राजनीतिज्ञ-पुलिस-अपराधी गठजोड़ तोड़ने की जरूरत

punjabkesari.in Friday, Apr 09, 2021 - 03:13 AM (IST)

अपने सामने दायर जनहित याचिकाओं पर निर्णय देते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने राज्य के गृहमंत्री के खिलाफ पदमुक्त पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह द्वारा लगाए इन आरोपों की जांच करने के लिए सी.बी.आई. को बहुत सही निर्देश दिए हैं कि गृहमंत्री ने शहर के क्राइम ब्रांच के दो कनिष्ठ अधिकारियों को अपने आवास पर बुलाया और मांग की कि वे रुपए इकट्ठे करें। 10 करोड़ प्रति माह शराब की दुकानों तथा अन्य ऐसे संचालकों से लेकर धन उनके पास जमा करवाएं। 

मेरे राज्य महाराष्ट्र में गृह मंत्रियों के लिए यह असामान्य नहीं है कि पुलिस इंस्पैक्टरों को अपने कार्यालय, कई बार अपने घर पर बुलाना तथा ‘अधिकारिक’ मामलों में उन्हें सीधे निर्देश देना। यह अत्यंत अनुचित है। सभी निर्देश सी.पी. (पुलिस कमिश्रर) के माध्यम से दिए जाने चाहिएं लेकिन किसी भी सी.पी. में इतनी हिम्मत नहीं है कि वह मंत्री को बता सके कि उसे चयन ऑफ कमांड नहीं तोडऩी चाहिए। खुद परमबीर सिंह, जब वह एक मध्यम रैंक के अधिकारी थे, आमतौर पर ए.सी.एस. (गृह) के कार्यालय जाया करते थे और बहुत लम्बे समय तक उनके करीबी रहे। 

हाईकोर्ट ने महसूस किया कि सी.बी.आई. एक ‘स्वतंत्र’ इकाई है। यह सुप्रीमकोर्ट की राय के बिल्कुल विपरीत है जिसके द्वारा एजैंसी को ‘पिंजरे में कैद तोता’ बताया जाना काफी प्रसिद्ध है। उन दिनों यह एक ‘पिंजरे में बंद तोता’ थी और अब अमित शाह के नेतृत्व में और भी अधिक।

एजैंसी निश्चित तौर पर अनिल देशमुख को गिरफ्तार कर लेगी क्योंकि भाजपा महाराष्ट्र में गठबंधन सरकार को गिराने के लिए हर हीला कर रही है। मगर क्या इससे परमबीर सिंह का भी पर्दाफाश हो जाएगा, यदि वह भी पदमुक्त होने से पहले इसमें एक सांझीदार रहे होंगे? क्या इससे इसके कमिश्रर द्वारा सचिन वाजे को सामने लाने से सिटी पुलिस की क्राइम ब्रांच के पाप भी सामने आ जाएंगे? अनिल देशमुख के खिलाफ अभियोग लगाने के बाद परमबीर अब भाजपा खेमे में वापस आ गए हैं। इससे उन्हें वह सुरक्षा मिलेगी जिसकी अब अत्यंत जरूरत है। 

परमबीर को कुछ कठिन प्रश्रों के उत्तर देने हैं। 13 वर्षों तक निलंबन के बाद सचिन वाजे को कैसे बहाल किया गया? क्यों उन्हें कोविड संबंधी ड्यूटियों पर लगाने की बजाय क्राइम ब्रांच में लगाया गया? क्यों उन्हें क्राइम इंटैलीजैंस यूनिट का स्वतंत्र प्रभार दिया गया, जो एक ऐसा पद है जिसे सामान्य  तौर पर एक वरिष्ठ इंस्पैक्टर संभालता है? क्यों उसे क्राइम ब्रांच में अपने से ऊपर वाले वरिष्ठों की बजाय सीधे खुद कमिश्रर को रिपोर्ट करने की आज्ञा दी गई? 

यह मुश्किल प्रश्र है लेकिन कुछ इससे भी अधिक मुश्किल हैं। क्या परमबीर को अम्बानी के घर के पास जिलेटिन छड़ों तथा एक धमकी भरे पत्र के साथ कार रखने की वाजे की योजना की जानकारी थी? निश्चित तौर पर वाजे, एक असिस्टैंट इंस्पैक्टर, अपने तौर पर यह योजना नहीं बना सकता था। क्या परमबीर को पता था कि वाजे आया और कमिश्रर के कार्यालय परिसर में स्थित अपने कार्यालय से एक मर्सीडीज कार में निकला, जो एक बहुत कनिष्ठ अधिकारी के लिए बड़ी अनोखी बात है। यदि उन्हें पता था तो उनकी प्रतिक्रिया क्या थी और उन्होंने वाजे को क्या सलाह दी? क्या उन्हें पता था कि वाजे फाइव स्टार ओबराय होटल के एक कमरे से आप्रेट कर रहा था? 

अपनी ईमानदारी के लिए जाने जाते राज्य के वरिष्ठतम आई.पी.एस. अधिकारी संजय पांडे को राज्य के गृहमंत्री ने उन्हें अपने ही आई.पी.एस. सहयोगियों से संबंधित नाजुक जांच के काम में लगाया था। अब उनका आरोप है कि परमबीर सिंह ने ऐसी ही एक जांच बंद करने का उनसे आग्रह किया था और पांडे का कहना है कि उन्होंने इस बातचीत को रिकार्ड कर लिया। उनके खुलासे ने इस नाटक में ताजा मसाला भर दिया है जिसके समाप्त होने के कोई आसार नहीं हैं।
जांच आयुक्त के पद पर नियुक्त एक अन्य वरिष्ठ आई.पी.एस. अधिकारी रश्मि शुक्ला ने गृहमंत्री के साथ आई.पी.एस. तथा राज्य के सेवा अधिकारियों की बातचीत रिकार्ड की है, जिसमें पोस्टिंग तथा स्थानांतरणों के लिए नकदी बारे चर्चा की गई। 

यदि यह सच है कि राकांपा सुप्रीमो गाल ब्लैडर की सर्जरी के लिए अस्पताल में दाखिल होने से पूर्व अहमदाबाद में अमित शाह से मिले थे, सचिन वाजे की कहानी अधिक नाटकीय मोड़ ले सकती है। वाजे के संरक्षक परमबीर ने एक अन्य बर्खास्त ‘एनकाऊंटर स्पैशलिस्ट’ प्रदीप शर्मा को 2017 में सेवा में वापस लिया था, जब वह (परमबीर) ठाणे के पुलिस आयुक्त थे। परमबीर सिंह ने अतीत में अतिरिक्त डी.जी.पी. (कानून व्यवस्था) के तौर पर फड़णवीस को एक प्रैस कांफ्रैंस को संबोधित करने में मदद की थी ताकि भीमा कोरेगांव मामले में वामपंथी  बुद्धिजीवियों की गिरफ्तारी को न्यायोचित ठहराया जा सके। स्वाभाविक है कि फड़णवीस ने परमबीर पर अधिक विश्वास जताया, जो भीमा कोरेगांव जांच में सीधे तौर पर शामिल नहीं थे। 

यदि पवार शिवसेना नीत सरकार को गिराने के लिए भाजपा के साथ कोई सौदेबाजी करने वाले हैं तो परमबीर सिंह, जिन्होंने भाजपा में वापसी करके एक रणनीतिक चाल चली है, का भविष्य फिर एक धागे से लटक जाएगा। वह चतुर हैं लेकिन सत्ता तथा बदले के प्यासे राजनीतिज्ञ बहुत खतरनाक हैं। यदि परमबीर सिंह को शरद पवार तथा अमित शाह की संयुक्त ताकत का सामना करना पड़ा तो लड़ाई एकतरफा रास्ता ले लेगी। इस शहर की ङ्क्षचता तथा पुलिस सांस रोक कर प्रतीक्षा कर रही हैं। राजनीतिज्ञ-पुलिस-अपराधी गठजोड़ को तोडऩे की जरूरत है।-जूलियो रिबैरो(पूर्व डी.जी.पी. पंजाब व पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी)


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