पुलिस बल का उत्साह तथा गौरव बहाल करने की जरूरत

punjabkesari.in Friday, May 20, 2022 - 04:54 AM (IST)

मुम्बई पुलिस के नव-नियुक्त कमिश्रर संजय पांडे अपनी आक्रामक प्रो-पीपुल पुलिसिंग के साथ तरंगें पैदा कर रहे हैं। प्रतिदिन अंग्रेजी भाषा तथा स्थानीय भाषाओं के समाचार पत्र लोगों के साथ सोशल मीडिया पर उनके मिलने-जुलने तथा अपने वायदों को पूरा करने बारे समाचार छापते हैं। 

25 वर्ष पूर्व जब मैं रोमानिया से लौटा था डी.सी.पी. के तौर पर संजय एक जोन के प्रभारी थे जिसमें शहर का सबसे बड़ा झोंपड़ पट्टी क्षेत्र धारावी शामिल था। उनकी निष्पक्षता ने इस हिंसक क्षेत्र में साम्प्रदायिक शांति कायम की। मैंने उनके बारे में बहुत-सी कहानियां सुनी हैं। 

मुम्बई शहर के पुलिस कमिश्रर उन दो सरकारी अधिकारियों में से एक हैं जो इस महानगर के नागरिकों के लिए महत्व रखते हैं। प्रारंभिक कोलोनियल दिनों के दौरान पुलिस प्रमुख को म्युनिसिपल चीफ कहा जाता था। जब बोझ बहुत बढ़ गया तो दोनों कामों को अलग-अलग कर दिया गया और दोनों के अलग प्रमुख बनाए गए, एक पुलिस काडर से तथा नए बनाए पद के लिए सिविल सेवा से। पंजाब तथा चंडीगढ़ मूल के इकबाल चाहल वर्तमान में मुम्बई के निगम आयुक्त हैं। 

भारतीय सिविल सेवा के स्टीफन मेरेडिथ एडवर्ड्स, जो कोलोनियल काल में मुम्बई के बहुत सफल निगम आयुक्त थे, को नगर निकाय में उनका कार्यकाल पूर्ण होने पर पुलिस कमिश्रर नियुक्त किया गया था। उनको दंगों तथा हिंसा को समाप्त करने का श्रेय जाता है जो कई वर्षों तक शियाओं के मुहर्रम के जुलूस के दौरान होती रही। पुलिस कमिश्रर के तौर पर अपना कार्यकाल पूर्ण होने के बाद लिखे अपने संस्मरणों में एडवर्डस ने उल्लेख किया कि पुलिस प्रमुख का कार्य सर्वाधिक बोझ वाला होता है। इसने उनके स्वास्थ्य पर इस हद तक असर डाला कि उन्हें आई.सी.एस. से इस्तीफा देना पड़ा।

स्वतंत्रता के बाद बॉम्बे शहर के पुलिस का जिन कमिश्ररों ने नेतृत्व किया वे किरदार वाले व्यक्ति थे। बम्बई प्रांत की सरकार चलाने वाले राजनेता आई.सी.एस. तथा आई.पी.एस. अधिकारियों का सम्मान करते थे जो नौकरशाही तथा पुलिस के वरिष्ठ रैंक बनाते थे। बदले में अधिकारी उनका सम्मान करते थे। मोरारजी देसाई, यशवंत राव चव्हाण, डा. बी.जी. खेर तथा उन जैसे लोग पुलिस के आंतरिक प्रशासन अथवा संचालन स्वतंत्रता में दखलअंदाजी नहीं करते थे। आई.पी.एस. अधिकारियों की पोस्टिंगस तथा स्थानांतरणों बारे आई.जी.पी. के सुझावों का सम्मान तथा उन्हें लागू किया जाता था। अधीनस्थ रैंकों की पोस्टिंग विभागीय प्रमुखों पर छोड़ दी जाती थीं। 

यदि पुलिस प्रमुख जिला स्तर पर अपने कत्र्तव्यों का निर्वहन करने में कोताही बरतते या यदि स्टेशन हाऊस ऑफिसर्स अपनी कानूनी अथवा नैतिक सीमाएं लांघ जाते तो स्थानीय विधायक तथा पार्टी नेता इस तरह के अस्वीकार्य व्यवहार को विभागीय अधिकारियों के नोटिस में लाते ताकि मामला सुलझाया जा सके। यदि यह काम नहीं करता तो बी.आई.जी.पी. और यहां तक कि आई.जी.पी. तक पहुंच की जाती और इससे मामला सुलझ जाता। 

फरवरी 1982 से मई 1985 तक पुलिस कमिश्रर के तौर पर मैंने सुनिश्चित किया कि पुलिस कांस्टेबल से लेकर सहायक पुलिस आयुक्त तक कोई भी अधीनस्थ अधिकारी तबादलों के लिए राजनीतिज्ञों से सम्पर्क नहीं करेगा। चूंकि मैंने कमिश्रर के पद के लिए नहीं कहा था इसलिए मुझे ङ्क्षचता नहीं थी कि मुझे कहां भेजा जाता है। इससे भी अधिक महत्वपूर्ण निचले कर्मचारियों को यह संदेश था कि मैं उनका नेता था और उन्हें मेरे आदेशों का पालन करना था। यदि मैं किसी दबाव के आगे झुक जाता तो वे मुझमें अपना विश्वास तथा सम्मान खो देते। 

मैं ऐसा इसलिए कर सका क्योंकि पुलिस बल तथा शहर के लोग मेरी ओर थे। मैं ऐसा इसलिए कर सका क्योंकि मैंने अपने पद के लिए कोई लॉबिंग नहीं की। जिन लोगों ने लॉबिंग की उन्होंने अपनी आत्मा तथा वर्दीधारी बल का नेतृत्व करने का अपना अधिकार गंवा दिया। मैंने हमेशा वर्षों तक अपने साथ काम करने वाले युवा अधिकारियों को निरंतर इस बात पर डटे रहने को कहा।

चूंकि आज के राजनेताओं ने यह निष्कर्ष निकाल लिया है कि उनके निजी तथा पार्टी हितों के अनुसार उनके पास स्थानांतरणों तथा नियुक्तियों का अधिकार है, विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों की नेक सलाह को नजरअंदाज करते हुए, और साथ ही उन लोगों की प्रमुख चिंताओं को नजरअंदाज करते हुए जो वोट देकर उन्हें सत्ता में लाए। हमारे सामने एक कमिश्रर की दुखद वास्तविकता है जिसे वसूली तथा उससे भी अधिक गंभीर आरोपों के लिए सेवा से निलंबित कर दिया गया। 

लोगों के चुने हुए प्रतिनिधियों का कत्र्तव्य है कि वे स्थानांतरणों तथा पोस्टिंग के अपने अधिकार का इस्तेमाल जनता के लाभ में करे। जब वे किसी ऐसे पुलिस कमिश्रर का चुनाव करते हैं जिसकी निष्ठा संदिग्ध हो और वह निजी तौर पर उनके लाभ बारे सोचे तो वे अपने जनादेश का अपमान करते हैं। सरकार को सिटी पुलिस के उत्साह तथा गौरव को बहाल करने की जरूरत है। वर्तमान में पुलिस कर्मचारियों का मनोबल बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। यह ध्यान में रखते हुए कि नागरिकों के जीवन तथा सम्पत्ति की सुरक्षा इसकी पुलिस की कारगुजारी पर बहुत अधिक निर्भर करती है, राजनीतिक नेतृत्व को पुलिस अधिकारियों का चयन भेड़-बकरियों की तरह नहीं करना चाहिए। जैसे कि अब हो रहा है। 

संजय पांडे की सेवानिवृत्ति में महज 4 महीने बचे हैं। अपने बल पर कारगुजारी की छाप छोडऩे के लिए यह पर्याप्त समय नहीं है। फुसफुसाहटें यह हैं कि उनकी नियुक्ति परमबीर सिंह का मामला ठिकाने लगाने के लिए की गई है। यदि यह सच है तो मैं उन्हें सतर्क रहने की सलाह दूंगा। उनका कार्य सरकार की मूर्खताओं को नकारना नहीं है। उनका काम अपने नीचे के अधिकारियों को लोगों की सेवा के लिए प्रेरित करना है। संजय में ऐसे परिणाम देने की क्षमता है।-जूलियो रिबैरो(पूर्व डी.जी.पी. पंजाब व पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी)


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