‘जैविक युद्ध’ से निपटने के लिए संयुक्त प्रयास

Saturday, Jun 12, 2021 - 05:49 AM (IST)

अंतर्राष्ट्रीय संबंध के विश्लेषण में खतरों की प्रकृति बदलती रहती है। ‘स्टैटिज्म, सैल्फ हैल्प, सर्वाइव’ के प्रमुख यथार्थ द्वारा चलित इस अध्ययन क्षेत्र में तथ्य और नीति में किसी भी राज्य को देश के राष्ट्रीय हित के सर्वोपरि सुरक्षा का धारक माना गया है। देश की सुरक्षा के मद्देनजर आतंकवाद हमेशा से चिंता का विषय रहा है क्योंकि केवल स्वार्थ को पूरा करने के लिए नागरिक आबादी को नुक्सान पहुंचाना इसमें वांछित परिणाम प्राप्त करने के लिए एक साधन है। 

चिंता की बात यह है कि यह हम सब इतिहास और वर्तमान में देख सकते हैं कि युद्ध के कई रूप होते हैं। प्रथम विश्व युद्ध की भयावहता के कारण अधिकांश देशों ने युद्ध में जैविक और रासायनिक हथियारों के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने वाले 1925 के जिनेवा प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किए। गत समय में अमरीका और चीन के बीच व्यापार युद्ध ने वैश्विक शासन के लिए कई चुनौतियों को उत्पन्न किया। कहीं पर व्यापार-शुल्क और नीतियों के माध्यम से तो कहीं जैविक हथियार, पैथोजेन्स द्वारा गैर-सैन्य हमले के प्रतिरूप से दूसरे को नुक्सान पहुंचाकर स्वयं के लिए लाभ सुनिश्चित करने की चाल रखी गई। 

हाल ही में अमरीका के संक्रामक रोग विशेषज्ञ डा. एंथनी फौची ने कोरोना वायरस की उत्पत्ति पर जांच पड़ताल की आवश्यकता जताई। इससे पहले भी अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने गत वर्ष इसको चीन से जोड़ा था। जैविक युद्ध के इस विषय जिसमें कई महत्वपूर्ण मुद्दे हैं कि क्या यह वायरस प्राकृतिक है या किसी लैब में उत्पन्न किया गया, आदि पर चर्चा से यह भी अनुमान लगाया जा रहा है कि वर्तमान बाइडेन प्रशासन वायरस की उत्पत्ति का निर्धारण करने के लिए अपनी जांच का विस्तार करने के लिए डब्ल्यूएचओ पर दबाव डालना जारी रखेगा। 

यह हम जानते हैं कि जैविक हथियारों का मुद्दा अतीत में भी मौजूद था लेकिन मानव जीवन और आजीविका पर आज वायरस का प्रभाव पहले की तुलना में अभूतपूर्व है। इस मुद्दे से निपटने के लिए निश्चित रणनीति की जरूरत है। हमें यह समझना होगा कि सुरक्षा का विचार बहुआयामी है। इसी संदर्भ में हर राष्ट्र को अपने खतरे का आकलन तंत्र को मापने के तरीकों में विस्तार करना होगा। साथ ही जैविक और विष हथियार कन्वैंशन 1972 को सशक्त करने की आवश्यकता है। इसे मानवाधिकारों और लोकतांत्रिक मूल्यों के उल्लंघन के मुद्दों से जोडऩा चाहिए। भारत ने इसे 2015 में अनुसमर्थन किया था। शत्रुतापूर्ण पड़ोस की उपस्थिति के साथ, यह भारत के लिए और महत्वपूर्ण हो जाता है। 

वायरस और उसके हमले की अदृश्यता के कारण, किसी देश के निवारक निरोध नियम भी कमजोर हो जाते हैं। इस कमी को पूरा करने के लिए, आंतरिक नीति में  नागरिक निरीक्षण को बढ़ाना होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी देश के नाम विभिन्न संदेशों में लोगों से सभी सावधानियों का पालन करने का आग्रह किया। यह वैश्विक महामारी केवल भू-राजनीति के बारे में नहीं है, इसी कारण भविष्य के खतरों से निपटने के लिए, नागरिकों की भागीदारी सुनिश्चित करनी चाहिए। सैन्य और घरेलू सुरक्षा नीति को नई बीमारियों और वायरस का अवलोकन करने वाले वैज्ञानिकों द्वारा अनुसंधान के साथ सही सहयोग होना चाहिए। 

एक सहयोगात्मक प्रयास देश की जनता के अच्छे स्वास्थ्य और सुरक्षा सुनिश्चित करने के साथ समग्र राष्ट्रीय हित को प्राप्त करने में उपयोगी साबित होगा। हमें यह मानना चाहिए कि वैश्विक शासन की गतिशीलता व प्रतिमान अब अलग है। न केवल यहां मुद्दे आम व्यक्ति को प्रभावित करते हैं, बल्कि प्रत्येक राष्ट्र के लिए बड़ी लागत वाली चुनौती भी है। इसलिए किसी भी देश को जैविक युद्ध के मुद्दे की अनदेखी नहीं करनी चाहिए। सही मंशा और नीतिगत फोकस के साथ, इसे हल करने के लिए एकजुटता होनी चाहिए। यह मानव स यता के भविष्य के लिए व राष्ट्रीय और वैश्विक शासन द्वारा जन कल्याण के लिए आवश्यक है।-डॉ. आमना मिर्जा

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