मुद्दा उठाने से पूर्व केजरीवाल का ‘होमवर्क’

punjabkesari.in Sunday, Mar 19, 2017 - 12:51 AM (IST)

विरोध का अलख जगाने वाले क्षेत्रीय सूरमाओं मसलन लालू, अखिलेश, मायावती, ममता आदि को कहीं पहले ही यह इल्म हो चुका था कि इन पांच राज्यों में से कम से कम चार राज्यों में कमल के प्रस्फुटन पर लगाम नहीं लगने वाली, सो बारी-बारी से इन नेताओं ने टी.वी. पर शुरूआती रुझान आते ही दिल्ली के सी.एम. अरविंद केजरीवाल को फोन लगाया और कहा कि वह ई.वी.एम. के मुद्दे को जोर-शोर से उठाएं, यह भी तय हुआ कि  केजरीवाल 11 तारीख को दोपहर 12 बजे एक प्रैस कांफ्रैंस करेंगे पर केजरीवाल ने उस प्रस्तावित प्रैस कांफ्रैंस को अगले दिन के लिए स्थगित कर दिया क्योंकि  पहले वह ई.वी.एम. के तकनीकी पहलुओं को बारीकी से समझना चाहते थे, इसके लिए उन्होंने हैदराबाद के अपने एक इंजीनियर मित्र का सहारा लिया। 

सूत्र बताते हैं कि श्रीकांत नामक  यह इंजीनियर आई.आई.टी. के दिनों में कभी अरविंद के साथ पढ़ा करते थे। इस बीच ‘आप’ के दोनों बूथ लैवल तक के आंकड़े जुटाने हैदराबाद के इंजीनियर दिल्ली पहुंचे और उन्होंने केजरीवाल के सामने यह डैमो दिया कि ई.वी.एम. में कहां और कैसे छेड़छाड़ की जा सकती है, तब कहीं जाकर अगले रोज ई.वी.एम. के  मुद्दे पर केजरीवाल अपनी प्रैस कांफ्रैंस कर पाए। 

तिवारी और संगठन में ठनी: 
ऐसे वक्त में जबकि हर ओर भगवा उफान परवान पर है, दिल्ली भाजपा में सब कुछ ठीक-ठीक नहीं चल रहा है। सूत्र बताते हैं कि इन दिनों दिल्ली प्रदेश भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी और प्रदेश संगठन मंत्री सिद्धार्थन सिंह में तलवारें ङ्क्षखची हुई हैं। एक ओर जहां दिल्ली भाजपा के  संगठन में पुरकश दखल रखने वाले श्याम जाजू और सिद्धार्थन चाहते हैं कि तिवारी संगठन के कामकाज में दखल न दें और अपना सारा फोकस पार्टी के प्रचार-प्रसार पर रखें। 

वहीं माना जाता है कि तिवारी पार्टी के अहम मामलों में अपनी शिरकत चाहते हैं। वैसे भी दिल्ली में निकाय चुनाव सिर पर हैं और तिवारी कैंप चाहता है कि टिकट बांटने में उनकी भी एक निर्णायक भूमिका हो, साथ ही तिवारी यह भी चाहते हैं कि संगठन में किसके पास क्या दायित्व रहे, इसमें उनकी राय को महत्व दिया जाए। वैसे पार्टी संगठन पर दबदबा रखने वाले नेतागण मनोज तिवारी को सिर्फ और सिर्फ दिल्ली भाजपा का चेहरा बनाए रखना चाहते हैं। 

अफसरों पर भगवा भरोसा:
यू.पी. में कमल के प्रस्फुटन के बाद से लगातार भाजपा के दोनों शीर्ष पुरुष मोदी व शाह की निगाहें अभी से 2019 के आने वाले आम चुनावों पर टिक गई हैं। भले ही इस भगवा द्वय ने यू.पी. के सी.एम. चुनने में जल्दबाजी न दिखाई हो, पर यू.पी. चुनाव में मतदाताओं से किए गए वायदों पर खरा उतरने की एक जल्दबाजी तो दिख ही रही है। वैसे भी मोदी को प्रशासनिक  मामलों में दक्ष माना जाता रहा है, चुनाव के बाद उन्होंने बगैर वक्त गंवाए केन्द्र और यू.पी. के आला अफसरों की एक आपात बैठक बुलाई। सूत्र बताते हैं  कि  अफसरों को ताकीद कर दी गई है कि 30 पृष्ठों वाले भाजपा के घोषणा पत्र के वायदों को तुरंत अमल में लाना है। 

इसके लिए एक 4 सूत्री कार्यक्रम को अमलीजामा पहनाने की हरी झंडी दे दी गई है। मोदी व शाह की जोड़ी भगवा शासन की प्राथमिकताओं में सबसे पहले यू.पी. की कानून व्यवस्था  को दुरुस्त करना चाहती है, चाहती है कि राज्य को 24 घंटे बिजली मिले, स्लॉटर हाऊस पर तुरन्त प्रभाव से लगाम लगे और गन्ना किसानों की कर्ज माफी को गति मिले। इस भगवा छत्र के पसंदीदा अधिकारियों की सूची तैयार है। कुछ पसंद के अधिकारियों (मसलन कभी राजनाथ सिंह के खास रहे आलोक सिंह) को डैपुटेशन पर यू.पी. भेजा जा रहा है। 

शाह के नए ‘खट्टर’: 
यू.पी. के सी.एम. के चुनाव में भले ही सिर्फ संघ की नहीं चली पर उत्तराखंड में संघ का दाव सफल रहा। यू.पी. में सी.एम. पद के  लिए राजनाथ सिंह की दावेदारी को संघ के दिग्गज नेता भैयाजी जोशी का पुरकश समर्थन हासिल था तो उत्तराखंड के लिए संघ का पूरा शीर्ष नेतृत्व एक साथ त्रिवेंद्र सिंह रावत के पक्ष में खड़ा था। रावत को राजनीति में लाने का श्रेय यू.पी. भाजपा के पूर्व संगठन मंत्री मोहन सिंह रावत को जाता है, जब उनके पास यू.पी. की जवाबदारी थी तो वह रावत को भगवा पार्टी में लेकर आए थे। 

रावत उस वक्त संघ के क्षेत्रीय कार्यकत्र्ता थे। रावत पौड़ी के रहने वाले हैं, संघ और अमित शाह के पुराने वफादारों में शुमार होते हैं। यह भगत सिंह कोश्यारी के मंत्रिमंडल में मंत्री भी रह चुके हैं। एक वक्त था जब इन्हें राजनाथ सिंह का सबसे भरोसेमंद माना जाता था, पर बदलते वक्त के साथ रावत ने अपनी राजनीति, रणनीति व निष्ठा बदल ली और वह अमित शाह के  कैंप में चले गए और उनके रूप में शाह को अपना दूसरा मनोहर रूप मिल गया है। 

मीडिया कम्पनी बिकने की कगार पर:
कांग्रेस व सत्ता पक्ष के लिए सदैव कदमताल करने वाला देश का एक बड़ा अखबार समूह अब बिकने की कगार पर आ पहुंचा है। इस समूह की मालकिन जब पिछले दिनों देश के शीर्ष उद्योगपति मुकेश अम्बानी से एक प्रस्ताव के साथ मिलीं, तब से ही अटकलें लगने लगी थीं कि इस अखबार समूह का अधिग्रहण शीघ्र ही अम्बानी ग्रुप करने जा रहा है। सूत्र बताते हैं कि अभी सारा मसला प्राइज को लेकर अटका पड़ा है। सूत्र बताते हैं कि अम्बानी समूह इस मीडिया ग्रुप के शेयरों को बाजार भाव के हिसाब से इसकी पूरी कीमत तय करना चाह रहा है, जबकि  मीडिया समूह अपने गुडविल, नाम व ब्रांड की एक बड़ी कीमत चाहता है। फिलहाल यह प्रस्ताव ठंडे बस्ते की भेंट चढ़ गया है। 

और अंत में:
भाजपा अध्यक्ष अमित शाह मणिपुर के अपने सी.एम. के शपथ ग्रहण समारोह में नहीं पहुंच पाए, वजह थी कि उन्हें और उनके साथियों को मणिपुर ले जा रहे उनके चार्टर्ड विमान में आगरा पहुंचते-पहुंचते तकनीकी खराबी आ गई, इस वजह से विमान को पुन: दिल्ली वापस लाना पड़ा। उस विमान में अध्यक्ष जी के साथ वेंकैया नायडू और भाजपा के कुछ अन्य सीनियर नेता भी बैठे थे, जैसे ही विमान में खराबी आनी शुरू  हुई, विमान हिचकोले खाने लगा और वेंकैया के चेहरे पर हवाइयां उडऩे लगीं।

वेंकैया ने शाह से कहा कि यह कोई 9वीं बार है जब उनको लेकर उड़ रहे जहाज में खराबी आ गई हो। इस पर विमान में बैठे एक नेता ने चुटकी ली फिर तो आप के साथ हवाई यात्रा सेफ नहीं है। अध्यक्ष जी ने झट से मामला संभाला और कहा-‘‘उनकी कुंडली में हवाई यात्रा सेफ है, सो जो उनके साथ यात्रा करेगा, उसका  बाल भी बांका नहीं होगा।’’ सब की सांस में सांस आई।               


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