चीन में अल्पसंख्यक मुसलमानों और हांगकांग के लोगों पर अत्याचार

punjabkesari.in Friday, Jan 03, 2020 - 01:42 AM (IST)


धोखा देना चीनी शासकों के स्वभाव में शामिल है। भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू द्वारा चीन के साथ दोस्ती का हाथ बढ़ाने, हिन्दी-चीनी भाई-भाई का नारा देने तथा स्वयं सुरक्षा परिषद की सीट लेने से इंकार कर चीन को दिलवाने के बावजूद चीन ने 1962 में भारत पर हमला करके हमारे 65,000 वर्ग किलोमीटर भूभाग पर कब्जा कर लिया जो अभी भी उसके कब्जे में है और चीन का यह विश्वासघात ही पंडित नेहरू की मौत का कारण भी बना।

जहां तक चीन की दमनकारी नीतियों का संबंध है वहां लोगों के धार्मिक और लोकतांत्रिक अधिकारों का दमन लगातार जारी है। चीनी शासकों ने अल्पसंख्यक ‘उईगर’ मुसलमानों के पांच लाख बच्चों को उनके माता-पिता और धर्म से दूर करने के लिए बोॄडग स्कूलों में भेज दिया है तथा लगभग 10 लाख मुसलमानों को नजरबंदी शिविरों में बंद करके उनका उत्पीडऩ और मुसलमान महिलाओं का यौन शोषण किया जा रहा है।

चीन के विश्वासघात का नवीनतम शिकार बना है विश्व के अग्रणी शहरों में से एक हांगकांग, जिसे इंगलैंड ने 1997 में स्वायत्तता की शर्त के साथ चीन को सौंपा था तथा चीन ने अगले 50 वर्ष तक इसकी स्वतंत्रता तथा सामाजिक, कानूनी और राजनीतिक व्यवस्था बनाए रखने की गारंटी दी थी। इसीलिए हांगकांग में रहने वाले लोग खुद को चीन का हिस्सा नहीं मानते। वे खुलेआम सरकार की आलोचना तो पहले ही करते थे, पर अब चीन द्वारा लाए गए नए ‘प्रत्यर्पण बिल’ ने उनकी चिंताएं और भी बढ़ा दी हैं।

उनका कहना है कि यह बिल हांगकांग के लोगों को चीन की दलदली न्यायिक व्यवस्था में धकेल देगा जहां राजनीतिक विरोधियों पर राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा जैसे आरोप लगा कर उन्हें जेल में डाल दिया जाता है। इन्हीं खतरों को भांपते हुए इन संशोधनों को लेकर हांगकांग में चीन के विरुद्ध आंदोलन जारी है। इसकी शुरूआत तो 31 मार्च, 2019 को हुई थी जब हजारों लोगों ने इसके विरुद्ध हांगकांग में प्रदर्शन किया परंतु इसमें तेजी जून महीने में आई जब 6 जून को 3000 से अधिक वकीलों ने काले कपड़े पहन कर प्रोटैस्ट मार्च में भाग लिया और फिर 9 जून को 5 लाख से अधिक लोग चीन सरकार के नए कानून के विरुद्ध सड़कों पर उतरे। तब से अब तक वहां पुलिस द्वारा प्रदर्शनकारी लोकतंत्र समर्थकों के दमन का सिलसिला जारी है जिसमें पुलिस द्वारा छात्राओं से बलात्कार, लाठीचार्ज, आंसू गैस, फायरिंग आदि शामिल हैं।

युवाओं और छात्रों से शुरू हुए इस आंदोलन में अब बुजुर्ग भी शामिल हो गए हैं। अभी तक 40 प्रतिशत छात्रों सहित 6500 से अधिक लोगों की गिरफ्तारी तथा कुछ लोगों की मौत के बावजूद यह आंदोलन धीमा नहीं पड़ा है तथा इसके साथ नए मजदूर संगठन भी जुड़ गए हैं। इस बीच जहां 18 देशों के सांसदों और गण्यमान्य लोगों ने हांगकांग की प्रशासक कैरी लेम को पत्र लिख कर इस संकट को समाप्त करने के लिए कहा है वहीं नव वर्ष के पहले दिन 1 जनवरी, 2020 को भी हांगकांग में एक लाख से अधिक लोकतंत्र समर्थक प्रतिबंध के बावजूद चेहरे पर मास्क लगाकर सड़कों पर उतरे और 4 किलोमीटर लम्बा जलूस निकाला।

गत वर्ष 8 अक्तूबर को लाखों लोगों के प्रदर्शन और कुछ सप्ताह की शांति के बाद यह सबसे बड़ा प्रदर्शन था जिसे तितर-बितर करने के लिए पुलिस द्वारा आंसू गैस के गोले दागने, मिर्च स्पे्र करने और अन्य दमनकारी उपाय बरतने के बावजूद प्रदर्शनकारी डटे रहे। उन्होंने पुलिस पर पैट्रोल बम फैंके, एक बैंक में घुस कर तोड़-फोड़ की और रास्ते जाम कर दिए। चीन के राष्ट्रपति जिन पिंग द्वारा हांगकांग में शांति की अपील के बावजूद ये प्रदर्शन थम नहीं रहे हैं। हांगकांग वासियों में चीन के प्रति नफरत लगातार बढ़ रही है और वे ‘चीन के निवासियो हांगकांग छोड़ो’ नारे लगा रहे हैं।

चीन सरकार ने इन आंदोलनों को 1997 में इंगलैंड द्वारा हांगकांग को चीन को सौंपने के बाद से अब तक का सबसे बड़ा और निकृष्टïतम संकट करार दिया है। हालांकि इन प्रदर्शनों के कारण हांगकांग के लिए समय-समय पर अंतर्राष्ट्रीय उड़ानें रद्द होने से यहां के पर्यटन उद्योग को भारी क्षति पहुंच रही है परंतु चीनी शासक झुकने को तैयार नहीं।

इन प्रदर्शनों को कितना व्यापक जन समर्थन मिल रहा है यह इसी से स्पष्ट है कि प्रदर्शनकारियों की कानूनी सहायता और उनके द्वारा चलाए जा रहे आंदोलन से जुड़े खर्चों के लिए स्थापित किए गए फंड में 1 जनवरी को मात्र एक दिन में ही लगभग 2 करोड़ हांगकांग डालर चंदा इकट्ठा हो गया। कुल मिलाकर आज जहां चीनी शासक विश्व में लोकतंत्र की दुहाई दे रहे हैं तो दूसरी ओर अपने ही देश में धार्मिक अल्पसंख्यकों और लोकतंत्र के समर्थकों का दमन जारी रखे हुए हैं।—विजय कुमार


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