कच्चे तेल की कीमतों में भारी कमी ‘अर्थव्यवस्था’ के लिए लाभप्रद

punjabkesari.in Wednesday, Mar 18, 2020 - 01:44 AM (IST)

यकीनन इस समय कोरोना वायरस के कारण देश का आर्थिक परिदृश्य चुनौतीपूर्ण हो गया है। देश के उद्योग-कारोबार में सुस्ती बढ़ रही है। देश के पर्यटन उद्योग में  निराशा आ रही है। शेयर बाजार लगातार गिर रहे हैं। देश के 21 राज्यों में लॉक डाऊन के हालात हैं। इन सबके कारण चालू वर्ष 2020 में देश की जी.डी.पी. में एक फीसदी कमी आने की आशंका है। इससे 21 लाख करोड़ रुपए की हानि होगी। ऐसे में कच्चे तेल की कीमतों में भारी कमी और सोने के आयात में लगातार कमी देश की चुनौतीपूर्ण अर्थव्यवस्था के लिए लाभप्रद दिखाई दे रही है। 

चूंकि कोरोना प्रकोप और वैश्विक सुस्ती के कारण कच्चे तेल की मांग में भारी कमी आती जा रही है। अतएव वैश्विक बाजार में इसकी कीमतें घट रही हैं। ऐसे में दुनिया में कच्चा तेल उत्पादक देशों के सबसे प्रमुख संगठन ओपेक और अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजैंसी (आई.ए.) ने कहा है कि दुनिया के सबसे बड़े कच्चा तेल आयातक देश चीन में कोरोना वायरस के प्रकोप से कच्चे तेल की कीमत वर्ष 1990 के 30 साल बाद अब फिर सबसे कम हो गई है। कच्चे तेल की कीमत 16 मार्च को घटकर करीब 33 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गई है। 

इतना ही नहीं, ओपेक देशों और रूस के बीच तेल उत्पादन में कटौती को लेकर सहमति नहीं बन पाई है और सऊदी अरब ने आक्रामक प्राइस वॉर छेडऩे का ऐलान किया है। इससे तेल की कीमतें और घटेेंगी। नि:संदेह सऊदी अरब, अमरीका और रूस पर कच्चे तेल का युद्ध भारी पड़ेगा। गोल्डमैन सॉक्स ने वर्ष 2020 की दूसरी और तीसरी तिमाही के लिए कच्चे तेल की कीमत के अनुमान को घटाकर 30 डॉलर प्रति बैरल कर दिया है। साथ ही कहा कि यदि ओपेक देश और रूस के बीच कच्चे तेल उत्पादन में कटौती को लेकर कोई सहमति नहीं बनी तो कच्चे तेल की कीमत और निचले स्तर तक जा सकती है। 

पैट्रोलियम उत्पादों के दाम घटने से भारतीय ग्राहकों को उतना फायदा नहीं मिला 
निश्चित रूप से पैट्रोलियम उत्पादों के दाम घटने से भारतीय ग्राहकों को उतना फायदा नहीं मिला है, जितनी तेजी से कच्चे तेल की कीमतों में कमी आई है। लेकिन सरकार इस मौके का बड़ा फायदा अपना राजस्व बढ़ाने में करते हुए दिखाई दे रही है। केन्द्र सरकार ने पैट्रोल और डीजल दोनों पर उत्पाद शुल्क में तीन-तीन रुपए प्रति लीटर की वृद्धि कर दी है। ऐसे में राजस्व संग्रह के मोर्चे पर चुनौती झेल रही केन्द्र सरकार को सालाना करीब 39 हजार करोड़ रुपए ज्यादा मिलेंगे। इतना ही नहीं, चालू वित्त वर्ष 2019-20 के राजस्व संग्रह में भी करीब 2000 करोड़ रुपए की वृद्धि होगी। अर्थविशेषज्ञों का कहना है कि वर्ष 2020 में कच्चे तेल की कीमतों में भारी कमी से ढांचागत विकास के लिए फंड जुटाने में मदद मिलेगी, साथ ही राजकोषीय घाटे में कमी आएगी। 

सोने के आयात में कमी से अर्थव्यवस्था को सुकून
इस तरह जहां कच्चे तेल की कीमतें घटने से भारतीय अर्थव्यवस्था को लाभ होते हुए दिखाई दे रहा है, वहीं सोने के आयात में कमी भी अर्थव्यवस्था को सुकून देते हुए दिखाई दे रही है। वर्ष 2019 से दुनिया के अधिकांश केन्द्रीय बैंकों द्वारा डॉलर की तुलना में सोने को महत्व दिया जा रहा है और वे अपने रिजर्व में डॉलर के मुकाबले सोने का निवेश बढ़ा रहे हैं। साथ ही इस समय वैश्विक स्तर पर शेयर बाजार की अस्थिरता और कोरोना प्रकोप के कारण दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं द्वारा आर्थिक प्रोत्साहन घोषित किए जाने की वजह से संस्थागत निवेशक सोने की बड़े पैमाने पर खरीदी करते हुए दिखाई दे रहे हैं। इससे सोने के दाम बढ़कर ऊंचाई पर पहुंच गए हैं। ये दाम 40 हजार रुपए प्रति दस ग्राम से भी अधिक हो गए हैं। स्वर्ण बाजार विशेषज्ञों का कहना है कि वर्ष 2020 के अंत तक सोने की कीमत 50 हजार रुपए प्रति दस ग्राम की ऊंचाई तक पहुंच सकती है। 

यद्यपि भारत में सोने के दाम ऊंचाई पर पहुंच गए हैं लेकिन सोने की अधिक कीमत हो जाने के कारण लोगों द्वारा पुराने सोने तथा गहनों की बिक्री सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गई है। देश में लोग रिसाइक्लिंग कराकर शादी-विवाह और पारिवारिक कार्यों के लिए पुराने सोने का उपयोग कर रहे हैं। स्वर्ण विशेषज्ञों का मानना है कि वर्ष 2020 में देश में सोने की मांग करीब 500 से 550 टन के करीब आ जाएगी। साथ ही देश में 300 से 350 टन पुराने सोने को पिघलाकर यानी रिसाइक्लिंग करके नई ज्वैलरी बनाई जाएगी। देश के स्वर्ण विशेषज्ञों के अनुसार, पिछले वर्ष की तुलना में वर्ष 2020 में सोने की रिसाइकिं्लग करीब 110 फीसदी बढ़ जाएगी। 

साथ ही हम आशा करें कि सरकार वैश्विक बाजार में कच्चे तेल की घटी हुई कीमतों का लाभ लेते हुए देश में उत्पादन एवं निर्यात के मौके बढ़ाने के लिए मेक इन इंडिया अभियान को सर्वोच्च प्राथमिकता के साथ गतिशील करेगी। इससे एक ओर भारत चीन से आयात की जाने वाली कई वस्तुओं का उत्पादन देश में ही बढ़ा सकेगा, वहीं दूसरी ओर वैश्विक निर्यात बाजार में भारत कई वस्तुओं के निर्यातों के लिए नई जगह लेते हुए भी दिखाई दे सकेगा।-डा. जयंतीलाल भंडारी


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