मणिपुर : केंद्र सरकार की चुप्पी समझ से परे
punjabkesari.in Thursday, Nov 28, 2024 - 05:32 AM (IST)
मेघालय के मुख्यमंत्री कॉनराड संगमा की अगुवाई वाली नैशनल पीपुल्स पार्टी ने एन. बीरेन सिंह के नेतृत्व वाली भाजपा नीत मणिपुर सरकार से समर्थन वापस ले लिया है। समर्थन वापस लेने से बीरेन सिंह सरकार को कोई खतरा नहीं होगा क्योंकि 60 सीटों वाली विधानसभा में अकेले भाजपा के पास 37 विधायकों की ताकत है। हालांकि संगमा द्वारा की गई कार्रवाई पिछले डेढ़ साल से अशांत राज्य में शांति बहाल करने में केंद्र और राज्य सरकार की निष्क्रियता से पैदा हुए मोहभंग को बयां करती है। सरकार को बर्खास्त करने या कम से कम नेतृत्व में बदलाव की बार-बार मांग के बावजूद, भाजपा और केंद्र सरकार ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया।
बीरेन सिंह सरकार से समर्थन वापस लेने को उचित ठहराते हुए संगमा ने कहा कि सही समय पर निर्णय नहीं लिए गए और स्थिति बदतर हो गई है। लोग मर रहे हैं और उन्हें पीड़ित देखना दुखद है। चीजों को अलग तरीके से किया जा सकता था, जैसे कि गार्ड को बदलना। मणिपुर के आदिवासी विधायक ही नहीं, बल्कि मैतेई समुदाय के कुछ विधायक भी नेतृत्व परिवर्तन की मांग कर रहे हैं। विडंबना यह है कि भाजपा के पूर्व अध्यक्ष भी सरकार के कामकाज की आलोचना कर रहे हैं। मैतेई समुदाय से ताल्लुक रखने वाले बीरेन सिंह, जो राज्य में कुकी-नागा आदिवासी समुदाय के खिलाफ तलवारें खींचते हैं, एक अक्षम और बदनाम राजनीतिक नेता साबित हुए हैं। यह स्पष्ट है कि आदिवासी आबादी उनके नेतृत्व पर भरोसा नहीं करती है। पूर्वोत्तर का यह छोटा-सा राज्य एक साल से अधिक समय से जल रहा है, जिसमें करीब 250 लोगों की जान जा चुकी है और हजारों घायल हैं। मैतेई समुदाय को आदिवासी का दर्जा देने के मुद्दे पर दोनों समुदायों के बीच झड़प शुरू होने के बाद से ही राज्य में सामान्य जन-जीवन अस्त-व्यस्त है। मैतेई समुदाय राज्य के घाटी क्षेत्र में हावी है, जबकि अल्पसंख्यक नागा आदिवासी पहाडिय़ों से ताल्लुक रखते हैं। मैतेई भी नागाओं की तरह आदिवासी का दर्जा मांग रहे थे।
आदिवासियों को डर था कि अगर मैतेई को भी अनुसूचित जनजाति घोषित कर दिया गया तो उनके लिए आरक्षण खत्म हो जाएगा। इससे पुराने घाव हरे हो गए और दोनों समुदायों के बीच तनावपूर्ण संबंधों के कारण हिंसा और झड़पें हुईं। विपक्षी दलों, विशेषज्ञों और मीडिया द्वारा बार-बार आह्वान किए जाने के बावजूद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राज्य का दौरा न करने पर अड़े रहे ताकि यहां के निवासियों के घावों पर मरहम लगाया जा सके। उन्होंने कई पड़ोसी राज्यों का दौरा किया, लेकिन मणिपुर से दूर रहे। इतना ही नहीं, उन्होंने संसद के भीतर और बाहर राज्य के घटनाक्रमों पर पूरी तरह से चुप्पी साधे रखी और हिंसा की निंदा भी नहीं की। राज्य के अधिकांश हिस्से समय-समय पर कफ्र्यू के तहत रहे हैं और इंटरनैट सुविधाएं लंबे समय तक बंद रही हैं। दोनों समुदायों से जुड़े हजारों निवासी राहत शिविरों में रह रहे हैं और अपने घर वापस जाने को लेकर असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। शैक्षणिक संस्थान बंद हैं और आर्थिक गतिविधियां ठप्प हैं।
नागा बहुल इलाकों में राज्य को जोडऩे वाले मुख्य राजमार्ग पर ‘आर्थिक नाकेबंदी’ के कारण खाद्यान्न और पैट्रोलियम उत्पादों सहित आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति गंभीर रूप से बाधित हुई है। मोदी सरकार, जो गैर-भाजपा दलों के नेतृत्व वाली राज्य सरकारों के खिलाफ आक्रामक रही है, मणिपुर में अपनी खुद की अक्षम सरकार के साथ नरमी से पेश आ रही है। म्यांमार और चीन द्वारा उपद्रव भड़काने के दावों में कुछ सच्चाई हो सकती है, लेकिन यह राज्य की ओर से हिंसा को रोकने में पूरी तरह विफल होने का कोई बहाना नहीं है।हिंसा में थोड़ी शांति के बाद, पिछले कुछ दिनों में जानमाल की हानि सहित हिंसा की कई घटनाएं हुई हैं। केंद्र की चुप्पी समझ से परे है। यह एक दुर्लभ उदाहरण होना चाहिए, जहां केंद्रीय शासन लागू करने का मीडिया सहित समाज के विभिन्न वर्गों द्वारा स्वागत किया जाएगा। पहले ही बहुत देर हो चुकी है। केंद्र को कार्रवाई करनी चाहिए।-विपिन पब्बी