लोकतंत्र का आभूषण है मीडिया

punjabkesari.in Saturday, Jan 28, 2023 - 06:02 AM (IST)

भारत सरकार ने डिजिटल मीडिया नियमों में संशोधन का प्रस्ताव दिया है जो इसे तथ्य जांचने और एक संदिग्ध तथ्य जांच रिकार्ड को तय करने के लिए अधिक कानूनी शक्ति दे सकता है। इससे सरकार के पास यह कानूनी शक्ति आ सकती है जिसके तहत वह यह निर्णय ले सकती है कि इंटरनैट पर कौन-सी सामग्री रहे और ऑनलाइन भाषण की स्वतंत्रता के बारे में चिंता की जा सके। 

आई.टी. नियम 2021 को याद करते हुए भारत सरकार ने फरवरी 2021 में देश में इंटरनैट उपयोग पर सरकार की निगरानी बढ़ाने के लिए एक डिजिटल मीडिया नियम पेश किए थे। ये
नियम न्यूज आइटम्स, सोशल मीडिया और ओ.टी.टी. (ओवर द टॉप) प्लेटफाम्र्स पर लागू होते हैं। प्रावधानों के तहत कम्पनियों को आक्रामक, गलत या भ्रामक कुछ भी प्रकाशित नहीं करने के लिए नियमित रिमाइंडर भेजने होंगे। इसके अलावा कंपनियों को 36 घंटों के भीतर किसी खाते को ब्लॉक करने या किसी पोस्ट को निकालने के लिए अदालत या सरकारी निकाय के अनुरोध का पालन करना होगा। ऐसे अनुरोधों का आधार देश की सम्प्रभुता या सुरक्षा के हितों की रक्षा से संबंधित है। 

इस महीने की शुरूआत में (17 जनवरी, 2023) सरकार ने मसौदा संशोधन में एक और ‘टेक डाऊन’ श्रेणी का प्रस्ताव दिया यानी कोई भी जानकारी जिसे पत्र सूचना कार्यालय (पी.आई.बी.) द्वारा ‘नकली’ या ‘गलत’ के रूप में पहचाना गया है या केंद्र सरकार की कोई अन्य एजैंसी जिससे समाचार कहानी संबंधित है। 

इस मसौदा संशोधन के निहितार्थ क्या हैं? : फेसबुक, ट्विटर और यू-ट्यूब जैसे सोशल मीडिया प्लेटफाम्र्स को केंद्र सरकार से संबंधित सामग्री को हटाना होगा जिसे सरकार की तथ्य जांच करने वाली एजैंसियां फर्जी घोषित करती हैं। सरकार, एजैंसियों और निजी संस्थाओं से संबंधित सामग्री तथ्य जांच के अधीन नहीं होगी, न ही यह प्रावधान समाचार साइटों पर लागू होता है। अब सरकार की फैक्ट चैकिंग शाखा-पी.आई.बी. फैक्ट चैक यूनिट (एफ.सी.यू.) पर बात करते हैं। पी.आई.बी. ने नवम्बर 2019 में इस इकाई की स्थापना की थी। इंटरनैशनल फैक्ट चैकिंग नैटवर्क (आई.एफ. सी.एन.) के अनुसार चैकर्स  में गैर-पक्षपात और निष्पक्षता के प्रति प्रतिबद्धता होनी चाहिए। पी.आई.बी.एफ.सी.यू.,आई.एफ.सी.एन. मानदंडों को पूरा करने में विफल रहता है। प्रस्तावित संशोधन न केवल भाषण और अभिव्यक्ति के संवैधानिक अधिकार को बाधित करते हैं बल्कि इस बात पर भी स्पष्टता की कमी है कि नकली समाचार

या झूठी सूचना के रूप में क्या योग्य है। इसके अलावा पी.आई.बी., एफ.सी.यू. इस बारे में कोई जानकारी नहीं देता है कि संदिग्ध सूचनाओं पर शोध और मूल्यांकन करने के लिए वह क्या दृष्टिकोण अपनाता है। इन सबसे ऊपर हितों का स्पष्ट टकराव है। 

बी.बी.सी. डाक्यूमैंट्री ‘इंडिया : द मोदी क्वैश्चन’ का हालिया उदाहरण लें। मोदी सरकार ने आई.टी. नियम 2021 के तहत आपातकालीन शक्तियों का आह्वान किया है कि फिल्म को ‘प्रचार का टुकड़ा’ होने के बहाने यू-ट्यूब और ट्विटर पर वृत्तचित्र को ब्लाक करने  से, जो भारत की सम्प्रभुता और अखंडता को कमजोर करने वाला पाया गया था, विदेशों के साथ भारत के मैत्रीपूर्ण संबंधों के साथ-साथ देश के भीतर सार्वजनिक व्यवस्था पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। 

भारतीय मीडिया ने निश्चित रूप से लोकतंत्र के प्रहरी के रूप में काम किया है। इसने न्याय की विफलता के मामलों की सूचना दी है। इसने सामंतों और सरकारी अधिकारियों द्वारा कमजोर वर्गों पर किए गए गलत कामों को उजागर किया है। भारतीय मीडिया ने भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी के आरोपों में कुछ लोगों को बेनकाब किया है। मीडिया जानता है कि कैसे और कब अपनी स्वतंत्रता और लोगों के सूचना के अधिकार की रक्षा के लिए अधिकारियों पर झपटना है। मीडिया की विविधता और समृद्धि न केवल लोकतंत्र का आभूषण है बल्कि अस्तित्व के लिए आवश्यक तत्व भी है। हालांकि भारतीय मीडिया के पास अभी भी हमारे समाज की जड़ों को मजबूत करने और मानसिक बाधाओं और पिछले पूर्वाग्रहों को खत्म करने के लिए नई जमीन है। 

मीडिया रिपोर्टिंग एक जीवंत लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। स्वतंत्रता के बाद मीडिया के लिए एक मुक्त वातावरण प्राप्त करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं। पिछले दशक में राजनीतिक चुनौतियां अधिक महत्वपूर्ण और विविध हो गई हैं। यह प्रवृत्ति बताती है कि अपराध, भ्रष्टाचार और राजनीति जैसे विषयों पर मीडिया रिपोॄटग विशेष रूप से खोजी पत्रकारिता भ्रष्टाचार पर सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाने के एक महत्वपूर्ण स्रोत के रूप में खतरे में है। मूल बिंदू यह है कि हम नई चुनौतियों का मुकाबला कैसे करें। इसका जवाब सैंसरशिप में नहीं है। नया नारा होना चाहिए ‘सौ फूल खिलने दो’।-हरि जयसिंह
    


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