मोहम्मद बिन सलमान भी क्या हैनरी-अष्टम जैसा बदलाव ला पाएंगे

punjabkesari.in Friday, Nov 24, 2017 - 02:10 AM (IST)

गत कुछ दिनों से सऊदी अरब में हो रहे चौंकाने वाले घटनाक्रम वैश्विक विमर्श का हिस्सा बन रहे हैं। सऊदी सल्तनत के घोषित उत्तराधिकारी मोहम्मद बिन सलमान के बढ़ते राजनीतिक हस्तक्षेप के बीच भ्रष्टाचार के आरोप में अल-वलीद बिन तलाल सहित दर्जनों शहजादों, मंत्रियों और शीर्ष अधिकारियों को गिरफ्तार किया गया है। 

कथित रूप से भ्रष्टाचार के मामले में एक साथ 200 से अधिक लोगों की गिरफ्तारियों से पूर्व इस इस्लामी राष्ट्र के युवराज मोहम्मद बिन सलमान (एम.बी.एस.) ने कई दूसरी घोषणाएं भी कीं, जिससे दुनिया का ‘उम्माह’ समाज (वैश्विक मुस्लिम समुदाय) असमंजस की स्थिति में है। नि:संदेह, जो निर्णय सऊदी अरब के शाही परिवार ने लिए हैं-उनका न केवल उनके देश, अपितु शेष विश्व पर गहरा प्रभाव पड़ेगा। उसके 3 प्रमुख कारण हैं। पहला-सऊदी अरब  में पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब का जन्म हुआ और कुरान भी इसी भूखंड पर अवतरित हुई। दूसरा-इस्लाम समुदाय की 2 बड़ी मस्जिदें मक्का-मदीना यहीं स्थित हैं, जिनके संरक्षक सऊदी बादशाह हैं। तीसरा-विश्व के मुस्लिम समाज पर अरब संस्कृति का गहरा प्रभाव है। 

सऊदी अरब के युवराज मोहम्मद बिन सलमान ने देश में ‘उदार इस्लाम’ के पालन का संकल्प जताया है। 24 अक्तूबर को रियाद में एफ.आई.आई. नामक एक बड़ा आर्थिक सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसका मूल उद्देश्य तेल से होने वाली आय पर सऊदी अरब की निर्भरता को कम करना रहा। सलमान ने ‘विजन-2030’ पेश करते हुए कहा, ‘‘हम उस तरफ लौट रहे हैं, जहां हम पहले थे अर्थात उदार इस्लाम वाला देश जोकि सभी धर्मों और दुनिया के लिए खुला हो। हम अपनी जिंदगी के आगामी 30 वर्ष विनाशकारी विचारों के साथ गुजारना नहीं चाहते। हम जल्द अतिवाद को खत्म करेंगे।’’ इसी एजैंडे के अंतर्गत  सऊदी महिलाओं को स्टेडियम जाने और वाहन चलाने की अनुमति देने जैसे निर्णय किए गए हैं। इसी शृंखला में योग को गैर-इस्लामी बताने वाले सऊदी अरब ने इसे अपने देश में खेल का दर्जा दिया है, साथ ही योग सिखाने का फैसला भी किया है। 

17 अक्तूबर को शाही परिवार ने इस्लामी विद्वानों के एक अंतर्राष्ट्रीय निकाय का गठन किया है, जो हदीसों की समीक्षा कर उन कट्टरवादी और ‘फर्जी बातों’ के अतिरिक्त ऐसी सामग्री को हटाएगा, जिसका उपयोग अपराधी, हत्यारे और आतंकवादी अपने कृत्यों को उचित ठहराने के लिए करते हैं। एक साक्षात्कार में एम.बी.एस. ने शिया बहुल ईरान को सऊदी अरब सहित इस्लामी दुनिया में फैली मजहबी असहिष्णुता के लिए दोषी ठहराया है। उनके अनुसार, पिछले तीन दशकों में जो कुछ हुआ, वह सऊदी अरब नहीं है और न ही मध्य पूर्व है। 1979 में ईरान की इस्लामी क्रांति के बाद लोगों ने इसे अपने देशों में दोहराना चाहा, जिसमें सऊदी अरब भी शामिल है लेकिन अब इससे छुटकारा पाने का समय आ गया है। युवराज सलमान का वक्तव्य आधे सच और झूठ के कॉकटेल से कम नहीं है। उनके अनुसार 1979 के ऐतिहासिक घटनाक्रम के बाद सऊदी अरब उदारवादी से कट्टरपंथी बना। क्या 1979 से पहले यह संपन्न इस्लामी देश अपने दृष्टिकोण में उदार था? 

वर्ष 1977-79 में ईरान की इस्लामिक क्रांति का संदर्भ उस घटनाक्रम से है, ईरान के अंतिम शाह मोहम्मद रजा पहलवी को अपदस्थ कर आयतुल्लाह रुहोल्लाह खोमैनी ने इस्लामी गणतंत्र की स्थापना की थी। अमरीका के निकट होने के कारण पहलवी को निरंतर कट्टर मौलवियों के विरोध का सामना करना पड़ता था। इस स्थिति से निपटने के लिए पहलवी ने इस्लाम की भूमिका को कम करने हेतु ईरानी सभ्यता को प्राथमिकता दी और अपने देश को आधुनिक बनाने की दिशा में निर्णय लेना शुरू कर दिया। इस्लामी कट्टरपंथियों सहित खोमैनी भी पहलवी के सुधारों के विरुद्ध मुखर थे। मजहबी असंतोष, भ्रष्टाचार, दमन और  ङ्क्षहसा की पृष्ठभूमि में खोमैनी ने अंतरिम सरकार का गठन कर दिया। 

सऊदी अरब में संकुचित वहाबी विचारधारा की उत्पत्ति 13वीं शताब्दी में जन्मे इब्न-तैमिया नामक इस्लामी आलिम के साथ हुई। जब मंगोल आक्रांता अरब पहुंचे, तब उन्होंने इस्लाम स्वीकार कर लिया किन्तु अपनी मूल जड़ों और परंपराओं को छोड़ नहीं पाए। तैमिया ने इसे इस्लाम में मिलावट कहकर इसके विरुद्ध ङ्क्षहसक रुख अपनाया। उसकी विचारधारा को 18वीं सदी में मोहम्मद इब्न-अब्द-अल-वहाब (1703-1792) ने अपनाया। उसी के नाम पर वहाबीवाद विचारधारा का जन्म हुआ। मोहम्मद वहाब का सऊदी के संस्थापक मोहम्मद बिन सऊद के साथ समझौता हुआ। 

‘‘ए हिस्ट्री ऑफ सऊदी अरब’’ के अनुसार, अपनी पहली भेंट में सऊदी शासक मोहम्मद बिन सऊद ने वहाब से कहा, ‘‘यह नखलिस्तान (मरुद्यान) आपका है, अपने शत्रुओं से मत डरो। अल्लाह की कसम, यदि सारे नज्द (सऊदी अरब में रहने वाले लोग) भी आपको बाहर निकालना चाहें तो हम ऐसा नहीं होने देंगे।’’ वहाब का उत्तर था, ‘‘आप बुद्धिमान व्यक्ति हैं। मैं चाहता हूं कि आप मुझसे वायदा करें कि आप काफिरों के खिलाफ जेहाद करेंगे, बदले में आप मुस्लिम समुदाय के मुखिया होंगे और मैं मजहबी मामले देखूंगा। वर्ष 1744 में यही समझौता सत्ता बंटवारे की व्यवस्था बना, जो आज तक सऊदी अरब  के वंशवादी शासनतंत्र और उम्माह का आधार बना हुआ है। 

1960 के दशक से सऊदी अरब ने कट्टरपंथी वहाबी इस्लाम के प्रसार अभियान के अंतर्गत भारतीय उपमहाद्वीप सहित शेष विश्व के सैंकड़ों मदरसों और मस्जिदों को 100 अरब डॉलर से अधिक की आॢथक मदद भेजी है। यह स्थापित सत्य है कि विश्वभर के अधिकतर मदरसों में छात्रों की इस्लामी मान्यताओं को सर्वश्रेष्ठ और गैर-मुस्लिमों को काफिर-कुफ्र बताया जाता है, जिनके पास केवल दो विकल्प होते हैं-या तो वे इस्लाम को अपनाएं या फिर मौत को स्वीकार करें। जनवरी 2016 को शीर्ष अमरीकी सीनेटर क्रिस मर्फी ने बताया था कि पाकिस्तान में 24 हजार मदरसों को आर्थिक सहायता सीधे सऊदी अरब से पहुंचती है। 

दूसरे विश्वयुद्ध के बाद दुनिया में साम्यवाद के आतंक को खत्म करने के लिए अमरीका ने हथियारों, तो सऊदी अरब ने अकूत वित्त-पोषण से इस्लामी जेहाद को पोषित किया। 1979-89 के सोवियत-अफगान युद्ध को इस्लाम पर हमला बताकर और अनीश्वरवादी सोवियत संघ की सेना को ‘काफिर’ घोषित कर मुजाहिदीनों को युद्ध के लिए प्रेरित किया। इस घटनाक्रम ने आज पूरे क्षेत्र को जेहाद की फैक्टरी में परिवर्तित कर दिया है, जहां से 9/11 और 26/11 सहित कई इस्लामी आतंकवादी घटनाओं की पटकथा लिखी जा रही है। भारत में भी मुस्लिम समुदाय इसी वहाबी इस्लाम की जकड़ में फंसते जा रहे हैं। सुरक्षा एजैंसियों की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2011-13 में 25,000 वहाबी उपदेशक भारत पहुंचे और वहाबीवाद के प्रचार के लिए लगभग 1,700 करोड़ रुपए खर्च भी किए। स्थानीय भाषाओं में छपा वहाबी साहित्य मुफ्त बांटा। आज सार्वजनिक स्थानों पर विशेषकर  केरल सहित दक्षिण भारत में अरबी वेशभूषा के प्रति झुकाव अधिक देखा जा रहा है। 

सऊदी सल्तनत के उत्तराधिकारी मोहम्मद बिन सलमान के प्रयास 15वीं-16वीं शताब्दी में यूरोप के उस धर्म सुधार आंदोलन का स्मरण कराते  हैं, जिसमें रोमन कैथोलिक चर्च द्वारा किए गए अत्याचारों के खिलाफ  इंगलैंड में हैनरी अष्टम के नेतृत्व में ईसाइयों ने विद्रोह का बिगुल फूंका था। कैथोलिक चर्च द्वारा मजहब के नाम पर हजारों विरोधियों को ‘‘विधर्मी’’ और ‘‘चुड़ैल’’ घोषित कर उनका बर्बर शोषण किया गया और कई लोगों को जीवित तक जला दिया गया। आज इस्लाम के नाम पर जो कुछ आई.एस. के आतंकवादी कर रहे हैं, मध्य युग में कैथोलिक चर्च का इतिहास उससे भी अधिक क्रूर था। 

हैनरी अष्टम के नेतृत्व में हुए विद्रोह ने इंगलैंड का रोमन कैथोलिक चर्च से पृथक होने का मार्ग प्रशस्त किया। साथ ही कालांतर में इसी आंदोलन ने ईसाई समुदाय पर वेटिकन के प्रभाव को भी कम किया है। क्या मोहम्मद बिन सलमान अपने देश और इस्लाम में इस प्रकार का दीर्घकालीन और आमूल-चूल परिवर्तन लाने में सफल होंगे? इसके उत्तर की प्रतीक्षा आज पूरा विश्व सांस रोककर कर रहा है।-बलबीर पुंज
 


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