न्यायिक प्रक्रिया काम नहीं करती इसलिए होता है शॉर्टकट

punjabkesari.in Friday, Apr 21, 2023 - 04:48 AM (IST)

गैंगस्टर से राजनेता बने अतीक अहमद और उसके भाई खालिद अजीम जिसे अशरफ के नाम से जाना जाता था, को 3 युवकों ने पुलिस का घेरा आसानी से तोडऩे के बाद मार डाला था। इस साहसिक कार्य को अंजाम देने वाले 3 युवकों ने कथित तौर पर तुर्की निर्मित एक जैसी पिस्तौलों का इस्तेमाल किया जिसकी कीमत 6 लाख रुपए प्रत्येक पिस्तौल थी। इन पिस्तौलों को आरोपियों ने अतीक और अशरफ के शरीर में गोलियां मारने के बाद जमीन पर फैंक दिया। 

अखबारों में छपी खबरों के अनुसार तीनों ने एक सुर में आत्मसमर्पण कर दिया। इस मौके पर अपराधियों पर फायरिंग की पुलिस की सामान्य प्रतिक्रिया नदारद थी। विपक्ष की मांग के कारण उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश, एक सेवानिवृत्त सैशन जज और पुलिस के एक सेवानिवृत्त डी.जी. की अध्यक्षता वाले एक आयोग द्वारा जांच करने का आदेश दिया। 

अतीक अहमद सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर गुजरात की साबरमती जेल में बंद था। अशरफ इसी तरह यू.पी. प्रयागराज से दूर एक अन्य जेल में था। जो दोनों भाइयों की सुखी शिकारगाह थी। एक अन्य हत्या के मामले में गवाह की हत्या के सिलसिले में उन्हें प्रयागराज की एक अदालत में पेश होना था। एक गुप्त सूचना के बाद उन्होंने पुलिस द्वारा झूठी मुठभेड़ में मारे जाने की आशंका व्यक्त की थी। अतीक ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जिसने उसे इलाहाबाद हाईकोर्ट के लिए रैफर कर दिया। 

यह राज्य का पुलिस पर एक दुखद प्रतिङ्क्षबब है कि उन दोनों की हिरासत के दौरान पुलिस की उपस्थिति में ही उनकी हत्या कर दी गई। इस काम को अंजाम देने वाले तीनों युवकों के खिलाफ पहले से ही आपराधिक मामले दर्ज हैं। लवलेश तिवारी ने अपने फेस बुक पर शेखी बघारी थी कि उसका सपना ‘माफिया बॉस’ बनने का है। गले में सांप और हाथ में बंदूक लिए उसने खुद की फोटो खिंची थी। उसे स्थानीय पुलिस को अपनी पहचान करवानी थी। दूसरे आरोपी मोहितञ्चशनि जिसे पुराने नाम सन्नी के तौर पर भी जाना जाता है, के खिलाफ 14 मामले लंबित थे। वह भी पुलिस के रॉडार पर रहा होगा। 

तीसरा शूटर कासगंज में एक हत्या में संलिप्त था। सन्नी लारेंस बिश्नोई गिरोह का सदस्य था जिसने हाल ही में पंजाबी गायक सिद्धू मूसेवाला को एक सनसनीखेज गोलीबारी में मार डाला था। इस मामले ने कुछ महीने पहले पंजाब की आप सरकार को हिला कर रख दिया था। वह भी पुलिस को जानने वाला रहा होगा। तीनों शूटर यू.पी. के अलग-अलग हिस्सों के रहने वाले हैं वह एक-दूसरे को कब जानने लगे? उन्होंने संयुक्त रूप से हत्या करने का फैसला कब किया? उन्हें कैसे और कब पता चला कि दोनों भाइयों को रिमांड की सुनवाई के लिए प्रयागराज कोर्ट लाया जाएगा? उन्हें एक जैसी पिस्तौलें कहां से मिलीं? 

इन जैसे कई अन्य संंबंधित सवालों के जवाब दिए जाने की जरूरत है। फिर भी पुलिस ने रिमांड नहीं मांगा। गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने तीनों से अपराध के मकसद के बारे में पूछताछ की। ऐसा प्रतीत होता है कि तीनों ने पुलिस को बताया कि वह अपराध के अपने चुने हुए पेशे में भविष्य में आगे बढऩे के लिए नाम और शोहरत चाहते थे! पुलिस ने इसकी सूचना प्रतीक्षारत पत्रकारों को दी। 

छोटे-छोटे मामले में पुलिस आरोपियों का पुलिस रिमांड मांगती है। सुरक्षा की इतनी गम्भीर चूक, जिसके कारण कुख्यात बदमाशों की दोहरी हत्या हुई, पुलिस ने हिरासत में उनसे पूछताछ करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया। ऐसा सवाल मेरे दिमाग में बेहद संदिग्ध लगता है। प्रैस बड़ी तादाद में उपस्थित थी और उसने हत्याओं की वीडियो को अपने कैमरे में रिकार्ड किया। यह सुझाव दिया गया है कि हत्यारों ने प्रैस के सदस्यों के रूप में खुद को पेश करने की कोशिश की। लेकिन क्या पुलिस को हिरासत में पूछताछ कर इस महत्वपूर्ण तथ्य को स्पष्ट करने की जरूरत नहीं थी? 

मीडिया के समक्ष आया यह पूरा प्रकरण हमें आश्चर्यचकित करता है कि क्या हत्यारों को पुलिस की हिरासत में रहने के दौरान अतीक और अशरफ को मारने का काम किसी आपराधिक एजैंसी द्वारा सौंपा गया था। वह दोनों भाइयों को ले जा रहे पुलिस पार्टी की मूवमैंट से वाकिफ थे। दोनों भाइयों को रात साढ़े 10 बजे मैडीकल चैकअप के लिए अस्पताल ले जाया जा रहा था, तभी उनकी मौत हो गई। कैदियों से हिरासत में पूछताछ करने से पहले इस तरह की जांच नियमित रूप से की जाती है। ऐसे में दोनों भाइयों से पूछताछ का सवाल ही नहीं उठता कि उन्हें अस्पताल क्यों ले जाया जा रहा था? उन्होंने मैडीकल जांच के लिए कहा था? पुलिस द्वारा मारे जाने की उनकी आशंका को देखते हुए यह बहुत कम लगता है। 

अधिक प्रासंगिक रूप से हत्यारों को इस चिकित्सा प्रशिक्षण के बारे में कैसे पता चला? इसके सही समय और प्रैस को यह सब कैसे पता चला? राज्य सरकार द्वारा नियुक्त जांच आयोग को सच्चाई का पता लगाने के लिए गहरी छानबीन करनी होगी। अतीक और अशरफ की हत्याओं का कारण बनने वाली सभी परिस्थितियां पुलिस की उपस्थिति में बनीं। अपने स्वयं के अच्छे के लिए जांच आयोग को सच्चाई का पता लगाने में मदद करने की जरूरत है। 

पुलिस मुठभेड़ों ने योगी सरकार को काफी लोकप्रिय बना दिया है। इससे न केवल योगी बल्कि उनकी पार्टी को भी चुनावी फायदा मिलेगा। 2024 के चुनावों में ऐसे मामले अपनी ओर कई मतों को आकॢषत करेंगे। लेकिन क्या भाजपा नेताओं ने इस नियति की लागत की गणना की? बदमाशों के खात्मे से लोगों में खुशी का माहौल है क्योंकि न्यायिक प्रक्रिया काम नहीं करती इसलिए शॉटकर्ट को प्रोत्साहित किया जाता है। अपराध तय करने और फिर गोली से मौत की सजा देने का काम पुलिस को सौंपना बड़े खतरे से भरा है। इस तरह की गैर-कानूनी हत्याओं में शामिल पुलिस अधिकारी कभी न कभी खुद अपराधी बन जाते हैं।-जूलियो रिबैरो(पूर्व डी.जी.पी. पंजाब व पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी)


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