खालिस्तान मुद्दे ने भारत-कनाडा रिश्तों पर ग्रहण लगा दिया
punjabkesari.in Saturday, Sep 23, 2023 - 04:55 AM (IST)

ब्रिटिश कोलंबिया में एक कनाडाई सिख व्यक्ति हरदीप सिंह निज्जर की हत्या को लेकर कनाडा और भारत के बीच तनाव बढ़ गया है। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने दावा किया है कि निज्जर की हत्या में भारतीय एजैंट शामिल थे। ट्रूडो ने संसद में एक चौंकाने वाला आरोप लगाया जिसमें कहा गया कि उनकी सरकार भारत सरकार और निज्जर की हत्या के बीच ‘संभावित संबंध के विश्वसनीय आरोपों’ की जांच कर रही है। उन्होंने इसे कनाडा की सम्प्रभुता का अस्वीकार्य उल्लंघन बताया और भारत से जांच में सहयोग करने का आग्रह किया।
जून में हरदीप सिंह निज्जर को गुरुद्वारे की पार्किंग में नकाबपोश हमलावरों ने गोली मारकर मार दिया था जहां उन्होंने अध्यक्ष के रूप में कार्य किया था। संदिग्ध अज्ञात बने हुए हैं। निज्जर की हत्या खालिस्तान के समर्थन में वैश्विक सिख प्रवासियों के बीच जनमत संग्रह आयोजित करते समय हुई थी। यह घटना नए सिरे से सिख अलगाववादी गतिविधि और इसका मुकाबला करने के भारत के प्रयासों की पृष्ठभूमि में आती है। इस विवाद के कारण दोनों देशों से खुफिया एजैंसी प्रमुखों को निष्कासित कर दिया गया है।
आइए निज्जर की पृष्ठभूमि के बारे में जानें : हरदीप सिंह निज्जर 1997 में कनाडा चला गया था और 2015 में उसने कनाडा की नागरिकता हासिल कर ली थी। वह खालिस्तान आंदोलन का मुखर समर्थक था और पंजाब की आजादी के लिए संघर्ष कर रहा था। भारत ने उसे 2016 से ‘वांछित आतंकवादी’ करार दिया है और यह दावा किया है कि वह एक आतंकी है और खालिस्तान टाइगर फोर्स नामक एक अलगाववादी समूह का प्रमुख था। विशेष रूप से निज्जर के दल खालसा नेता गजेंद्र सिंह के साथ संबंध होने की सूचना मिली थी जिसने 1981 में इंडियन एयरलाइन्स की उड़ान के पांच अपहरणकत्र्ताओं में से एक के रूप में कुख्याति प्राप्त की थी। वर्तमान में गजेंद्र पाकिस्तान में रहता है। हालांकि ट्रूडो ने हत्या में भारत की संलिप्तता के ठोस सबूत पेश नहीं किए लेकिन उन्होंने आश्वासन दिया है कि स्थिति की संवेदनशीलता के कारण सही समय आने पर ऐसे सबूत भारत के साथ सांझा किए जाएंगे।
रिपोर्टों से पता चलता है कि ट्रूडो ने कनाडा के ‘फाइव आइज’ भागीदारों के साथ कुछ सबूत सांझा किए हैं। फाइव आइज अमरीका, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के साथ एक करीबी खुफिया सांझाकरण गठबंधन है लेकिन जी-20 शिखर सम्मेलन से पहले संयुक्त कार्रवाई के लिए उनका समर्थन नहीं मिला। अमरीका ने कनाडा की जांच का समर्थन तो किया है लेकिन स्पष्ट रूप से भारत पर आरोप नहीं लगाया है। भारत के खिलाफ ट्रूडो के आरोप के महत्वपूर्ण कूटनीतिक निहितार्थ हैं जिससे भू-राजनीतिक तनाव पैदा हो रहा है।
हालांकि यू.के. और आस्ट्रेलिया सहित कनाडा के प्रमुख सहयोगियों ने जांच के नतीजे की परवाह किए बिना द्विपक्षीय व्यापार समझौतों को जारी रखने के अपने इरादे का संकेत दिया है। संयुक्त राज्य अमरीका और यू.के. ने जांच में भारतीय सहयोग के लिए कनाडा के आह्वान का सावधानीपूर्वक समर्थन किया है। भारत इन आरोपों का पुरजोर खंडन करता है और इन्हें बेतुका और प्रेरित बताकर खारिज करता है। भारत लम्बे समय से खालिस्तान मुद्दे को लेकर कनाडा के संबंधों से चिंतित रहा है और उसने खालिस्तानियों को समर्थन देने के संबंध में कनाडा को अपनी शिकायतें बताई हैं।
खालिस्तान पर भारत कनाडाई विवाद एक जटिल और संवेदनशील मुद्दा है। एक ओर भारत को खालिस्तानी आंदोलन के बारे में एक वैध चिंता है, वहीं अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भारत इसे खतरा मानता है। दूसरी ओर कनाडा अभिव्यक्ति और संघ की स्वतंत्रता के अधिकार के साथ एक सम्प्रभु राष्ट्र है। इसमें खालिस्तान आंदोलन का समर्थन करने का कनाडाई लोगों का अधिकार शामिल है जो भारत के दृष्टिकोण के विपरीत है। दोनों देशों के बीच दोस्ती और सहयोग का एक लम्बा इतिहास रहा है लेकिन खालिस्तान मुद्दे ने इस रिश्ते पर ग्रहण लगा दिया है। यह कोई रहस्य नहीं है कि कनाडा में खालिस्तान समर्थक समूह पिछले कुछ वर्षों से काफी सक्रिय हैं। इससे भारत-कनाडा संबंधों में स्वाभाविक रूप से तनाव आ गया है क्योंकि नई दिल्ली को लगता है कि ओटावा खालिस्तानी समर्थकों के प्रति उदार है। हालांकि कनाडा के प्रधानमंत्री ट्रूडो ने इससे इंकार किया है।
दोनों पक्षों को एक-दूसरे की चिंताओं के प्रति अधिक समझने और सम्मान करने की जरूरत है। भारत को यह पहचानने की जरूरत है कि कनाडा को अभिव्यक्ति और संघ की स्वतंत्रता का अधिकार है। भले ही इसका मतलब यह हो कि कुछ कनाडाई खालिस्तान आंदोलन का समर्थन करते हैं। कनाडा को ऐसे बयान देने से उसे बचना चाहिए जिन्हें ङ्क्षहसा या आतंक का समर्थन करने के रूप में देखा जा सकता है। कानून का पालन करने वाले और शांतिपूर्ण कनाडाई सिखों के विशाल बहुमत और सिख चरमपंथियों के एक छोटे अल्पसंख्यक समूह के बीच अंतर करना महत्वपूर्ण है। सभी कनाडाई सिखों को एक ही नजर से देखना अनुचित है और यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि उनमें से अधिकांश खालिस्तान आंदोलन का समर्थन नहीं करते हैं। मुझे उम्मीद है कि भारत और कनाडा इस विवाद को शांतिपूर्ण और कूटनीतिक ढंग से हल कर सकते हैं। दोनों देशों में इतनी समानताएं हैं कि यह मुद्दा उनके दीर्घकालिक संबंधों को नुक्सान पहुंचा सकता है।-हरि जयसिंह