एनकाउंटर में ‘विकास दुबे की मौत’ से जुड़े ‘रहस्य भी हुए दफन’

Saturday, Jul 11, 2020 - 01:43 AM (IST)

2-3 जुलाई की मध्य रात्रि को कानपुर के बिकरू गांव में कुख्यात गैंगस्टर विकास दुबे को पकडऩे गई पुलिस पार्टी पर विकास दुबे और उसके गुर्गों के हमले में 8 पुलिस कर्मियों के बलिदान के बाद से ही फरार विकास दुबे के राजनीतिज्ञों और पुलिस विभाग में संपर्कों तथा उनसे प्राप्त संरक्षण की चर्चा शुरू हो गई थी। अनेक राज्यों की पुलिस के उसकी तलाश में जुटी होने और अलर्ट के बावजूद विकास द्वारा फरीदाबाद से उज्जैन तक की 800 किलोमीटर की सुरक्षित यात्रा पर भी सवाल उठाए गए कि कड़ी निगरानी होने के बावजूद वह उज्जैन तक सुरक्षित कैसे पहुंच गया? यही नहीं 9 जुलाई को उज्जैन के महाकाल मंदिर में उसकी गिरफ्तारी पर भी रहस्य का पर्दा पड़ा हुआ है कि यह गिरफ्तारी थी या आत्मसमर्पण! जहां तक विकास दुबे के राजनीतिक संपर्कों का संबंध है, बिकरू कांड के बाद उसके कुछ चित्र और वीडियो भी वायरल हुए जिनमें वह विभिन्न दलों के नेताओं के साथ नजर आ रहा था। 

विकास की मां सरला दुबे के अनुसार वह सपा से जुड़ा हुआ था परंतु सपा ने इसका खंडन किया है। इसी प्रकार 2017 के एक वीडियो में वह यह कहता हुआ सुनाई दे रहा था कि भाजपा के दो विधायकों ने अतीत में उसकी सहायता की थी। विकास ने किसी समय यह भी कहा बताते हैं कि बसपा सुप्रीमो मायावती उसे 500 लोगों में भी नाम लेकर बुलाती हैं तथा उसके दोस्तों को टिकट देती हैं। विकास ने कथित रूप से यह भी कहा था कि ‘‘भाजपा सहित कई पाॢटयां मुझे बुला रही हैं लेकिन मैं बहन जी को नहीं छोड़ूंगा।’’ 

बहरहाल, 9 जुलाई को उज्जैन में गिरफ्तारी के बाद विकास दुबे से पुलिस ट्रेनिंग सैंटर में 2 घंटे से अधिक समय तक पूछताछ की गई और उसके बाद मध्य प्रदेश पुलिस ने उसे उत्तर प्रदेश की स्पैशल टास्क फोर्स (एस.टी.एफ.) को सौंप दिया। पुलिस के अनुसार जब 10 जुलाई को उत्तर प्रदेश की एस.टी.एफ. गाड़ी में उसे कानपुर ला रही थी, तभी कानपुर के निकट ही एस.टी.एफ. की गाड़ी पलट गई जिसके बाद विकास दुबे ने पुलिस कर्मियों से पिस्तौल छीन कर भागने की कोशिश की तो पुलिस ने आत्मरक्षा में गोली चला दी जिसके परिणामस्वरूप वह मारा गया परंतु उसकी इस तरह मौत पर प्रश्र उठाए जा रहे हैं : 

* जिस विकास दुबे को उज्जैन में निहत्थे गार्ड ने पकड़ा था, वह उत्तर प्रदेश की हथियारबंद पुलिस से पिस्तौल छीन कर कैसे भागा?
* यह भी कहा जा रहा है कि विकास दुबे को पहले टाटा सफारी में बिठाया गया था परंतु जो गाड़ी पलटी वह तो दूसरी थी। पुलिस ने इसका खंडन किया है परंतु प्रत्यक्षदर्शियों का यह भी कहना है कि उन्होंने कोई कार पलटते हुए नहीं देखी, न ही वहां कार पलटने के निशान थे और न ही कार को कोई क्षति पहुंची थी। 

* उज्जैन से एस.टी.एफ. टीम के पीछे चल रही मीडिया की गाड़ियों को घटनास्थल से कई किलोमीटर पीछे ही पुलिस ने क्यों रोक दिया?
* उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा है कि ‘‘कार नहीं पलटी, राज खुलने से सरकार पलटने से बचाई गई है।’’ 
* प्रियंका गांधी ने पूछा है कि ‘‘अपराधी का तो अंत हो गया, अपराध और उसको संरक्षण देने वाले लोगों का क्या?’’
* शिव सेना की प्रियंका चतुर्वेदी के अनुसार, ‘‘न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी।’’ 

* फिल्म गीतकार स्वानंद किरकिरे ने भी इस घटना पर ट्वीट किया, ‘‘कोई लेखक ऐसा सीन लिख दे तो बोलेंगे कि बड़ा फिल्मी है।’’
मध्य प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने तमाम आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहा है कि ‘‘जब विकास दुबे को जिंदा पकड़ा गया तो बोले जिंदा क्यों पकड़ा गया और मार दिया गया तो बोल रहे हैं कि क्यों मार दिया गया।’’
* भाजपा सांसद साक्षी महाराज के अनुसार, ‘‘हमला करेगा तो क्या पुलिस उसकी आरती उतारती। पुलिस ने मार दिया तो सवाल हो रहे हैं।’’
* झांसी के शहीद सिपाही सुल्तान सिंह वर्मा के पिता हरप्रसाद ने विकास दुबे के मारे जाने पर खुशी जताते हुए कहा,‘‘एस.टी.एफ. ने ऐसे बड़े अपराधी को मार कर बहुत अच्छा काम किया है। पुलिस इसी तरह अपराधियों का एनकाऊंटर करती रहे। गद्दारों को जिंदा रहने का हक नहीं है।’’ 
* बसपा सुप्रीमो मायावती ने मांग की है कि ‘‘विकास दुबे को मध्य प्रदेश से कानपुर लाते समय पुलिस की गाड़ी के पलटने और उसके भागने पर उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा उसे मार गिराने आदि के समस्त घटनाक्रम की सुप्रीमकोर्ट की निगरानी में निष्पक्ष जांच होनी चाहिए।’’ 

बताया जाता है कि विकास की दहशत का आलम यह था कि किसी भी चुनाव में वह जिस पार्टी के उम्मीदवार को समर्थन देता था पूरे गांव वाले उसे ही वोट देते। कुल मिलाकर बेशक उत्तर प्रदेश को विकास दुबे के अंत के साथ ही एक दुर्दांत और क्रूर अपराधी से मुक्ति मिल गई है परंतु उसकी गिरफ्तारी और एनकाऊंटर में हुई मौत को लेकर बनी भ्रम की स्थिति को दूर करना भी आवश्यक है। इतना तो तय है कि विकास की मौत के साथ ही वे रहस्य भी दफन हो गए जिनके उजागर होने से प्रदेश की राजनीति और पुलिस विभाग में तूफान मच सकता था परंतु उसके जो साथी जिंदा बच गए हैं, उनसे कठोरता पूर्वक पूछताछ करके पता लगाना चाहिए कि विकास और उसके गिरोह को किन-किन राजनीतिज्ञों और पुलिस विभाग में मौजूद मुखबिरों का संरक्षण और सहयोग प्राप्त था।—विजय कुमार 

Advertising