आतंक पर पूर्ण विराम बिना ही- संघर्ष विराम!

punjabkesari.in Tuesday, May 13, 2025 - 05:28 AM (IST)

महज 4 दिन में ही पाक को घुटनों पर ला देने के बावजूद अचानक संघर्ष विराम की असली वजह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और वहां के सेना प्रमुख आसिम मुनीर ही जानते होंगे। संभव है, इस संघर्ष विराम का श्रेय लेने वाले अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और उनके विदेश मंत्री मार्को रूबियो भी जानते हों, पर यह अतीत से हमारे लिए कोई सबक न सीखने का संकेत भी है। 22 अप्रैल, 2025 को पहलगाम में 26 पर्यटकों की हत्या पाक प्रायोजित आतंक की पहली घटना नहीं थी। उससे पहले पुलवामा और उरी पर आतंकी हमले हुए। हर बार हमने जवाबी कार्रवाई तो की, पर आतंक का समूल नाश नहीं किया। अगर किया होता तो फिर वैसी घटनाओं की पुनरावृत्ति नहीं होती। बेशक पहलगाम हमले की जवाबी कार्रवाई के रूप में किए गए ‘ऑप्रेशन सिंदूर’ के बीच पाक सेना की हिमाकत पर भारतीय सेना ने उसे लंबे समय तक याद रहने वाला सबक सिखाया है, लेकिन इस बात की कोई गारंटी नहीं कि पैदाइशी शैतान, इस अचानक संघर्ष विराम से संत बन जाएगा।

पाकिस्तान के सैन्य आप्रेशन महानिदेशक द्वारा अपने भारतीय समकक्ष को फोन करने पर हुई बातचीत के बाद हुए संघर्ष विराम के संदर्भ में भारत सरकार कह रही है कि हमने नीतिगत रूप से स्पष्ट कर दिया है कि भविष्य में किसी भी आतंकी हमले को युद्ध की कार्रवाई माना जाएगा, जिसका भारत जोरदार जवाब देगा, पर पाकिस्तान की ओर से ऐसा कोई बयान नहीं आया है कि भविष्य में वह भारत विरोधी आतंकी गतिविधियों का केंद्र नहीं रहेगा। दरअसल दोनों देशों के सैन्य कार्रवाई महानिदेशकों  के बीच फोन पर बातचीत के बाद संघर्ष विराम के भारतीय दावे के उलट पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने तो 10 मई की रात अपने संबोधन में संघर्ष विराम के लिए बाकायदा अमरीकी राष्ट्रपति को धन्यवाद दिया, और भी चिंताजनक बात यह कि जिस पाक सेना प्रमुख आसिम मुनीर को पहलगाम हमले के जरिए भारत विरोधी आतंकी गतिविधियों को रफ्तार देने के लिए जिम्मेदार माना जा रहा है, उसे भी शहबाज शरीफ ने धन्यवाद दिया। 

क्या शहबाज, ‘ऑप्रेशन सिंदूर’ के जवाब में भारतीय सेना द्वारा पाक और पी.ओ.के. स्थित आतंकी ठिकानों को निशाना बनाने पर अपनी सेना की युद्धनुमा हिमाकत को जायज ठहरा रहे हैं? इस पूरे प्रकरण में पाक सरकार और सेना तथा खुद सेना के अंदर मतभेदों की खबरें भी आ रही हैं,  पर यह पाकिस्तान का आंतरिक मामला है, जिसे उसे ही सुलझाना होगा। यह आतंकी गतिविधियों के लिए सेना को ही खलनायक ठहरा कर पाक हुक्मरानों की खुद को पाक-साफ बताने की चाल भी हो सकती है। यह सच है कि पाकिस्तान में लोकतंत्र अक्सर सेना के शिकंजे में सांसें लेता नजर आता है। 1999 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी दोस्ती का पैगाम ले कर बस से लाहौर गए थे, तब उनके पाक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से गले मिलते हुए ही पाक सेना प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ ने कारगिल घुसपैठ के रूप में भारत की पीठ में छुरा घोंप दिया था। तब भी भारत से संबंधों के सवाल पर पाक सरकार और सेना में गहरे मतभेदों की खबरें आई थीं, जिनकी अंतिम परिणति मुशर्रफ द्वारा शरीफ सरकार के तख्ता पलट के रूप में हुई थी। 

पाक के वर्तमान प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ उन्हीं नवाज शरीफ के भाई हैं और मौजूदा सेना प्रमुख मुनीर जेहादी मानसिकता के चलते, मुशर्रफ से भी ज्यादा खतरनाक माने जाते हैं। ऐसे में 4 दिनों में ही भारतीय सेना ने जिस पाक सेना को घुटनों पर ला दिया था, क्या उसे इस संघर्ष विराम से जीवनदान ही नहीं मिल जाएगा? बेशक  ‘ऑप्रेशन सिंदूर’  में 5 बड़े आतंकियों समेत लगभग 100 आतंकवादियों तथा जैश और लश्कर सरीखे खतरनाक संगठनों के ठिकानों को नेस्तनाबूद कर देना हमारी सेना की बड़ी उपलब्धि है, पर भारत विरोधी मजहबी मानसिकता वाले पाकिस्तान में आतंकी ढांचा बनाने और आतंकियों की भर्ती में कितना समय लगता है? फिर अब तो चीन, तुर्की, अजरबैजान और बंगलादेश भी भारत विरोधी साजिशों में उसके साथ हैं। अतीत का अनुभव भी बताता है कि पाकिस्तान पर विश्वास करना बहुत महंगा पड़ता है। आखिरकार उरी हमले पर जवाबी सॢजकल स्ट्राइक के बाद पुलवामा पर हमला हुआ ही। पुलवामा के जवाब में बालाकोट एयर स्ट्राइक के बाद भी पहलगाम की बैसरन घाटी में पर्यटकों पर आतंकी हमला किया ही गया। पहलगाम हमले के बाद सरकार ने सिंधु जल संधि और पाकिस्तानी नागरिकों को जारी वीजा रद्द करने समेत कुछ कदम तत्काल उठाए, लेकिन उसके बाद चलती रही उच्च स्तरीय बैठकों से अर्थ निकाला गया कि इस बार भारत कुछ बड़ा करेगा, ताकि पाकिस्तान का स्थायी इलाज हो सके। 

 ‘ऑप्रेशन सिंदूर’  के जवाब में पाकिस्तानी सेना की हिमाकत का जोरदार जवाब देते हुए भारतीय सेना ने जिस तरह 4 दिन में ही उसके रक्षा तंत्र की कमर तोड़ दी, उसने इस नापाक पड़ोसी पर निर्णायक प्रहार के लिए अनुकूल अवसर भी उपलब्ध कराया था। बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा में जारी बगावत पाकिस्तान को उसके अंजाम तक पहुंचाने का बेहतर मौका दे रही है, लेकिन अचानक संघर्ष विराम ने सब कुछ बदल दिया।  बेशक भविष्य में आतंकी हमले को युद्ध की कार्रवाई मानने की भारत की नीति अर्थपूर्ण है, पर बार-बार पिट कर भी न सुधरने वाले पाकिस्तान सरीखे धूर्त के लिए इसके ज्यादा मायने होंगे नहीं। वह संघर्ष विराम से मिली मोहलत का इस्तेमाल भारत विरोधी चौतरफा तैयारियों के लिए कर फिर उठ खड़ा होगा। 

भारत से 4 युद्ध हार चुका पाकिस्तान प्रत्यक्ष युद्ध में नहीं जीत सकता-यह सच बहुत पहले उसके जनरल जिया उल हक ने स्वीकार कर लिया था। इसीलिए पाकिस्तान ने अलगाववाद और आतंकवाद के रूप में लंबे अप्रत्यक्ष युद्ध की रणनीति अपनाई। मजहब के आधार पर बना पाकिस्तान आतंकवाद की नर्सरी बन कर एक नाकाम देश ही नहीं, बल्कि दुनिया में शांति और सौहार्द के लिए खतरा बन चुका है। पाकिस्तानी हुक्मरान जैसी भाषा बोल रहे हैं, वह सेना के बढ़ते दबदबे और कमजोर होते लोकतंत्र का भी प्रमाण है। भारत को समझना चाहिए कि एक बार फिर पाकिस्तान का नक्शा बदले बिना वह शांति और सौहार्द से नहीं रह सकता।  कहते भी हैं कि घायल सांप ज्यादा खतरनाक होता है।-राज कुमार सिंह 
 


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