नॉर्डिक देश चीन को अपने क्षेत्र में और सहन नहीं कर सकते
punjabkesari.in Tuesday, Jul 19, 2022 - 11:52 AM (IST)

आज से 5 वर्ष पहले तक नॉर्डिक देश, जिनमें नॉर्वे, फिनलैंड, स्वीडन और डेनमार्क आते हैं, चीन के बहुत करीब चले गए थे। इन देशों ने चीन के साथ अपने व्यापारिक रिश्ते बढ़ाए, चीनी निवेश को अपने देशों में आकर्षित करने के लिए और चीन से व्यापारिक रिश्ते बनाने के लिए इनमें आपस में होड़ लगी रहती थी। इन्होंने अपने देश में चीनी तकनीकी कंपनियों को बढ़ावा दिया और कई सारे समझौते किए, लेकिन अब समय बदल गया है।
ये नॉर्डिक देश आज की तारीख में न सिर्फ चीन से अपने व्यापारिक रिश्तों पर विराम लगा रहे हैं, बल्कि चीनी तकनीकी कंपनियों को भी ‘गुड बाय’ बोल रहे हैं। अब ये देश चीन को अपने यहां देखना तक नहीं चाहते। इन देशों की इस हरकत से चीन बुरी तरह से तिलमिला गया है। वर्ष 2019 में चीनी टैलीकॉम तकनीकी कंपनी हुआवेई, जो 5-जी तकनीक के साथ इन देशों में आना चाहती थी, पर नॉर्डिक सरकारों ने सुरक्षा मुद्दे को देखते हुए प्रतिबंध लगा दिया। इन देशों को इस बात का खतरा था कि हुआवेई इनकी सारी संवेदनशील जानकारियां चीन की कम्युनिस्ट सरकार से सांझा करेगी, क्योंकि चीन में ऐसा प्रावधान है कि जब देश को जरूरत पड़े तो सारी निजी और सरकारी कंपनियां अपनी जानकारी सरकार से सांझा करेंगी।
इसके अलावा जिन मुद्दों पर नॉॢडक देशों ने चीन से किनारा किया, वह था हांगकांग प्रदर्शन के दौरान चीन सरकार का बर्बर रवैया, शिनच्यांग वेवूर स्वायत्त प्रांत में उईगर मुसलमानों को यंत्रणा कैम्प में रखना और उनसे जबरन मजदूरी करवाना, जिस कारण नॉॢडक देशों ने चीन के साथ अपने संबंधों का पुनरावलोकन किया और चीन के साथ अपने संबंधों को समेटने लगे। अब ये देश चीन को अपना ‘प्रणालीगत प्रतिद्वंद्वी’ मान रहे हैं। सबसे पहले मार्च 2019 में इस शब्दावली का प्रयोग यूरोपीय संघ के साथ-साथ फिनलैंड और डेनमार्क ने भी चीन से रिश्तों को लेकर किया था। इसके बाद डेनमार्क और स्वीडन के चीन के साथ रिश्ते इतने खराब हो गए कि वे लड़ाई-झगड़े के स्तर तक उतर आए। डेनमार्क के मामले में एक स्थानीय अखबार द्वारा चीन के झंडे का कार्टून कोरोना वायरस के साथ बनाना चीन को चुभ गया, इसके अलावा डेनमार्क के संसद भवन के सामने ‘पिल्लर ऑफ शेम’ नाम का एक स्मारक बनाने से चीन बुरी तरह बिफर गया।
वहीं हांगकांग में स्वीडिश नागरिक कुई मिनहाई को चीनी पुलिस द्वारा पकडऩे और उस पर चीन के खिलाफ स्वीडन के लिए जासूसी करने का आरोप लगा कर 10 वर्षों के लिए जेल में डालने और चीनी तकनीकी कंपनी हुआवेई पर स्वीडन द्वारा प्रतिबंध लगाना संबंधों में दरार डाल गया। इसके अलावा चीन द्वारा स्वीडन मामले में शॉटगन कूटनीति ने दोनों के संबंधों को और ज्यादा खराब किया। शॉटगन कूटनीति के तहत एक देश दूसरे को समझौते के लिए हिंसा की धमकी देता है। वहीं फिनलैंड को चीन से अपनी संवेदनशील आधारभूत संरचना को खतरा था, इस बात की जानकारी फिनलैंड सरकार को उनकी राष्ट्रीय सुरक्षा सेवा सूपो से लगी। चीन पर फिनलैंड के संवेदनशील डाटा चुराने और उनकी खुफिया जानकारी कम्युनिस्ट सरकार को भेजने के आरोप लगे।
नॉर्डिक देश चीन के प्रति इतने सतर्क हो गए कि स्वीडिश सरकार ने विशेष तौर पर चीन का नाम लेते हुए कहा कि वह स्वीडन के लिए एक शत्रु देश है, जिससे स्वीडन को उसके संवैधानिक अधिकारों के हनन, आर्थिक तरक्की की आजादी, राजनीतिक निर्णय लेने की शक्ति और देश की सीमा की संप्रभुता को खतरा है। चीन ने इन देशों में चीनी सांस्कृतिक पहलुओं को बढ़ाने के लिए कन्फ्यूशियस संस्थान बनाया था, लेकिन असल में चीन उसकी आड़ में इन देशों की जासूसी कर रहा था। हाल ही में फिनलैंड ने हेलसिंकी विश्वविद्यालय में खुले कन्फ्यूशियस संस्थान को बंद कर दिया। इस समय सिर्फ डेनमार्क में एक संस्थान है, जिसके बारे में कहा जा रहा है कि जल्दी ही वह भी बंद होगा।