दिल्ली चुनाव के नतीजों पर मेरा नजरिया
punjabkesari.in Friday, Feb 14, 2025 - 06:26 AM (IST)
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हाल ही में संपन्न दिल्ली विधानसभा चुनाव के 2 नतीजे स्पष्ट हैं। पहला निष्कर्ष यह है कि नरेंद्र मोदी हमारे भारत में एक महापुरुष के रूप में राजनीतिक क्षेत्र में आगे बढ़ रहे हैं। उनकी राजनीति का ब्रांड और मतदाताओं पर उनकी पकड़ अब भी बेजोड़ है। दूसरा निष्कर्ष यह है कि राहुल गांधी मोदी के मुकाबले कहीं नहीं टिकते। उन्हें ‘इंडिया’ ब्लॉक के नेतृत्व की आकांक्षा छोड़ देनी चाहिए। अगर उनकी पार्टी ने दिल्ली में प्रमुख विपक्ष ‘आप’ का समर्थन किया होता तो भाजपा दूसरे नंबर पर होती और सभी सर्वेक्षणों में निॢववाद नेता नहीं होती।
कांग्रेस को अपने नेतृत्व का लोकतंत्रीकरण करना चाहिए। उसे पूरी तरह से नेहरू-गांधी परिवार पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। देश में ऐसे कई लोग हैं जो परिवार को मानते हैं लेकिन मोदी ने लगातार सुनियोजित मौखिक हमलों के जरिए उस आधार को काफी हद तक कम कर दिया है।
राहुल एक अच्छे पसंद करने योग्य इंसान हैं लेकिन एक अच्छे राजनीतिक प्राणी नहीं हैं। वह अक्सर गलत भाषा का इस्तेमाल करते हैं। इस तरह वे भाजपा की अच्छी तरह से तैयार की गई प्रचार मशीन के हाथों में खेल रहे हैं। राहुल ने चुनाव से पहले मतदाताओं की मुख्य चिंताओं को चुना था जिस पर वे जोर दे रहे थे लेकिन उनकी बयानबाजी मोदी की तरह कहीं भी मजबूत और तीखी नहीं है। यह श्रोताओं पर बहुत ही कम प्रभाव डालता है। मैं उनकी वाकपटुता की कमी के लिए उन्हें दोषी नहीं ठहराता। यह ईश्वर द्वारा दिया गया उपहार है। मोदी के पास यह है, दुर्भाग्य से राहुल के पास नहीं है। देश की राजधानी में ‘आप’ की जगह लेने वाली डबल इंजन वाली सरकार से दिल्ली के स्थायी निवासियों को शुरू में लाभ होगा। पार्टी विद अ डिफरैंस ने ‘आप’ सरकार को अप्रासंगिक बना दिया था। इसने एक उप-राज्यपाल नियुक्त किया था जिसका प्राथमिक कार्य केजरीवाल और उनके साथियों द्वारा दिल्ली के नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने की किसी भी योजना को विफल करना था। एल.जी. केजरीवाल को नकारात्मक रूप में चित्रित करने के अपने मिशन में सफल रहे।
भाजपा ने संघ के हर राज्य में डबल इंजन वाली सरकार बनाने की रणनीति बनाई है। अपनी हिंदुत्व विचारधारा को मजबूत करने के लिए उसे केंद्रीकृत सरकार की जरूरत है जिसमें राज्यों में भी केंद्र सरकार ही फैसले ले। अगर वह किसी राज्य में चुनाव नहीं जीत पाती है तो वह सबसे पहले विपक्षी विधायकों की संख्या में अंतर होने पर उन्हें खरीदने की कोशिश करती है। उसने गोवा में 2 बार और कर्नाटक में एक बार बड़े पैमाने पर ऐसा किया। दिल्ली के लोगों को एहसास हो गया होगा कि अगर डबल इंजन वाली सरकार होती तो उनका जीवन ज्यादा सुखद होता। इसके अलावा भ्रष्टाचार विरोधी मंच पर चुने गए अरविंद केजरीवाल खुलकर लालची हो गए थे। उन्हें इसका एहसास तब हुआ जब उन्हें बताया गया कि उन्होंने अपने बाथरूम में जकूजी लगवा लिया है, जो कि लोगों के हिसाब से उनकी सादगी भरी जिंदगी से बिल्कुल अलग है। केवल दिल्ली के लोग ही अरविंद से निराश नहीं हैं। उनके पुराने गुरु अन्ना हजारे, जिन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व किया था और 2011 में देश-विदेश में सुर्खियां बटोरीं, ने भी भ्रष्टाचार के खिलाफ एक ‘गद्दार’ के पतन पर अपनी खुशी व्यक्त की। हजारे को उम्मीद थी कि अरविंद भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन को जीवित रखने के लिए उनके जैसे कार्यकत्र्ता बनेंगे। लेकिन अरविंद के कुछ और ही विचार थे।
राजनीति के क्षेत्र में निश्चित रूप से कुछ भी भविष्यवाणी नहीं की जा सकती। अरविंद केजरीवाल भविष्य में कभी भी वापसी कर सकते हैं। इस समय वे अपने घावों को सहला रहे होंगे। उन्हें अपने भाग्य और उन कारकों पर विचार करने की सलाह दी जाएगी जो उनके खिलाफ थे। अधिक धैर्य और विनम्रता की आवश्यकता होने पर भी उनकी महत्वाकांक्षा ने उन्हें बेकाबू कर दिया।उनके खिलाफ एक आरोप है जो मुझे विश्वसनीय नहीं लगा। यह आरोप है कि उन्होंने कुख्यात शराब घोटाले में धन अर्जित किया है। मुझे कोई संदेह नहीं है कि ‘घोटाला’ हुआ था लेकिन मेरी आंतरिक भावना यह है कि ‘आप’ को काम करने के लिए पैसे की आवश्यकता थी। सभी राजनीतिक दलों को इसकी आवश्यकता होती है। यदि भाजपा यह दिखावा करती है कि उसे इसकी आवश्यकता नहीं है तो बहुत से लोग उसकी बात पर विश्वास नहीं करेंगे।
यहां तक कि मेरे पूर्वजों के गृह राज्य गोवा में भी, जहां भ्रष्टाचार कभी एक कारक नहीं था, अब बुराई चरम पर पहुंच गई है! भाजपा के मुख्यमंत्री मनोहर पार्रिकर ने सत्ता में रहते हुए भ्रष्टाचार पर लगाम लगाई थी। अब शायद कोई नियंत्रण नहीं है क्योंकि चुनावी बांड के माध्यम से गुप्त फंडिंग को सर्वोच्च न्यायालय ने अस्वीकृत कर दिया है।
केजरीवाल सरकार ने दिल्ली में अपनी पारी सकारात्मक तरीके से शुरू की। इसने किसी भी निर्वाचित सरकार के 2 सबसे महत्वपूर्ण कामों, शिक्षा और स्वास्थ्य पर ध्यान देने के साथ शुरूआत की। न तो केंद्र या राज्यों में सत्ता में रही कांग्रेस सरकारों ने और न ही राज्यों में शासन करने वाली अन्य गैर-कांग्रेसी सरकारों ने, जैसे बंगाल और केरल में वामपंथी सरकारों ने ऐसा करने के बारे में सोचा था। अगर भाजपा कहती है कि वह देशभक्तों की पार्टी है तो उसे स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में ‘आप’ द्वारा शुरू की गई व्यवस्था को खत्म नहीं करना चाहिए। भले ही यह विपक्षी दल की पहल हो लेकिन यह जनहितैषी पहल है और इसे संस्थागत रूप दिया जाना चाहिए।-जूलियो रिबैरो(पूर्व डी.जी.पी. पंजाब व पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी)