कोलकाता डाक्टर रेप कांड : कितने असुरक्षित हमारे अस्पताल

punjabkesari.in Wednesday, Aug 14, 2024 - 05:54 AM (IST)

कोलकाता में एक रैजीडैंट डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या ने अस्पतालों में महिलाओं की सुरक्षा पर सवाल खड़ा कर दिया है। डाक्टर अब पूरे भारत में विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं और बढ़ते हमलों का हवाला देते हुए स्वास्थ्य कर्मियों की सुरक्षा के लिए एक केंद्रीय कानून बनाने की मांग कर रहे हैं। प्रदर्शनकारी डाक्टरों द्वारा प्रसारित की जा रही याचिका इस बात की जानकारी देती है कि क्यों एक अकेला कानून आवश्यक सुरक्षा प्रदान नहीं कर सकता। इसमें एक नर्स के मामले का हवाला दिया गया है, जिस पर मार्च, 2022 में सूरत में आपातकालीन वार्ड के एक मरीज ने लोहे की मेज से हमला किया था और उसे तीन टांके लगाने पड़े थे। याचिका में कहा गया है, ‘‘नर्स ने एफ.आई.आर. दर्ज करवाई और व्यक्ति पर भारतीय दंड संहिता 332 के तहत मामला दर्ज किया गया। लेकिन अस्पताल या पुलिस द्वारा की गई किसी भी कार्रवाई के बारे में कोई जानकारी नहीं है।’’ 

यदि आई.पी.सी. 332 के तहत दोषी ठहराया जाता है, जो एक लोक सेवक को उसके कत्र्तव्य से रोकने के लिए चोट पहुंचाने वाली हिंसा से संबंधित है, तो सजा 3 साल तक की कैद और/या जुर्माना है। यह एक संज्ञेय अपराध है, जिसका अर्थ है कि आरोपी को बिना वारंट गिरफ्तार किया जा सकता है। यह गैर-जमानती और गैर-समझौता योग्य है (एक प्रावधान, जो आम तौर पर जघन्य अपराधों के लिए लागू होता है), जिसका अर्थ है कि अगर पीड़ित और आरोपी निजी तौर पर समझौता कर लेते हैं तो भी अदालती कार्रवाई जारी रहेगी। की गई कार्रवाई के बारे में कोई और जानकारी नहीं होना या तो अस्पताल द्वारा अपर्याप्त अनुवर्ती कार्रवाई या न्याय प्रणाली की सामान्य देरी को दर्शाता है। ये दोनों समस्याएं नए केंद्रीय कानून के साथ भी बनी रहेंगी, क्योंकि कठिनाई कानून से ज्यादा उसके क्रियान्वयन को लेकर दिख रही है।

अधिकांश राज्यों ने पहले ही एक कानून मैडिकेयर सर्विस पर्सन्स एंड मैडिकेयर सर्विस इंस्टीच्यूशंस (हिंसा और संपत्ति की क्षति/नुकसान की रोकथाम) अधिनियम को अपना लिया है, जो हिंसक अपराधियों को दंडित करता है, कुछ बदलावों के साथ। हालांकि, शोध से पता चला है कि इन राज्यों में भी इस कानून के तहत चलाए गए 10 प्रतिशत से भी कम मामले आरोप दायर होने के बाद अदालत तक पहुंचे। जबकि याचिका सभी स्वास्थ्य कर्मियों के लिए सुरक्षा की बात करती है, न्याय की लड़ाई, जहां नर्सों के साथ बलात्कार और हत्या की कई भयावह घटनाएं हुई हैं, उनके परिवारों पर छोड़ दी गई है। 

स्वास्थ्य प्रणाली में महिला नर्सें सबसे असुरक्षित हैं। सहकर्मियों से लेकर रोगियों और उनके परिचारकों तक, सभी द्वारा मौखिक, शारीरिक और यौन शोषण किया जाता है। उनकी सुरक्षा के लिए उनके पास कोई विशेष कानून नहीं है। उनके पास कार्यस्थल पर सभी महिलाओं की सुरक्षा करने वाले सामान्य कानूनों का ही सहारा है। 2024 में अस्पतालों में दर्ज किए गए यौन उत्पीडऩ के 5 में से 4 मामलों में पीड़ित महिला मरीज थीं। पिछले 10 वर्षों में पूरे भारत में लगभग 2 दर्जन मामले सामने आ चुके हैं, जिनमें अस्पतालों में महिला रोगियों के साथ यौन उत्पीडऩ किया गया। क्या मरीजों को स्वास्थ्य प्रणाली के अंदर ङ्क्षहसा से बचाने के लिए किसी विशेष कानून का सहारा लेना पड़ता है? क्या प्रसूति हिंसा की शिकार महिलाओं की सुरक्षा के लिए कोई विशेष कानून है, जिसमें प्रसव के दौरान महिला के साथ दुव्र्यवहार करना और उसे थप्पड़ मारना शामिल है, जिसकी व्यापकता अधिकांश डाक्टर प्रमाणित करेंगे? क्या मरीजों और उनके परिवारों को अधिक शुल्क वसूलने की वित्तीय मार से बचाने के लिए कोई विशेष कानून है? नहीं है। वे उसी सुस्त न्याय प्रणाली के तहत न्याय पाने के लिए कानून की उन्हीं धाराओं का इस्तेमाल करते हैं, जो सामान्य आबादी के लिए उपलब्ध हैं, जिससे स्वास्थ्य कार्यकत्र्ता संघर्ष करते हैं।

किसी स्वास्थ्य प्रणाली में मरीज संभवत: सबसे कम सशक्त होते हैं और उनके पास अपनी ओर से विरोध करने के लिए कोई संगठित समूह नहीं होता। मरीजों की सुरक्षा या बुनियादी अधिकारों के लिए कोई भी लॉबी सड़कों पर नहीं उतरी। स्वास्थ्य कार्यकत्र्ताओं पर की जाने वाली हिंसा पर बहुत सारे अध्ययन हैं, लेकिन मरीजों पर की जाने वाली हिंसा पर शायद ही कोई अध्ययन किया गया हो, अक्सर उन लोगों द्वारा, जो उनकी देखभाल करते हैं। यह विषमता स्वास्थ्य कर्मियों के बीच पीड़ित होने की भावना पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालती और इसे प्रणालीगत बुराइयों से दूर करती है। स्वास्थ्य कर्मियों के खिलाफ हिंसा को विश्व स्तर पर दर्ज किया गया है और यह अनुमान लगाया गया है कि स्वास्थ्य कर्मियों के खिलाफ हमलों की संभावना सामान्य कार्यस्थलों में पेशेवरों के खिलाफ हमलों की तुलना में 4 गुना अधिक है। 

क्या इस पर भी कोई ऐसा ही अध्ययन हुआ है कि क्या स्वास्थ्य देखभाल चाहने वाले मरीजों को किसी अन्य सेवा के उपभोक्ताओं की तुलना में ङ्क्षहसा का सामना करने की अधिक संभावना है? क्या स्वास्थ्य प्रणाली या किसी भी सेवा वितरण प्रणाली में बीमार रोगियों और उनके परिवारों की तुलना में अधिक असुरक्षित वर्ग है? स्वास्थ्य सुविधाओं में ङ्क्षहसा को संबोधित करने वाले अध्ययनों ने कई जोखिम कारकों की पहचान की है, जिनमें कम कर्मचारी वाले आपातकालीन विभाग, रोगियों के लिए लंबा इंतजार, स्वास्थ्य सेवाओं की खराब गुणवत्ता और संचार शामिल हैं। हालांकि ये कारक स्वास्थ्य कर्मियों के लिए ङ्क्षहसा के जोखिम को बढ़ाते हैं, लेकिन इनका मतलब रोगियों के लिए बहुत अधिक पीड़ा या यहां तक कि मृत्यु का जोखिम भी हो सकता है।(‘टी.ओ.आई.’ से साभार)-रेमा नागराजन 


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