अडानी मामले पर जे.पी.सी. के गठन से संसदीय गतिरोध खत्म हो

punjabkesari.in Friday, Mar 31, 2023 - 04:37 AM (IST)

संसद और राज्यों की विधानसभाओं में गतिरोध के साथ अनुशासनहीनता भी बढ़ रही है। सोशल मीडिया में वायरल एक वीडियो में त्रिपुरा विधानसभा के भीतर भाजपा विधायक टैबलेट पर पोर्न देख रहे हैं। निलंबित भाजपा विधायक विजेन्द्र गुप्ता को कार्रवाई में मौजूद रहने की इजाजत देने वाले आदेश में दिल्ली हाईकोर्ट के जज ने कहा कि सदन की गरिमा बनाए रखना जरूरी है। दिल्ली में विधानसभा समितियों की बैठकों में अधिकारियों की हाजिरी के मुद्दे पर एल.जी. और स्पीकर के बीच टकराव बढ़ रहा है।

विधानसभा अध्यक्ष ने कहा है कि उपराज्यपाल के निर्देश को विधानसभा नहीं मानेगी। पंजाब में सरकार और गवर्नर के बीच गतिरोध की वजह से विधानसभा में बजट ही अटक गया। सुप्रीमकोर्ट ने मुख्यमंत्री और गवर्नर दोनों को नसीहत देते हुए बजट-सत्र को हरी झंडी दिखाई। 

दिल्ली विधानसभा में मुख्यमंत्री केजरीवाल के अडानी और मोदी पर भाषण को विधायी अतिक्रमण कहा जा रहा है। दूसरी तरफ भाजपा शासित गुजरात और मध्य प्रदेश में गुजरात दंगों पर बी.बी.सी. डॉक्यूमैंट्री के खिलाफ विधानसभाओं में प्रस्ताव पारित हो रहे हैं। अभद्र आचरण और बयानों के दौर में विधायकों और सांसदों को माननीय मानना मुश्किल सा लगता है। विपक्षी खेमे में लोकसभा के स्पीकर ओम बिरला के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की सुगबुगाहट है। यदि ऐसा हुआ तो लोकसभा की कार्रवाई का संचालन परम्परा के अनुसार डिप्टी स्पीकर को करना होगा। लेकिन लोकसभा की अवधि समाप्त होने को है और संविधान के अनुसार अभी तक डिप्टी स्पीकर का चुनाव ही नहीं हुआ। 

राहुल की अयोग्यता के मसले में संसदीय विफलता : राहुल गांधी को आई.पी.सी. के जिस कानून के तहत मानहानि के मामले में 2 साल की सजा मिली है, उसे दो शताब्दी पहले अंग्रेजों ने बनाया था। सुप्रीमकोर्ट ने डॉ. स्वामी, राहुल और केजरीवाल की याचिकाओं पर 2016 में इस कानून की वैधता पर मोहर लगा दी थी। मानहानि कानून के दुरुपयोग को रोकने के लिए धारा-499 के 4 को दुरुस्त करने की मांग पर संसद से ही कानून में बदलाव हो सकता है। 

सुप्रीम कोर्ट के 10 साल पुराने फैसले की आड़ में राहुल की अयोग्यता के बारे में स्पीकर ने त्वरित निर्णय ले लिया। दूसरी ओर लक्षद्वीप के सांसद मो. फैजल की बहाली के बारे में अदालती आदेश के बावजूद दो महीने तक कोई फैसला नहीं लिया गया। इस मामले पर सुप्रीमकोर्ट ने कहा कि आपराधिक मामलों में सजा के बाद जनप्रतिनिधियों को अयोग्य ठहराने के मामले में जरुरी कानूनी सुरक्षा होनी चाहिए। संविधान के अनुच्छेद-103 की व्याख्या करते हुए यह भी कहा जा रहा है कि राष्ट्रपति के अनुमोदन के बगैर अयोग्यता का फैसला करना गलत है। 

संविधान के अनुच्छेद-141 के तहत सुप्रीमकोर्ट का फैसला सभी अदालतों के लिए बाध्यकारी है। उसे देश का कानून मानने के लिए कानून की किताबों में भी बदलाव जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट के 2013 के फैसले के अनुसार जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा-8 में अभी तक संसद से बदलाव नहीं हुआ है। 

जे.पी.सी. पर लोकसभा में गतिरोध :  पिछले तीन सप्ताह से विरोध, काले कपड़े, नारेबाजी और गतिरोध से संसद में छात्र-संघ चुनावों जैसा माहौल है। 45 लाख करोड़ के बजट, वन संरक्षण विधेयक और प्रतिस्पर्धा विधेयक 2022 को बगैर चर्चा के मंजूरी मिलने से संसद की शक्ति और गरिमा दोनों कमजोर हुई हैं। देश में 80 करोड़ से ज्यादा लोग सरकारी फ्री राशन पर निर्भर हैं। जबकि संसद में सरकार के जवाब के अनुसार देश के किसी भी राज्य में भुखमरी से मौत की कोई सूचना नहीं है। संसद की  इन कार्रवाइयां से ऐसा लगता है कि संसदीय विशिष्टिता और विशेषाधिकार दोनों नेपथ्य में जा रहे हैं। 

विदेश में राहुल गांधी के भाषण पर माफी की जिद्द ने नाम पर सत्ता पक्ष संसद में गतिरोध जारी रख नई मिसाल बना रहा है। जबकि विपक्ष अडानी मुद्दे पर संयुक्त संसदीय  समिति (जे.पी.सी.) से जांच की मांग पर अड़ा है। जे.पी.सी. गठित नहीं करने के लिए सरकारी पक्ष की तरफ से 3 तर्क दिए जा रहे हैं। पहला- हिंडनबर्ग अमेरिकी फर्म है, जिसकी कानूनी मान्यता भी नहीं है। दूसरा- सेबी और आर.बी.आई. कानून के अनुसार काम कर रहे हैं। तीसरा- सुप्रीमकोर्ट की जांच समिति के गठन के बाद अदालतों में विचाराधीन मामलों पर बहस नहीं होनी चाहिए। 

बोफोर्स मामले की भी विदेशों से शुरुआत हुई थी। लेकिन उसकी जांच के लिए 1987 में जे.पी.सी. का गठन हुआ था। हर्षद मेहता और केतन पारिख के शेयर घोटाले मामलों में भी 1992 और 2001 में जे.पी.सी. का गठन हुआ था। 2जी घोटाले में सरकारी अनियमितताओं की जांच के लिए 2011 में जे.पी.सी. बनी थी। हिंडनबर्ग रिपोर्ट के बाद अडानी ग्रुप की वैल्यू आधे से कम हो गई है। 

इससे एल.आई.सी. और बैंकों के साथ आम निवेशकों का भी बड़ा घाटा हुआ है। इस रिपोर्ट में तथ्यों के साथ कानून के उल्लंघन और भ्रष्टाचार के संगीन आरोप हैं। सुप्रीमकोर्ट से नियुक्त पुरानी जांच समितियां जांच के मकसद में पूरे तरीके से कामयाब नहीं रहीं। संसद की जे.पी.सी. कमेटी में पक्ष और विपक्ष के सदस्य शामिल होंगे। ऐसा होने से अर्थव्यवस्था में निवेशकों के कायम रहने के साथ सरकार का रसूख और संसद की गरिमा भी बढ़ेगी।-विराग गुप्ता(एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट) 
 


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