न्यायपालिका पूर्ण स्वतंत्र और राजनीतिक विचारधारा से अलग हो

punjabkesari.in Thursday, Dec 22, 2022 - 05:09 AM (IST)

ऐसा प्रतीत होता है कि केंद्र सरकार और न्यायपालिका दोनों ही टकराव के रास्ते पर चल रहे हैं। केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू न्यायपालिका की असामान्य रूप से आलोचना करते रहे हैं। रिजिजू ने न्यायाधीशों के चयन के मानदंडों, न्यायाधीशों द्वारा लम्बी छुट्टी का आनंद लेने और उच्चतम न्यायालय द्वारा जमानत की सुनवाई जैसे तुच्छ मामलों को लेने की भी आलोचना की है। 

भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ जोकि एक न्यायाधीश के रूप में अपनी ईमानदारी और त्रुटिहीन प्रतिष्ठा के लिए जाने जाते हैं, के झुकने की संभावना नहीं है और उन्होंने यह घोषणा करके अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की है कि आने वाले ब्रेक के दौरान सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की छुट्टी नहीं होगी। 

पिछले हफ्ते संसद में सरकार की अपनी स्वीकारोक्ति स्पष्ट करती है कि न्यायालयों में लंबित मामलों में वृद्धि हो रही है और ऐसे मामलों ने लगभग 5 करोड़ के आंकड़े को छू लिया है। पूर्व कोविड अवधि के दौरान देश भर की विभिन्न अदालतों में लगभग 3 करोड़ मामले लंबित थे। संख्या को कम करने पर ध्यान देने की बजाय कानून मंत्री ने सर्वोच्च न्यायालय के स्तर पर न्यायाधीशों के चयन की अपारदर्शी प्रणाली या पारदर्शिता की कमी का आरोप लगाकर न्यायपालिका पर हमला किया है। न्यायिक अधिकारियों की कमी से पैदा हुई गड़बड़ी को समझने के लिए देश की किसी भी अदालत का दौरा ही काफी है। 

कानून मंत्री का यह कहना कि मुख्य न्यायाधीश और उच्चतम न्यायालय के 4 वरिष्ठतम न्यायाधीशों वाले कालेजियम द्वारा सिफारिशें करने के तरीके में कोई पारदर्शिता नहीं थी, स्पष्ट रूप से न्यायाधीशों की नियुक्ति को नियंत्रित करने की इच्छा से उपजी है। जाहिर तौर पर सरकार ऐसे जजों की नियुक्ति करना चाहेगी जो उसके प्रति ‘दोस्ताना’ नजर आते हों। 

अगर सरकार अपनी पसंद के जजों की नियुक्ति कर दे तो हमारे लोकतंत्र के लिए इससे बड़ी आपदा कोई हो ही नहीं सकती। न्यायपालिका हमारे लोकतंत्र का एकमात्र स्तंभ है जो कमोबेश स्वतंत्र रहा है और यही बात सरकार को चिढ़ा रही है। हमने देखा है कि कैसे वर्तमान सरकार ने लगभग सभी संस्थानों को अपने नियंत्रण में ले रखा है। चाहे वह राज्यपाल हो, कुलपति हो, चुनाव आयुक्त हो, सी.बी.आई. ई.डी. के निदेशक या फिर अन्य विभिन्न प्रमुख पदों की नियुक्ति हो। यहां तक कि मीडिया के बड़े हिस्से को भी सरकार ने ‘वश’ में कर रखा है। 

यह एक सच्चाई है कि कालेजियम सिस्टम सही नहीं है और उच्चतम न्यायालय को अधिक पारदर्शिता सुनिश्चित करने के तरीके खोजने चाहिएं। यह जग-जाहिर है कि इसने उच्च न्यायालय के कालेजियम द्वारा भेजी गई लगभग सभी सिफारिशों को बिना कोई कारण बताए खारिज कर दिया है। भले ही किसी भी उम्मीदवार की अस्वीकृति के सभी आधारों को सार्वजनिक करना उचित न होगा फिर भी उसे मानदंड निर्धारित करने चाहिएं। उच्च्तम न्यायालय के कामकाज की कानून मंत्री द्वारा आलोचना भी खराब है।

किरण रिजिजू ने जमानत के मामलों की सुनवाई के लिए उच्चतम न्यायालय के समय खर्च करने पर भी सवाल उठाया है। वे स्पष्ट रूप से अपने क्षेत्र से बाहर निकल गए हैं और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से संबंधित जमानत के मामलों को तुच्छ मामला मानते हैं। निचली अदालतों द्वारा जमानत खारिज होने पर नागरिक कहां जाएं? फिर भी रिजिजू द्वारा उठाया गया एक और विवाद न्यायाधीशों द्वारा आनंदित लम्बी छुट्टी से संबंधित है। इसमें सच्चाई है कि देश में जज लम्बी ब्रेक लेते हैं। जोकि ब्रिटेन के जजों से भी ज्यादा है। एक गणना के अनुसार वर्ष भर में  सुप्रीमकोर्ट में सिर्फ 193 दिन, हाईकोर्ट में 210 दिन और ट्रायल कोर्टों में साल में 245 वर्किंग दिन होते हैं। इस प्रथा का बचाव करने वालों का कहना है कि न्यायाधीश लम्बे समय तक काम करते हैं और फिर छुट्टी का उपयोग निर्णय लिखने और नए मामलों का अध्ययन करने के लिए करते हैं। 

यह तर्क आंशिक रूप से सही हो सकता है लेकिन न्यायपालिका को छुट्टियों की संख्या कम करने का तरीका खोजना होगा। यह शायद साल भर अदालतों को खुला रख कर और अलग-अलग समय पर अलग-अलग न्यायाधीशों के अवकाश पर चले जाने से किया जा सकता है ताकि अदालतों का सामान्य काम ठप्प न हो। इस प्रक्रिया को विभिन्न अन्य संस्थानों द्वारा अपनाया गया है और अब समय आ गया है कि उच्च न्यायपालिका भी इस गंभीर मुद्दे से निपटने के तरीकों पर विचार करे। इसलिए जहां छुट्टियों को कम करने के कानून मंत्री के सुझाव में दम है वहीं शीर्ष न्यायिक अधिकारियों की नियुक्ति में सरकारी हस्तक्षेप की उनकी इच्छा संविधान द्वारा प्रदत्त न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए गंभीर खतरे से भरी हुई है। न्यायपालिका को पूर्ण स्वतंत्रता के साथ कार्य करने में सक्षम होना चाहिए और राजनीतिक विचारधारा और जनता के दबाव से इसे अलग रखना चाहिए।-विपिन पब्बी 
 


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