‘जी.एस.टी.’ को और अधिक सरल व प्रभावशाली बनाने की जरूरत

punjabkesari.in Friday, Dec 28, 2018 - 04:30 AM (IST)

यकीनन इस समय जब वर्ष 2018 अपने अंतिम सोपान पर है, तब भी देश और दुनिया में भारत के वस्तु एवं सेवा कर (जी.एस.टी.) पर लगातार समीक्षाएं प्रस्तुत की जा रही हैं। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आई.एम.एफ.) ने अपनी रिपोर्ट 2018 में कहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में जी.एस.टी. एक दूरगामी आर्थिक सुधार था। जहां अब इस आर्थिक सुधार से संबंधित प्रारम्भिक मुश्किलें कम होने लगी हैं, वहीं अर्थव्यवस्था के परिदृश्य पर विकास दर बढ़ती हुई दिखाई दे रही है। 

वर्ष 2018 में भारत विकास दर के मामले में दुनिया में पहले क्रम पर दिखाई दे रहा है। देश और दुनिया के अधिकांश अर्थ विशेषज्ञों के विश्लेषणों में यह बात उभरकर सामने आ रही है कि जी.एस.टी. भारत के लिए लाभप्रद कदम है लेकिन उपयुक्त क्रियान्वयन के अभाव में जहां इनका लाभ अर्थव्यवस्था को पर्याप्त रूप में नहीं मिल पाया, वहीं अब जी.एस.टी. से जो कुछ मुश्किलें आईं उन्हें दूर करने का परिदृश्य दिखाई दे रहा है। 

प्रतिकूल प्रभाव
गत 17 दिसम्बर को ऑल इंडिया मैन्युफैक्चरर्स ऑर्गेनाइजेशन (ए.आई.एम.ओ.) द्वारा प्रकाशित किए गए एक सर्वे के मुताबिक 2017 में जी.एस.टी. लागू किए जाने से नौकरियों में कमी आई। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आर.बी.आई.) की मिनी स्ट्रीट मैमो रिपोर्ट 2018 में कहा गया है कि जी.एस.टी. से छोटे उद्योग-कारोबारों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। भारत सरकार के पूर्व आॢथक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन द्वारा लिखी गई नई किताब ‘ऑफ काऊंसिल : द चैलेंजेस ऑफ द मोदी-जेतली इकोनॉमी’ में कहा गया है कि जी.एस.टी. लागू किए जाने के लिए और अधिक तैयारी की जानी चाहिए थी। 

गौरतलब है कि 1 जुलाई, 2017 को देश का सबसे बड़ा अप्रत्यक्ष कर (इनडायरैक्ट टैक्स) सुधार वस्तु एवं सेवा कर (जी.एस.टी.) लागू किया गया। 1 जुलाई के पहले तक देश में 17 तरह के अप्रत्यक्ष कर लागू रहे थे। पारंपरिक रूप से एक्साइज ड्यूटी और कस्टम ड्यूटी अप्रत्यक्ष कर राजस्व का प्रमुख भाग रहे हैं। इसके अलावा सर्विस टैक्स, सेल्स टैक्स, कमर्शियल टैक्स, सेनवैट और स्टेट वैट आक्ट्राय, एंट्री टैक्स भी महत्वपूर्ण रहे हैं। 

लाभ मिलने लगे
जी.एस.टी. के तहत माल एवं सेवाओं के लिए 4 स्लैब बनाए गए हैं। ये हैं- 5,12,18 और 28 फीसदी के स्लैब। लेकिन सरकार ने जी.एस.टी. के जिस ढांचे को अंगीकृत किया है वह मूल रूप से सोचे गए जी.एस.टी. के ढांचे से काफी अलग है। इसमें कोई दो मत नहीं हैं कि जी.एस.टी. लागू होने के बाद विक्रेताओं को टैक्स अंतर का लाभ उपभोक्ताओं को देने से शुद्ध राजस्व में मिलने वाले लाभ के महत्व का एहसास हुआ है। जी.एस.टी. लागू होने के बाद वस्तुओं की ढुलाई सुगम हुई और टैक्स भी एक समान हुए। राज्य स्तरीय करों के खत्म होने पर टैक्स संबंधी तमाम बाधाएं, सीमा प्रतिबंध, ढुलाई में देरी और ऐसी ही दूसरी रुकावटें अब कम हो गई हैं। कर अनुपालन की कम्प्यूटरीकृत व्यवस्था लागू होने से इसमें मानवीय हस्तक्षेप भी काफी खत्म हो गया, जिसके कारण दलाली और भ्रष्टाचार पर भी अंकुश लगा है। 

इसमें कोई दो मत नहीं कि जी.एस.टी. लागू होने के बाद देश की अर्थव्यवस्था पर जी.एस.टी. का प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। वैश्विक संगठनों ने कहा कि आॢथक विकास दर सुस्त रहने की एक प्रमुख वजह जी.एस.टी. का लागू होना है। यद्यपि विकास दर में कमी जी.एस.टी. से पहले भी आनी शुरू हो गई थी लेकिन जी.एस.टी. ने इसमें तेजी ला दी। लेकिन वर्ष 2018 की शुरूआत के साथ जी.एस.टी. संबंधी मुश्किलें कम होने लगीं और इसका लाभ दिखने लगा है। नि:संदेह शुरूआत में जी.एस.टी. के कारण विकास दर घटी लेकिन उसके बाद विकास दर बढऩे लगी है। वर्ष 2017-18 में यह 7.5 फीसदी रही। लेकिन इस आॢथक निर्णय के जो लक्ष्य एवं उद्देश्य रहे हैं उन्हें प्राप्त करने के लिए अभी लंबी मंजिल तय की जानी है। 

उल्लेखनीय है कि 22 दिसम्बर को जी.एस.टी. काऊंसिल ने आम आदमी के उपयोग की 17 वस्तुओं और 6 सेवाओं पर जी.एस.टी. की दरें घटाने का फैसला किया। इससे वाहनों के कुछ कलपुर्जे, लीथियम ऑयल बैटरी वाले पावर बैंक, 32 इंच तक के मॉनीटर और टी.वी., सिनेमा के टिकट, टायर, वीडियो गेम कंसोल जैसी वस्तुएं सस्ती होंगी। काऊंसिल ने कुल 7 वस्तुओं को 28 प्रतिशत स्लैब के दायरे से बाहर किया है।  नई दरें 1 जनवरी से प्रभावी होंगी। चूंकि जी.एस.टी. का छोटे उद्योग-कारोबारों पर प्रतिकूल प्रभाव भी पड़ा है, अतएव इस क्षेत्र को मुस्कराहट देने के लिए प्रधानमंत्री द्वारा 2 नवम्बर, 2018 को जो 12 सूत्रीय पैकेज दिया गया है, उसका उपयुक्त क्रियान्वयन जरूरी है। 

पोर्टल संबंधी मुश्किलें दूर हों
यकीनन जी.एस.टी. में सुधार के लिए सरकार को काफी प्रयास करने होंगे। खासतौर से जी.एस.टी. पोर्टल से संबंधित मुश्किलों को सबसे पहले दूर करना होगा। जी.एस.टी. परिषद द्वारा जहां पर्याप्त सतर्कता, सावधानी रखी जानी जरूरी होगी, वहीं उद्योग-कारोबारों के साथ संवाद अपरिहार्य होगा। ध्यान रखा जाना होगा कि जी.एस.टी. एक बार राजस्व निरपेक्ष हो जाए तो इसे और अधिक ताॢकक बनाया जाए। 

यहां तार्किक बनाने से तात्पर्य है कर दरों की संख्या तथा उनके दायरे में कमी। जी.एस.टी. की 12 और 18 फीसदी की दरों को एक साथ मिलाया भी जा सकता है। यह मिश्रण कुछ इस तरह किया जा सकता है कि इससे महंगाई न बढ़े। हम आशा करें कि सरकार जी.एस.टी. को और अधिक सरल व प्रभावी बनाएगी, जिससे देश की अर्थव्यवस्था गतिशील होगी और ऐसा होने पर भारत आगामी 10-12 वर्षों में दुनिया का विकसित देश और दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में दिखाई देगा।-डा. जयंतीलाल भंडारी


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Pardeep

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