प्रतिभा पलायन से हो रहा नुक्सान, जरा सोचिए

punjabkesari.in Saturday, Dec 18, 2021 - 04:07 AM (IST)

संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा घोषित अनेक दिवसों में एक है; अंतर्राष्ट्रीय प्रवासी दिवस जो प्रति वर्ष 10 दिसंबर को मनाया जाता है। भारत के संदर्भ में इसका महत्व इसलिए है कि यह देश की प्रतिभा का दूसरे देशों को समृद्ध बनाने के लिए पलायन यानी ब्रेन ड्रेन पर गंभीरता से विचार करने का दिन है। कड़वा सच है कि हमें पिछड़ा, गरीब और याचक बनाए रखने के लिए यह अमीर देशों का षड्यंत्र है जिसकी नींव स्वतंत्रता हासिल करने के कुछ समय बाद ही पड़ गई थी।

पढ़ेगा इंडिया बढ़ेगा अमरीका : सोशल मीडिया पर एक संदेश देखा जा रहा है जो कुछ इस तरह से है : जब पढ़ेगा भारत, तब ही बढ़ेगा अमरीका। यह एक प्रकार से सच या हकीकत को पूरी नग्रता के साथ बयान करना है जिसकी टीस प्रत्येक नागरिक के मन में उठना स्वाभाविक है। यह सोच गलत नहीं है कि अगर भारत से प्रतिभा का पलायन न होता या न होने दिया जाता तो आज हम विकसित देश कहलाते? 

एक उदाहरण याद आ रहा है; बात 60 के दशक की है जब पत्रकारिता और लेखन को अपना व्यवसाय बनाने का निश्चय कर इसे सीखना शुरू किया था। उस दौरान एक अमरीकन से मुलाकात हुई जो मित्रता में बदल गई। आपस में एक-दूसरे के बारे में बहुत-सी बातें बातचीत में शामिल होने लगीं। एक दिन उसने कहा कि मुझे खर्च करने दिया करो क्योंकि तुम्हारे देश से मुझे इतना वेतन मिलता है कि मैं यहां पूरे ऐशो आराम से रह सकता हूं।  उस समय उसका वेतन लगभग दस हजार होगा जो आज दस लाख से अधिक तो होगा ही। 

एक झटका लगा जब एक दिन उसने कहा कि  पता नहीं क्यूं इंडियन गवर्नमैंट ने मुझे नियुक्त किया जबकि मैं अपने अधीन जिनके साथ काम करता हूं, वे योग्यता में मुझसे तनिक भी कम नहीं, बल्कि सच तो यह है कि मुझसे अधिक योग्य हैं। कुछ समय बाद उसका सरकार के साथ एग्रीमैंट समाप्त हो गया। हालांंकि भारत सरकार उसे बढ़ाना चाहती थी लेकिन वह इंकार कर वापस अपने देश चला गया। यह उदाहरण इस बात का सबूत है कि देश की सरकार ने अपने नागरिकों की योग्यता पर न केवल भरोसा ही नहीं किया बल्कि उन्हें यहां से किसी भी तरह विदेश में जाकर बसने के लिए विवश कर दिया। अब यह तो सब ही जानते हैं कि देश की योग्य पीढ़ी के सामने अपने सपनों को पंख लगाने के लिए विदेश की धरती हमेशा से लुभाती रही है। इसका परिणाम यह हुआ कि अमरीका जैसे देशों को बिना कुछ किए असीम योग्यता वाले भारतीय मिलने लगे।

ऐतिहासिक तथ्य : विश्व प्रवास दिवस पर यह बात भी ध्यान में आती है कि भारत से तो हमेशा से ही प्रतिभा का पलायन होता रहा है। महात्मा गांधी को भी अपनी वकालत की योग्यता दिखाने का अवसर विदेश में ही मिला और वे वहां बस भी गए। यदि वे, किसी भी परिस्थिति के कारण हो, भारत न लौटते तो क्या कभी राष्ट्रपिता बन सकते थे? इस दिन यह स्मरण होना स्वाभाविक है कि अपने देश में अवसर होते हुए भी विदेश में रहने और वहां खाने कमाने की अधिक संभावनाएं दिखाई देने का सबसे बड़ा कारण हमारे देश की सरकारों का विदेशियों को यहां आकर भारतीयों को मानसिक गुलाम बनाए रखने की सुविधाएं प्रदान करना है। 

यह कहने और मान लेने में कोई हेठी नहीं है कि आजादी के बाद ऐसे हालात बनाए ही नहीं गए कि देश की प्रतिभा और उसके नागरिकों की योग्यता की सही परख हो पाती। यदि ऐसा होता तो चाहे कितने भी प्रलोभन होते, कोई भी भारतवासी देश से बाहर जाकर अपनी योग्यता दिखाने के बारे में सोचता तक नहीं! यह सोचना कि जो भारतीय विदेशों में बस गए हैं, वे सब कुछ छोड़कर यहां वापस आएंगे, कोरी कल्पना और अपने को गलतफहमी में रखना है, इसलिए ऐसे उपाय करने होंगे कि जो यहां रहकर अपनी प्रतिभा दिखाना चाहते हैं उन्हें कैसे रोक कर रखा जाए। यह कहना भी छलावा है कि राष्ट्रभक्ति और देश सेवा की भावना के कारण वे रुक सकते हैं! मनुष्य अपनी प्रकृति से स्वार्थी होने के कारण जहां उसे अवसर मिलेगा, वह उसे पहले पाने के लिए कोशिश करेगा, बाकी सब बेकार है। 

मर्जी और मजबूरी : कोई भी व्यक्ति अपनी मर्र्जी से विदेश तब जाता है जब उसके सामने एेसे अवसरों की कोई कमी न हो जिनके बल पर वह अपनी प्रतिभा के अनुसार वेतन और अन्य सुविधाएं हासिल कर सके। इसका मतलब यह है कि वह तुलना करता है कि देश में उसे यह सब कुछ मिल सकता है या नहीं, अगर नहीं तो वह किसी भी तरीके से वहां जाएगा जहां उसे यह सब आसानी से मिल जाएगा। इस श्रेणी में अधिकतर वे युवा आते हैं जो इतने काबिल हैं कि कोई भी संस्थान उन्हें अपने साथ जोडऩे और साथ ही जोड़े रखने के लिए उनकी सोच से भी अधिक वेतन और भत्ते देने की पेशकश करता है।  जब उसके सामने किसी एक को चुनने का अवसर आता है तो वह बेहिचक मल्टीनैशनल कंपनियों को चुनकर अपनी मातृभूमि को अलविदा कहने में कतई संकोच नहीं करता। 

दूसरी स्थिति में कोई व्यक्ति विदेश तब जाता है जब उसके सामने कोई मजबूरी होती है जिसके कारण बाहर जाने में ही वह अपना भला समझता है। इन कारणों में देश में प्रशासनिक स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार, कोटा सिस्टम, योग्यता के स्थान पर आरक्षण को मान्यता और राजनीतिक स्तर पर भाई भतीजावाद प्रमुख हैं। जब समृद्ध और विकसित देशों के प्रतिभाशाली युवा अपने देश की नीतियों के कारण भारत में नहीं बसते तो फिर भारतीय युवाओं को क्यों नहीं देश में रहकर अपनी योग्यता के अनुसार अवसर देने की व्यवस्था की जा सकती, जरा सोचिए?-पूरन चंद सरीन
 


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