मोदी सरकार जिम्मेदारी अगली से अगली सरकार पर डालना चाहती है
punjabkesari.in Sunday, Sep 24, 2023 - 04:03 AM (IST)

भारत के संवैधानिक और संसदीय इतिहास में 3 तारीखें महत्वपूर्ण तारीखों में से एक हैं।
12 सितम्बर 1996 : तत्कालीन प्रधानमंत्री देवेगौड़ा की सरकार ने संसद में 21वां संविधान संशोधन विधेयक पेश किया। इस विधेयक में लोकसभा और राज्य विधानसभा में एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित करने का प्रावधान किया गया मगर इससे आगे कोई प्रगति नहीं हुई।
9 मार्च 2010 : तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार ने राज्यसभा में संविधान (108वां संशोधन) विधेयक पेश किया। यह 1996 के विधेयक के समान ही था और 186:1 के मत से पारित किया गया। विधेयक लोकसभा में प्रेषित किया गया लेकिन लंबित रहा। 15वीं लोकसभा के भंग होने के साथ ही यह विधेयक भी समाप्त हो गया।
18 सितम्बर 2023 : वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने लोकसभा में संविधान (128वां संशोधन) विधेयक पेश किया। महिला आरक्षण के प्रावधान के लिए लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में एक तिहाई सीटें पहले के विधेयकों के समान हैं लेकिन इसमें 3 चेतावनियां हैं।
चौंकाने वाली चेतावनी : एक बार जब विधेयक संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित हो जाता है और नए अनुच्छेद 334ए के तहत राष्ट्रपति द्वारा सहमति दी जाती है तो यह लागू हो जाएगा। पहली जनगणना के प्रासंगिक आंकड़ों के बाद इस उद्देश्य के लिए परिसीमन की कवायद शुरू होने के बाद संविधान (128वां संशोधन) अधिनियम के प्रारंभ होने के बाद लिया गया। अधिनियम प्रकाशित किया गया। जनगणना 2021 में होने वाली थी, इसमें अनजाने में देरी की गई। जनगणना एक बड़ी व्यापक प्रक्रिया है और इसके परिणाम प्रकाशित होने में 2 साल लगेंगे। अगली जनगणना की तारीख अनिश्चित है।
संविधान के अनुच्छेद 82 के तीसरे प्रावधान द्वारा लोकसभा में प्रत्येक राज्य के लिए सीटों के पुन: आबंटन को 2026 तक रोक दिया गया था। ‘एक व्यक्ति-एक वोट’ के नियम के तहत दक्षिण और पश्चिम के राज्यों में सीटें घटेंगी और उत्तर के राज्यों में बढ़ेंगी। जिन राज्यों में सीटें खोने की संभावना है, उनका कहना है कि उन्हें बेहतर शिक्षा, बेहतर स्वास्थ्य सेवा और परिवारों के आकार को सीमित करने के लाभों के बारे में बेहतर संचार के माध्यम से अपनी जनसंख्या की वृद्धि दर को नियंत्रित करने के लिए दंडित किया जा रहा है।
हालांकि 2026 के बाद हुई पहली जनगणना के परिणाम के प्रकाशन पर रोक हटा दी जाएगी लेकिन इस अभ्यास में राजनीतिक बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है। पुन: आबंटन के बाद नए परिसीमन अधिनियम के तहत परिसीमन की कवायद शुरू होगी। 2002 में शुरू हुई आखिरी परिसीमन प्रक्रिया 6 वर्ष बाद 19 फरवरी 2008 को पूरी हुई। इसलिए यह क्रम 2026 के बाद ली गई पहली जनगणना है जिसमें प्रासंगिक आंकड़ों का प्रकाशन, लोकसभा में सीटों का पुन: आबंटन और एक नया परिसीमन अधिनियम है। निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन और अंत में आरक्षण का प्रत्येक चरण कब पूरा होगा इसकी तिथि अनिश्चित है। महिला आरक्षण विधेयक का क्रियान्वयन इन्हीं अनिश्चित घटनाओं पर निर्भर है। मुझे डर है कि समय 2029 से भी आगे निकल जाएगा।
बाधाएं : मोदी सरकार महिलाओं के लिए आरक्षण लागू करने की राह में अपनी योजना या अज्ञानता के कारण अनभिज्ञता नहीं जता सकती। ये बाधाएं 1996 और 2010 के विधेयकों में नहीं थीं। अगर महिलाएं सरकार पर जानबूझ कर ये बाधाएं डालने का आरोप लगाती हैं तो यह उचित होगा। माननीय प्रधानमंत्री ने 19 सितम्बर 2023 को 3 मौकों पर की गई अपनी टिप्पणियों में यह नहीं बताया कि उनकी सरकार ने इन बाधाओं को कैसे दूर करने का प्रस्ताव रखा है। हल्के ढंग से कहें तो पूर्व शर्तों पर सरकार की चुप्पी अशुभ है। यह स्पष्ट है कि मोदी सरकार जिम्मेदारी अगली सरकार या एक के बाद एक सरकार पर डालना चाहती है। यह महिलाओं को फलों की एक टोकरी देने लेकिन निकट भविष्य में उन्हें फल खाने से मना करने जैसा है।
मतदाता सूचियां पर्याप्त : महिलाओं के पास कई क्षेत्रों, संसद और राज्य विधानसभाओं में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है। समस्या का पता उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति से लगाया जा सकता है। कार्यबल के बीच श्रम भागीदारी दर (एल.पी.आर.) 45.2 प्रतिशत है। महिलाओं में यह निराशाजनक 20.6 प्रतिशत है। अधिकांश महिलाएं अपने घरों में काम करने के लिए बाध्य हैं और यह उन पर दबाव डालता है। किशोरियां और महिलाएं पर्याप्त पौष्टिक भोजन से वंचित हैं। निम्र सामाजिक स्थिति, निम्र व्यक्तिगत आय और गृह निर्माता की जिम्मेदारियों के संयोजन ने महिलाओं को उनके घरों तक सीमित कर दिया है और राजनीतिक क्षेत्र में उनकी भागीदारी को बाधित कर दिया है। नई जमीनें तोड़ते हुए राजीव गांधी और पी.वी. नरसिम्हा राव ने आरक्षण की बदौलत करीब 13,00,000 महिलाओं को पंचायत और नगर निकायों में निर्वाचित होने में सक्षम बनाया।
अगला तार्किक कदम लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में आरक्षण है। इस विचार के पहली बार सामने आने के बाद से महिलाओं ने 30 वर्षों से अधिक समय तक इंतजार किया और इसमें अब और देरी नहीं हुई है। जुमला एक हिंदी शब्द है जिसका अर्थ मोटे तौर पर एक पेचीदा कार्य या कथन होता है। 2014 और 2019 में चुनाव की पूर्व संध्या पर भाजपा ने कई जुमले उछाले। महिला आरक्षण विधेयक दूसरा जुमला है।-पी. चिदम्बरम