पैट्रोल से चलने वाले वाहनों पर कार्बन टैक्स लगाइए

punjabkesari.in Tuesday, Nov 16, 2021 - 04:37 AM (IST)

ग्लासगो में आयोजित सी.ओ.पी.26 पर्यावरण सम्मेलन में भारतीय वाहन निर्माताओं ने कहा है कि 2030 तक भारत में 70 प्रतिशत दोपहिया, 30 प्रतिशत कारें और 15 प्रतिशत ट्रक बिजली से चलने वाले होंगे। यह सुखद सूचना है लेकिन दुनिया की चाल को देखते हुए हम फिर भी पीछे ही हैं। नॉर्वे ने निर्णय किया है कि 2025 के बाद उनकी सड़कों पर एक भी पैट्रोल या डीजल वाहन नहीं चलेगा। 

डेनमार्क और नीदरलैंड्स ने यही निर्णय 2030 से एवं  इंगलैंड और अमरीका के राज्य कैलिफोॢनया ने 2035 से लागू करने की घोषणा की है। चीन में इस वर्ष की पहली तिमाही में बिजली के 5 लाख वाहन बिके हैं और यूरोप में 4.5 लाख। भारत अभी इस दौड़ में बहुत पीछे है और पहली तिमाही में हम बिजली के केवल 70,000 वाहन बेच सके हैं। 

बिजली से चलने वाले वाहन आर्थिक एवं पर्यावरण-दोनों दृष्टि से लाभप्रद हैं। पैट्रोल से चलने वाले वाहन ईंधन की केवल 25 प्रतिशत ऊर्जा का ही उपयोग कर पाते हैं, शेष 75 प्रतिशत ऊर्जा इंजन को गर्म रखने अथवा बिना जले हुए कार्बन यानी धुएं के रूप में साइलैंसर से बाहर निकल जाती है। इसकी तुलना में बिजली के वाहन ज्यादा कुशल हैं। यदि उसी तेल से पहले बिजली बनाई जाए तो बिजली संयंत्र में तेल की लगभग 15 प्रतिशत ऊर्जा क्षय होती है।

फिर इस बिजली को कार तक पहुंचाने में 5 प्रतिशत का क्षय होता है और स्वयं कार में बिजली से गाड़ी को चलाने में लगभग 20 प्रतिशत ऊर्जा का क्षय होता है। कुल 40 प्रतिशत ऊर्जा का क्षय होता है और बिजली की कार के माध्यम से हम तेल में निहित 60 प्रतिशत ऊर्जा का उपयोग कर पाते हैं। अर्थात उतने ही तेल से बिजली की कार से आप दोगुनी दूरी तय कर सकते हैं। इसलिए बिजली के वाहन पर्यावरण के लिए सुखद हैं। 

आर्थिक दृष्टि से भी ये लाभदायक हैं। आने वाले समय में बिजली के वाहन सस्ते हो जाएंगे। वल्र्ड इकोनॉमिक फोरम के एक अध्ययन के अनुसार 2019 में पैट्रोल की कार का मूल्य 24,000 अमरीकी डॉलर था जो 2025 में बढ़ कर 26,000 डॉलर हो जाने का अनुमान है। इसके विपरीत 2019 में समतुल्य बिजली की कार का मूल्य 50,000 डॉलर था जो 2025 में घट कर मात्र 18,000 डॉलर हो जाएगा। 

केंद्र सरकार विद्युत वाहन को प्रोत्साहन देने के लिए लगभग 15,000 रुपए की सबसिडी देती है। कई राज्य सरकारों द्वारा भी अलग-अलग दर से सबसिडी दी जा रही है। विषय यह है कि बिजली की कार को बढ़ावा देने के लिए सबसिडी दी जाए अथवा पैट्रोल वाहनों पर अतिरिक्त टैक्स आरोपित किया जाए। यदि हम विद्युत वाहन पर सबसिडी देते हैं तो उसका दाम कम होता है और पैट्रोल की तुलना में बिजली की कार खरीदना लाभप्रद हो जाता है। यही कार्य पैट्रोल कार पर टैक्स लगा कर हासिल किया जा सकता है। पैट्रोल वाहनों पर कार्बन टैक्स लगा दिया जाए तो वे महंगे हो जाएंगे और पुन: उनकी तुलना में बिजली के वाहन सस्ते हो जाएंगे। 

दोनों नीतियों में अंतर यह है कि जब हम बिजली के वाहन पर सबसिडी देते हैं तो सबसिडी में दी गई रकम को हम जनता से किन्हीं अन्य स्थानों पर टैक्स के रूप में वसूल करते हैं। जैसे यदि बिजली की कार पर 15,000 रुपए की सबसिडी दी गई तो देश के हर नागरिक को कपड़े पर 1 पैसा प्रति मीटर अधिक टैक्स देना पड़ सकता है। नतीजतन बिजली की कार चलाने वाले को सबसिडी मिलती है और उसका भार आम आदमी पर पड़ता है। इसके विपरीत यदि हम पैट्रोल की कार पर टैक्स लगाएं और उसे महंगी करें तो टैक्स का भार सीधे उस व्यक्ति पर पड़ेगा जो पैट्रोल वाहन को चलाता है। मैं समझता हूं कि जो लोग पैट्रोल कार का उपयोग करते हैं, उनके द्वारा किए गए पर्यावरण के नुक्सान का भार आम आदमी पर नहीं डालना चाहिए। इसलिए सरकार को सबसिडी के स्थान पर पैट्रोल वाहनों पर कार्बन टैक्स लगाने की पॉलिसी अपनानी चाहिए। 

दूसरा काम, सरकार को बिजली के मूल्यों में दिन और रात में बदलाव करना चाहिए। यह नीति सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के लिए लाभप्रद होगी और बिजली की कार के लिएविशेषरूप से। सामान्य तौर पर दिन में बिजली की मांग अधिक और रात में कम होती है। इस कारण अक्सर थर्मल बिजली संयंत्रों को रात्रि के समय अपने को बैकडाऊन करना पड़ता है, यानी उस समय वे अपनी क्षमता का 60 प्रतिशत बिजली उत्पादन करते हैं। इससे बिजली के मूल्य में वृद्धि होती है। 

यदि बिजली का दाम दिन में बढ़ा कर रात में कम कर दिया जाए तो विद्युत कार के मालिकों समेत कारखानों के लिए लाभप्रद हो जाएगा, कि वे रात्रि के समय अपनी कार को चार्ज करें और कारखाने चलाएं। गृहिणी रात में वाशिंग मशीन से कपड़े धोएगी। गृह स्वामी रात के समय ट्यूबवैल चला कर पानी की टंकी भरेगा। तब रात्रि में बिजली की मांग बढ़ेगी जिससे थर्मल पावर स्टेशन को बैकडाऊन नहीं करना पड़ेगा और बिजली के दाम में कमी आएगी। 

बिजली के ऐसे मीटर उपलब्ध हैं और अन्य देशों में उपयोग में हैं, जो समय के अनुसार बिजली की खपत का रिकॉर्ड रख लेते हैं। सुझाव है कि केवल सबसिडी देने सेबिजली के वाहनों का उपयोग देश में नहीं बढ़ेगा। अत: उपरोक्त नीतियों को सरकार को लागू करने पर विचार करना चाहिए।-भरत झुनझुनवाला


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