सरकार की विचारधारा में ‘सकारात्मकता’ का अभाव

punjabkesari.in Monday, Mar 09, 2020 - 02:17 AM (IST)

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 6 साल से भारत पर शासन कर रहे हैं। अपनी विचारधारा के लिए उनके पास आखिरी मुकाम क्या है और वह भारत को कहां ले जाने का इरादा रखते हैं? अति राष्ट्रवादी विचारधाराएं आंतरिक तौर पर खुद को अल्पसंख्यक समूहों के खिलाफ अभिव्यक्त करती हैं तथा बाहरी तौर पर सैन्य शक्ति को अभिव्यक्त करना चाहती हैं। एडोल्फ हिटलर भी दूसरा विश्व युद्ध शुरू करने से पहले 6 वर्ष तक सत्ता में रहा था। इन 6 सालों में उसने जर्मनी की सेना और अर्थव्यवस्था का आक्रामक तरीके से विकास किया। इसके बाद हिटलर ने पोलैंड से लेकर फ्रांस और डेनमार्क से लेकर सिसिली तक सब को जीत कर उन पर नियंत्रण कर लिया। उस महाद्वीप का इतना ज्यादा हिस्सा न तो उससे पहले और न ही उसके बाद किसी के नियंत्रण में रहा। इसके बाद हिटलर ने स्टालिन के रूस से युद्ध लड़ा और हार गया। 

भारत के दो अनसुलझे विवाद 
भारत के 2 अनसुलझे विवाद और 2 दुश्मन हैं। एक  चीन है जिसकी अर्थव्यवस्था भारत से 6 गुना बड़ी है तथा वह सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य है जिसका अर्थ यह है कि उसके पास वीटो पावर है जिससे वह भारत की वैश्विक गतिविधियों में अड़ंगा लगा सकता है। चीन के साथ हमारे विवाद की ज्यादा चर्चा नहीं होती और इसके बारे में तभी समाचार आता है जब चीन के सिपाही भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ करते हैं अथवा जब चीन अरुणाचल को अपना क्षेत्र कह कर उस पर दावा जताता है। भारत इस मामले में कोई आक्रामक रुख नहीं अपनाता बल्कि वह रक्षात्मक रहता है और इस बात से खुश है कि यहां पर यथास्थिति बनी रहे। मोदी के पास इसे बदलने की न तो शक्ति है और न ही रुचि। दूसरा विवाद पाकिस्तान के साथ है जहां भारत को विद्रोह का सामना करना पड़ता है तथा उसे अपनी रक्षा के लिए काफी सशस्त्र बल लगाने पड़ते हैं। यह 30 साल पुराना विवाद है जिसे भारत मैनेज करने में असमर्थ रहा है तथा इस पर उसे काफी संसाधन खर्च करने पड़े हैं। 2020 में भी जम्मू-कश्मीर को अपने नियंत्रण में रखने के लिए उसे कश्मीर के पूरे राजनीतिक नेतृत्व को नजरबंद करके रखना पड़ रहा है। 

भारत के मुकाबले में पाकिस्तान इतना ही छोटा है जितना भारत चीन के मुकाबले में है लेकिन इस मामले में भी भारत का रवैया रक्षात्मक है और वह अधिक संख्या और अधिक हार्डवेयर होने के बावजूद सैन्य तौर पर पाकिस्तान को नियंत्रण में रखने में असफल रहा है। इसका अर्थ यह है कि बाहरी तौर पर भारत के पास वह सब कुछ करने की क्षमता नहीं है जो अति राष्ट्रवाद इससे चाहता है। यानी दुश्मन को घुटने टेकने के लिए मजबूर करना, इसलिए  हिन्दुत्व के तहत आंतरिक अति राष्ट्रवाद  पर ध्यान केन्द्रित किया जा रहा है। भारत में हिन्दुत्व की तरह नाजी जर्मनी भी एक अल्पसंख्यक को नापसंद करता था लेकिन यहूदी (जो 1933 में 5.65 लाख थे) जर्मनी की जनसंख्या का 1 प्रतिशत से कम थे। 

मुसलमानों को प्रताडि़त करना देश हित में नहीं
भारत में मुसलमान 20 करोड़ हैं। उन्हें देश को नुक्सान पहुंचाए बिना प्रताडि़त नहीं किया जा सकता तथा ऐसा करने से देश की छवि भी खराब होगी जैसा कि दिल्ली में हुई घटनाएं दर्शाती हैं। इस रास्ते पर चलने से भारत को भारी नुक्सान होगा तथा किसी भी समुदाय को कोई फायदा नहीं होगा तथा राष्ट्र को तो बिल्कुल भी नहीं। शुक्रवार 6 मार्च को एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने कहा कि वह यथास्थिति को बदलना चाहते हैं लेकिन सरकार के आलोचक ऐसा नहीं होने देना चाहते। उदाहरण के तौर पर उन्होंने 3 तलाक के अपराधीकरण, अनुच्छेद 370 को हटाने तथा नागरिकता संशोधन कानून का जिक्र किया। वह जो कुछ कह रहे हैं उसमें समस्या यह है कि भारतीय तो यह भी नहीं चाहते कि भारत की यथास्थिति एक धर्मनिरपेक्ष तथा बहुलतावादी राष्ट्र से एक कट्टर राष्ट्रवादी देश की ओर बदले जो अपने ही नागरिकों का उत्पीडऩ करता हो। संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार  उच्चायुक्त ने सी.ए.ए. को हमारे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है और वह इस मामले में पार्टी बनना चाहते हैं।

सरकार और प्रधानमंत्री की विचारधारा के पास हिन्दुओं को पेश करने के लिए कुछ भी सकारात्मक नहीं है। वह मुसलमानों से बाबरी मस्जिद, उनके पर्सनल लॉज, कश्मीर की स्वायत्तता लेना चाहते हैं। इसके पास अपने समर्थकों को घृणा के अलावा देने के लिए कुछ नहीं है। इसे अन्य भारतीयों और दुनिया द्वारा चुनौती दी जानी चाहिए और दी जाएगी तथा इस यथास्थिति को बदलने में और भारत को बर्बादी के रास्ते पर और आगे ले जाने में गर्व करने योग्य कुछ भी नहीं है। काफी हद तक मोदी ने खुद ही अति राष्ट्रवाद को भारत और दुनिया को नुक्सान पहुंचाने से रोक लिया है। वह सक्षम तरीके से अर्थव्यवस्था का प्रबंधन नहीं कर पाए हैं। 

स्लोडाऊन की स्थिति  
भारत स्लोडाऊन की स्थिति में है तथा इसकी विकास दर में पिछले दो वर्ष से लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है। पिछली दो तिमाहियों में इसकी सूचीबद्ध कम्पनियों की बिक्री में लगातार कमी दर्ज की गई है जोकि मंदी का संकेत है। 
भारत बड़ी आॢथक शक्ति नहीं है और न ही निकट भविष्य में बनने जा रही है। इसका निवेश मोदी के पूरे कार्यकाल में स्थिर रहा है। जी.डी.पी. में निर्माण क्षेत्र का योगदान घटा है और बेरोजगारी पिछले 50 साल से सबसे ज्यादा है। यह है वह यथास्थिति जिसे बदलने की जरूरत है लेकिन मोदी का अभिप्राय: इसे बदलने से नहीं है। मोदी ने उस अतिराष्ट्रवाद की अध्यक्षता की है जिसने भारत के विकास को रोका है, वह देश की बाहरी स्थिति को बदलने में नाकाम रहे हैं, भारत के आंतरिक मामलों में विदेशी दखल हुआ है। और बेशक  भारत के मुसलमानों को होने वाले नुक्सान में तेजी आई है। यह है वह वास्तविक यथास्थिति जिसे बदला जाना चाहिए और जिसका विरोध किया जाएगा।-आकार पटेल                       


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