी के साथ नई दिल्ली नेपाल के घरेलू मामलों में अधिक सक्रिय और प्रभावशाली भूमिका निभाने के लिए पेइङ्क्षचग के अपेक्षित प्रयासों पर उत्सुकता से नजर रखेगी। 

नेपाल में कुछ विश्लेषक भाजपा के नेतृत्व में भारत को नेपाल को हिन्दू राज्य की दिशा में धकेलने की कोशिश के रूप में देखते हैं, जिससे उस देश में कुछ प्रतिक्रियाएं शुरू हो गई हैं। नेपाल की राजनीति और भविष्य पर नई दिल्ली की स्थिति सूक्ष्म और लचीली रहनी चाहिए, जिसके केन्द्र में नेपाल के लोग हों, उसे यह सुनिश्चित करना चाहिए कि चीन या उसके प्रतिनिधियों को भारत के खिलाफ संदेह या पूर्वाग्रह पर सवार होने का मौका न मिले। एक ‘बड़े भाई’ से अधिक भारत को नेपाल के लिए एक समान भागीदार बनना चाहिए।-शुभजीत रॉय 


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