दिल्ली के सी.एम. चेहरे से देश में भी समीकरण साधेगी भाजपा
punjabkesari.in Thursday, Feb 13, 2025 - 05:50 AM (IST)
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मतदाताओं ने तो पिछले सप्ताह ही भाजपा के पक्ष में जनादेश दे दिया था, लेकिन नए मुख्यमंत्री के लिए दिल्ली को अगले सप्ताह तक इंतजार करना पड़ सकता है। 8 फरवरी को आए चुनाव परिणामों में भाजपा को 70 सदस्यों वाली दिल्ली विधानसभा में 48 सीटों के साथ जबर्दस्त बहुमत मिला है। फिर भी नया मुख्यमंत्री चुनने में समय लग रहा है तो सबसे बड़ा कारण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विदेश यात्रा पर होना है। चुनाव से पहले भाजपा ने किसी को ‘सी.एम.’ फेस घोषित नहीं किया था। इसलिए मुख्यमंत्री पद के दावेदारों की सूची लंबी है। सबके पक्ष में अपने-अपने तर्क हैं, लेकिन लाटरी उसी की खुलेगी, जिस पर प्रधानमंत्री मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ-साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भी सहमति होगी। लगभग 27 साल बाद दिल्ली की सत्ता में लौट रही भाजपा इस जीत से देशव्यापी संदेश देना चाहती है। इसलिए मुख्यमंत्री के चयन से भी भविष्य के चुनावी समीकरण साधने की कोशिश की जाएगी। कुछ महीने के लिए दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं आतिशी को अपवाद मान लें तो 1998 से नई दिल्ली विधानसभा सीट से जीतने वाला विधायक ही मुख्यमंत्री बनता रहा है, पर प्रवेश वर्मा के पक्ष में इसके अलावा भी कुछ तर्क हैं।
दिल्ली में भाजपा के मुख्यमंत्री रहे साहिब सिंह वर्मा के बेटे प्रवेश लोकसभा सांसद भी रह चुके हैं। पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव में उन्हें टिकट न देकर इसी महीने हुए विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल के विरुद्ध ‘ट्रंप कार्ड’ की तरह इस्तेमाल किया गया। जिन केजरीवाल का करिश्मा ‘आप’ के लिए पंजाब से गुजरात और गोवा तक कारगर रहा, उन्हें उनकी परंपरागत नई दिल्ली विधानसभा सीट से ही हराने में प्रवेश वर्मा कामयाब भी रहे। बेशक प्रवेश वर्मा की जीत का जितना अंतर रहा, उससे ज्यादा वोट पूर्व कांग्रेसी मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित पाने में सफल रहे। प्रवेश के पक्ष में तर्क यह भी है कि वह जाट समुदाय से हैं, जो किसान आंदोलन समेत कुछ मुद्दों पर भाजपा से नाराज माना जा रहा है। प्रवेश वर्मा को दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाने से भाजपा को हरियाणा, राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भी चुनावी लाभ मिल सकता है, जहां जाट मतदाता अच्छी-खासी संख्या में हैं। चुनावी समीकरणों की दृष्टि से ही मनजिंदर सिंह सिरसा का नाम भी दावेदारों में है।
दिल्ली में तो सिख मतदाता अच्छी संख्या में हैं ही, सिरसा को मुख्यमंत्री बना कर भाजपा पंजाब में भी चुनावी लाभ उठा सकती है। कांग्रेस से आए पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह लोकसभा चुनाव में भाजपा के लिए अपेक्षित सिख समर्थन नहीं जुटा पाए। उनकी पत्नी परनीत कौर तक परंपरागत सीट पटियाला से हार गईं। इसीलिए कांग्रेस से आए रवनीत सिंह बिट्टू को, लोकसभा चुनाव हार जाने के बावजूद केंद्र में राज्य मंत्री और फिर बाद में राज्यसभा सांसद बनाना पड़ा। इस बार दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा के तीनों सिख उम्मीदवार जीत गए। राजौरी गार्डन विधानसभा सीट से जीते मनजिंदर सिंह सिरसा को दिल्ली का मुख्यमंत्री बना कर भाजपा पंजाब समेत देश भर में सिख समुदाय को सकारात्मक संदेश दे सकती है। फिलहाल पंजाब में ‘आप’ की प्रचंड बहुमत वाली सरकार है और कांग्रेस मुख्य विपक्षी दल है।
117 सदस्यों वाली पंजाब विधानसभा में भाजपा के पास मात्र 2 विधायक हैं। चुनावी समीकरण के लिहाज से ही मनोज तिवारी भी दौड़ में हैं। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष भी रह चुके भोजपुरी कलाकार मनोज तिवारी दिल्ली के एकमात्र सांसद रहे, जिनका टिकट पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव में नहीं काटा गया। अगर मनोज तिवारी को दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाया गया तो उन्हें 6 महीने के अंदर ही विधानसभा चुनाव लडऩा पड़ेगा। उनका नाम दावेदारों में इसलिए शामिल माना जा रहा है कि दिल्ली में पूर्वांचली बड़ा वोट बैंक है तथा उनसे उत्तर प्रदेश और बिहार में चुनावी लाभ मिल सकता है। बिहार में तो इसी साल के अंत में विधानसभा चुनाव हैं। फिलहाल बिहार विधानसभा में 78 सीटों के साथ भाजपा दूसरा बड़ा दल है और 43 सीटों वाले जनता दल यूनाइटेड के नेता नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाए रखने को मजबूर है। भाजपा बिहार में अकेले दम 100 सीटों का आंकड़ा पार करना चाहती है, ताकि अपना मुख्यमंत्री बनाने की जुगाड़ बिठा सके। हालांकि दुष्यंत गौतम करोल बाग से विधानसभा चुनाव हार गए, लेकिन फिर भी वह मुख्यमंत्री की दौड़ में माने जा रहे हैं। मोदी और शाह के भरोसेमंद माने जाने वाले दुष्यंत गौतम भाजपा का दलित चेहरा हैं। इसीलिए उन्हें एक बार हरियाणा से राज्यसभा सदस्य भी बनाया जा चुका है।इसके अलावा दिल्ली में नेता प्रतिपक्ष रह चुके विजेंद्र गुप्ता, शालीमार बाग से विधायक रेखा गुप्ता, शिखा राय, पूर्व मुख्यमंत्री मदन लाल खुराना के विधायक बेटे हरीश खुराना, दिल्ली की एक और भाजपाई मुख्यमंत्री रहीं सुषमा स्वराज की सांसद बेटी बांसुरी स्वराज तथा सतीश उपाध्याय भी मुख्यमंत्री पद के दावेदारों में शामिल हैं।
पंजाबी और वैश्य समुदाय दिल्ली में भाजपा का परंपरागत वोट बैंक रहा है। वैसे महाराष्ट्र को अपवाद मान लें तो मोदी-शाह की जोड़ी मुख्यमंत्री चयन से चौंकाती रही है। ऐसे में उन स्मृति ईरानी का दांव भी लग सकता है, जिनका नाम दिल्ली में चुनाव कार्यक्रम की घोषणा से पहले मुख्यमंत्री चेहरे के लिए जोर-शोर से चला था। अगर भाजपा स्मृति ईरानी पर दांव लगा कर महिलाओं को गोलंबद करना चाहती है तो वह दिल्ली की चौथी महिला मुख्यमंत्री होंगी।-राज कुमार सिंह